नई दिल्ली : कोरोना के कहर ने दुनिया को जैसे बंदी बना लिया हो, ऐसा लगता है मानों इंसान की आदतें भी बदलने लगी हो. एक पुरानी कहावत है कि अगर हम किसी चीज को लगातार 21 दिनों तक निरंतर करते रहते हैं तो वो चीज हमारी आदतों में शुमार हो जाती है. अब जरा इसे उल्टा करके सोचें कि अगर हम लगातार 21 दिनों तक अपनी किसी आदत या लत की खुराक पूरी न कर पाएं तो क्या हम उन आदतों से बाहर निकल सकते हैं ?
यह सवाल इसलिए जरूरी है कि लॉकडाउन की वजह से तम्बाकू उत्पाद, ड्रग्स और शराब का नियमित सेवन करने वाले लोगों की ये चीजें नहीं मिल पाई होंगी. ऐसे में जब 4 मई से देश के कुछ हिस्सो में शराब की दुकानें खुलेंगी, पान-गुटखे की दुकानों पर लगा ताला जब खुलेगा तो क्या वहां पहले की तुलना में भीड़ कम हो जाएंगी.
ऐसे कई सवाल लोगों के जेहन में हो सकते हैं. इन सवालों के जवाब में एम्स के साइकेट्री, नेशनल ड्रग्स डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. यतिन पाल सिंह बलहारा बताते हैं कि नशे की लत इतनी आसानी से नहीं छुटती.
डॉ. यतिन पाल सिंह बलहारा ने दी जानकारी
बलहारा ने बताया कि नशे की लत चाहे किसी तम्बाकू उत्पाद का हो, ड्रग्स का हो या फिर शराब का हो इतनी आसानी से नहीं छुटती. जो लोग एडिक्शन के शिकार हैं, अगर वो एक-दो बार दवा से ठीक भी हो जाते हैं तो फिर उन्हें वो बीमारी वापस भी हो सकती है.
कई मरीज शारीरिक परेशानियों, आर्थिक तंगी और धार्मिक कारणों से कुछ समय के लिए नशीले पदार्थ का सेवन रोक देते हैं लेकिन इसका कतई ये मतलब नहीं है उन्होंने नशे की लत छोड़ दी है. ऐसे में लॉकडाउन की एक से डेढ़ महीने की अवधि में नशे से बाहर आने की लत मिथक ही है.
यह संभव है कि लॉकडाउन के दौरान नशीली पदार्थों तक लोगों की पहुंच कम हो गई होगी या फिर उन्हें नहीं मिली होगी, लेकिन इस दौरान वो नशे की लत से बाहर नहीं आएंगे. अगर लॉकडाउन खुलने के बाद उन्हें नशीले पदार्थ मिले तो वो दोबारा उन्हें लेने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा अगर लॉकडाउन के पहले ही कुछ लोगों ने नशे की लत से बाहर आने का मन बना लिया होगा तो उनके लिए ये लॉकडाउन किसी वरदान से कम नहीं होगा.