नई दिल्ली : लोकसभा ने वर्ष 2019-20 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के दूसरे बैच तथा जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 2019-20 तथा 2020-21 के लिए अनुदानों की मांगों तथा संबंधित विनियोग विधेयकों को मंजूरी दे दी है.
निचले सदन में हुई चर्चा का जवाब देते हए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधान समाप्त होने के बाद से भ्रष्टाचार समाप्त हुआ है और चीजें पारदर्शी ढंग से आगे बढ़ रही हैं एवं विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है.' उन्होंने कहा कि कांग्रेस जब सरकार में थी, तब उसने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए प्रयास नहीं किए.
वित्त मंत्री ने कहा कि कुछ सदस्य पूछ रहे हैं कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त करने के बाद क्या बदला है? उन्होंने कहा, 'हम बताना चाहते हैं कि अब भ्रष्टाचार नहीं है, पारदर्शिता आई है, पारदर्शी ढंग से निविदाएं हो रही हैं, सही अर्थो में लोकतंत्र आगे बढ़ रहा है.' उन्होंने कहा कि इसका प्रमाण है कि जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनाव हुए, ब्लाक विकास परिषद के चुनाव हुए और आज लोग अधिकारियों एवं प्रशासन से सीधे सम्पर्क कर रहे हैं जो पहले संभव नहीं हो रहा था .
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने वर्ष 2019-20 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के दूसरे बैच और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से संबंधित अनुदान की मांगों एवं संबंधित विनियोग विधेयकों को मंजूरी दे दी.
सीतारमण ने कहा कि आज जो लोग जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार की बात कर रहे हैं, वह उनसे पूछना चाहेंगी कि उस समय वे कहां थे, जब प्रदेश में मानवाधिकार आयोग नहीं था, महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठाने वाला कोई नहीं था, अनुसूचित जाति-जनजाति के हक की बात करने वाला कोई नहीं था. उन्होंने सवाल किया, 'क्या मानवाधिकार की बातें हमसे (भाजपा) पूछी जाएंगी, क्या यह कांग्रेस पर लागू नहीं होता है.'
वित्त मंत्री ने कहा कि 1990 के दशक की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर ने नरसंहार का दौर देखा और कश्मीरी पंडितों को बाहर जाना पड़ा. उन्होंने कहा, 'क्या कश्मीरी पंडितों का मानवाधिकार नहीं है.' इस पर कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि तब वीपी सिंह की सरकार थी, जिसे भाजपा समर्थन दे रही थी .
इसका जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा, 'हमने वी.पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, फिर चंद्रशेखर की सरकार आई और फिर नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार आई, लेकिन कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं किया गया क्योंकि मंशा नहीं थी.'