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क्या नशे की लत छुड़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है लॉकडाउन - rid off alcohol habit amid lockdown

लॉकडाउन में नशे की लत को लेकर यह कहा जा रहा है कि शराब की दुकानें और नशे के साधन उपलब्ध न होने की वजह से कई लोगों की आदतें छूट गई होंगी. इसे लेकर एम्स के साइकेट्री, नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. यतिन पाल सिंह बलहारा क्या कहते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : May 2, 2020, 5:33 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना के कहर ने दुनिया को जैसे बंदी बना लिया हो, ऐसा लगता है मानों इंसान की आदतें भी बदलने लगी हो. एक पुरानी कहावत है कि अगर हम किसी चीज को लगातार 21 दिनों तक निरंतर करते रहते हैं तो वो चीज हमारी आदतों में शुमार हो जाती है. अब जरा इसे उल्टा करके सोचें कि अगर हम लगातार 21 दिनों तक अपनी किसी आदत या लत की खुराक पूरी न कर पाएं तो क्या हम उन आदतों से बाहर निकल सकते हैं ?

यह सवाल इसलिए जरूरी है कि लॉकडाउन की वजह से तम्बाकू उत्पाद, ड्रग्स और शराब का नियमित सेवन करने वाले लोगों की ये चीजें नहीं मिल पाई होंगी. ऐसे में जब 4 मई से देश के कुछ हिस्सो में शराब की दुकानें खुलेंगी, पान-गुटखे की दुकानों पर लगा ताला जब खुलेगा तो क्या वहां पहले की तुलना में भीड़ कम हो जाएंगी.

ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

ऐसे कई सवाल लोगों के जेहन में हो सकते हैं. इन सवालों के जवाब में एम्स के साइकेट्री, नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. यतिन पाल सिंह बलहारा बताते हैं कि नशे की लत इतनी आसानी से नहीं छुटती.

डॉ. यतिन पाल सिंह बलहारा ने दी जानकारी

बलहारा ने बताया कि नशे की लत चाहे किसी तम्बाकू उत्पाद का हो, ड्रग्स का हो या फिर शराब का हो इतनी आसानी से नहीं छुटती. जो लोग एडिक्शन के शिकार हैं, अगर वो एक-दो बार दवा से ठीक भी हो जाते हैं तो फिर उन्हें वो बीमारी वापस भी हो सकती है.

कई मरीज शारीरिक परेशानियों, आर्थिक तंगी और धार्मिक कारणों से कुछ समय के लिए नशीले पदार्थ का सेवन रोक देते हैं लेकिन इसका कतई ये मतलब नहीं है उन्होंने नशे की लत छोड़ दी है. ऐसे में लॉकडाउन की एक से डेढ़ महीने की अवधि में नशे से बाहर आने की लत मिथक ही है.

यह संभव है कि लॉकडाउन के दौरान नशीली पदार्थों तक लोगों की पहुंच कम हो गई होगी या फिर उन्हें नहीं मिली होगी, लेकिन इस दौरान वो नशे की लत से बाहर नहीं आएंगे. अगर लॉकडाउन खुलने के बाद उन्हें नशीले पदार्थ मिले तो वो दोबारा उन्हें लेने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा अगर लॉकडाउन के पहले ही कुछ लोगों ने नशे की लत से बाहर आने का मन बना लिया होगा तो उनके लिए ये लॉकडाउन किसी वरदान से कम नहीं होगा.

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ऐसी जानकारी भी सामने आई है कि एम्स में लॉकडाउन के दौरान नशे के शिकार रहे लोगों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों को लेकर एक स्टडी हुई है, जिसे पब्लिशिंग के लिए भेजा गया है. अगले दो हफ्ते में अगर वो रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद उसे साझा किया जाएगा.

आंकड़ों पर एक नजर

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ज्यादा शराब पीने से हर साल 2,60,000 लोग मर जाते हैं. 24 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लॉकडाउन के दौरान शराब की बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की एडवाइजरी जारी कर दी क्योंकि इसका मानना था कि लॉकडाउन के दौरान नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों के व्यवहार में बदलाव आ सकता है. हालांकि मानसिक परेशानी बढ़ने की भी चेतावनी जारी की गई थी.

5.70 करोड़ लोग हैं शराब के आदी

दिल्ली के सबसे बड़े मानसिक अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. निमेष देसाई बताते हैं कि भारत में शराब को फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड एक्ट 2008 के अंतर्गत रखा गया है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में पांच करोड़ 70 लाख लोग शराब की लत के शिकार हैं.

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एम्स की 2019 की एक शोध के मुताबिक शराब की लत अचानक छूट जाने की वजह से मिर्गी के दौरे पड़ने लगते हैं. नशे की आपूर्ति न होने की वजह से व्यक्ति अग्रेसिव भी हो जाता है. लॉकडाउन के दौरान ऐसा देखने को भी मिला जब केरल में नौ और तमिलनाडु में छह लोग नशे की आपूर्ति न होने की वजह से मर गए.

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