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टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश तेंदुओं की मौत मामले में अव्वल - टाइगर स्टेट का दर्जा

बाघों की संख्या को देखते हुए मध्य प्रदेश को भले ही टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल हो गया है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि राज्य में सबसे अधिक तेंदुओं की मौत हो रही है. यहां पिछले एक साल में 48 तेंदुओं की मौत हुई है, जो देश में सबसे ज्यादा है.

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Published : Jan 5, 2021, 9:47 PM IST

भोपाल : बाघों की संख्या को देखते हुए मध्य प्रदेश को पहले ही टाइगर स्टेट का दर्जा प्राप्त है. अब मध्य प्रदेश तेंदुओं की संख्या में भी अव्वल है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सभी राज्यों को पछाड़कर तेंदुओं की गिनती में आगे निकले मध्य प्रदेश में तेंदुओं की मौत के आंकड़े भी सबसे ज्यादा हैं. पिछले एक साल में ही मध्य प्रदेश में 48 तेंदुओं की मौत हुई है.

मध्य प्रदेश में हैं 3,421 तेंदुए
टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने के बाद मध्य प्रदेश तेंदुओं की संख्या में भी पहले नंबर पर आ गया है. केंद्रीय पर्यावरण वन मंत्रालय ने हाल ही में तेंदुए की गणना के आंकड़े जारी किए हैं. इस लिहाज से देश में अब सबसे ज्यादा 3,421 तेंदुए मध्य प्रदेश में हैं. मध्य प्रदेश ने यह तमगा कर्नाटक और महाराष्ट्र को पीछे छोड़ कर पाया है. कर्नाटक में 1,783 और महाराष्ट्र में 1,690 तेंदुए पाए गए हैं. अब भारत में कुल 12,852 तेंदुए हैं, इनकी तादाद में 60 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है.

जानकारी देते संवाददाता

मध्य प्रदेश में चार साल में बढ़े 1904 तेंदुए
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने वर्ष 2014 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर तेंदुओं की गिनती शुरू की थी. पहली बार में मध्य प्रदेश में 1517 तेंदुए पाए गए थे. वहीं दूसरी बार की गिनती दिसंबर 2017 से मार्च 2018 के बीच बाघ गणना के दौरान हुई. इस गणना में मध्य प्रदेश में 3,421 तेंदुए पाए गए हैं. यानी कि महज चार सालों में मध्य प्रदेश में 1904 तेंदुए बढ़ गए हैं. मध्य प्रदेश के ऐसे 16 जिलों में भी तेंदुए ने आमद दर्ज कराई है, जहां पिछले कई दशक से तेंदुए नहीं देखे गए थे.

बाघ जैसी नहीं होती है तेंदुओं की कद्र
देश और मध्य प्रदेश में जिस तरह से बाघों की कद्र की जाती है, उस तरीके से तेंदुओं को तवज्जो नहीं मिलती है. बाघों की मौत होने पर सरकार जिस तरह की सख्ती दिखाती है, वास्तव में तेंदुओं के मामले में ऐसी सतर्कता और सख्ती नहीं बरती जाती है, जबकि तेंदुए भी अनुसूची एक के वन्य प्राणी है. अनुसूची एक में उन प्रजातियों को रखा जाता है, जो खत्म होने की कगार पर हैं.

सड़क, ट्रेन दुर्घटना और कुंए में गिरने से मौत
पिछले एक साल में मध्य प्रदेश में 48 तेंदुओं की मौत हुई है. एक तेंदुए को तो ग्रामीणों ने डंडों से पीट-पीटकर मार डाला था. वहीं, प्रदेश में छह मामले ऐसे भी हैं, जिनमें तेंदुओं की मौत सड़क और ट्रेन दुर्घटना के अलावा कुएं में गिरने से भी हुई है. वहीं, चैनलिंग जाली में फंसने से भी तेंदुओं की मौत हुई है. साथ-साथ बाघ के हमले आपसी लड़ाई और प्राकृतिक रूप से भी तेंदुओं की मौत हुई है.

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17 तेंदुओं का हुआ है शिकार
मध्य प्रदेश में बीते साल वन विभाग की चाक-चौबंद निगरानी के बीच भी 17 तेंदुओं का शिकार हो गया है. यह घटनाएं सामान्य वन मंडल के अलावा संरक्षित क्षेत्रों में भी हुई है. इनमें फंदे से चार, करंट से चार और जहर से दो तेंदुए की मौत हुई है. जबकि आठ मामले ऐसे हैं, जिनमें अब तक विभाग को तेंदुओं की मौत के कारणों का पता नहीं चल सका है.

चौंकाने वाली बात यह है कि सेंधवा और बालाघाट वन क्षेत्रों में ऐसे दो मामले भी सामने आए हैं. जिनमें वन विभाग ने आरोपियों के पास से तेंदुओं के अंग बरामद किए हैं. इनमें से एक तेंदुए का शिकार गोली मारकर किया जाना बताया जा रहा है.

अजय दुबे का बयान

पर्यावरणविद की राय
वहीं, पर्यावरणविद अजय दुबे का कहना है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा तेदुओं की मौत होना चिंता का विषय है. वहीं यह विषय तब और गंभीर बन जाता है, जब मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा तेंदुए हैं. अजय दुबे ने कहा कि भारत में सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में तेंदुओं का शिकार होता है. इसकी वजह है कि लचर कानून व्यवस्था के चलते शिकारियों को सजा नहीं मिल पाती है.

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