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एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं भारत की खूनी सड़कों की हकीकत

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों से चलता है कि पिछले साल देश में 4.37 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें करीब 1.55 लाख लोगों की जान चली गई. 85 फीसद से अधिक दुर्घटनाओं और हजारों परिवारों के शोक और दुख का कारण तेज गति और लापरवाही से वाहन चलाना है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 10, 2020, 10:01 PM IST

हैदराबाद : सभी भारतीय नागरिकों के जीवन के अधिकार की जो संविधान से गारंटी मिली है राजमार्गों पर अब भी उसकी धज्जियां उड़ रही हैं. इसका पता राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी ) के ताजा आंकड़ों से चलता है. यह दिल दहला देने वाला आंकड़ा है कि पिछले साल देश में 4.37 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिनमें करीब 1.55 लाख लोगों की जान चली गई.

तेज गति और लापरवाही से वाहन चलाने के खिलाफ और सड़क-किनारे सुरक्षा के 'स्वर्ग जल्दी जाने की तुलना में पृथ्वी पर रहना बेहतर', 'गति रोमांचित करती है लेकिन जान लेती है', 'तेज ड्राइव अंतिम ड्राइव हो सकती है' आदि नारों के व्यापक प्रचार के बावजूद एनसीआरबी की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि सड़कों पर 60 फीसदी दुर्घटनाओं और 86 हजार 241 से अधिक लोगों की मौत का मुख्य कारण तेज गति से वाहन चलाना है. लापरवाह ड्राइविंग के कारण 25.7 प्रतिशत दुर्घटनाएं हुईं और 42 हजार 557 लोगों की जान गई. कुल मिलाकर 85 फीसद से अधिक दुर्घटनाओं और हजारों परिवारों के शोक और दुख का कारण तेज गति और लापरवाही से वाहन चलाना है.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दुख व्यक्त किया कि दुर्घटनाओं के 65 फीसद पीड़ितों की उम्र 18-35 वर्ष के बीच है और इन सड़क दुर्घटनाओं की वजह से भारत की जीडीपी का 3 से 5 फीसद का नुकसान हो रहा है. गडकरी ने पहले घोषणा की थी कि उनकी सरकार 2018 तक घरेलू सड़क दुर्घटनाओं की संख्या को आधा करने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाएगी. दुर्घटनाओं के इन आंकड़ों को देखते हुए उन्होंने पिछले फरवरी में स्टॉकहोम सम्मेलन में अपने मंत्रालय की असफलताओं को स्वीकार किया. केंद्र सरकार की ओर से पेश नया मोटर वाहन अधिनियम अब भी कार्यान्वयन में परेशानियों के दौर से गुजर रहा है.

तेज गति और लापरवाही को तमाम हादसों के लिए दोषी ठहरा देने का अदूरदर्शिता पूर्ण रवैया वास्तविक कारणों को समझना और कठिन बना रहा है और सड़कों पर खूनी रिकॉर्ड बनना जारी है. हर साल लाखों परिवार अपने घर का खर्च चलाने वाले को खो रहे हैं और ये परिवार दयनीय हालत में सड़क पर आ जा रहे हैं. ऐसी स्थिति कब तक बनी रहेगी और कौन इन असहाय लोगों की जिम्मेदारी लेगा और कौन जवाबदेह होगा ?

केंद्रीय सचिवों ने पांच साल पहले घोषणा की थी कि वे डिजाइन तैयार करने के दौरान सड़क सुरक्षा पर विशेष ध्यान देकर, खतरनाक सड़कों की मरम्मत करके, विनिर्माण स्तर पर वाहनों की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करके, वाहन चालकों को उचित प्रशिक्षण सुनिश्चित करके और कानूनों को सख्ती से लागू करके सड़क दुर्घटनाओं को नियंत्रित करेंगे.

गडकरी ने छह महीने पहले कहा था कि जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों में भारत की तुलना में वाहन तेजी से चलते हैं लेकिन मरने वालों की संख्या कम है. उन्होंने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि केवल तेज रफ्तार ही दुर्घटनाओं का कारण है. उन्होंने इसके लिए इंजीनियरिंग की खामियों, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की खामियों, सड़कों पर पर्याप्त संकेतक की कमी आदि को बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में गिनाया.

सवाल यह है कि इन्हें सुधारने के लिए युद्ध स्तर पर कदम क्यों नहीं उठाए जाते हैं ? चार साल पहले यह घोषणा की गई थी कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर कुल 786 क्षेत्रों को सबसे खतरनाक स्थानों के रूप में पहचान की गई है और 11 हजार करोड़ रुपए की लागत से दो साल के अंदर उन्हें दुरुस्त किया जाएगा. गडकरी का अभी ताजा बयान आया है कि सबसे खतरनाक ब्लैक स्पॉट की संख्या अब तीन हजार है.

विश्व बैंक की रिपोर्ट में भारत से अगले दस वर्षों में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने के लिए सड़क सुरक्षा पर करीब 8 लाख 17 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का आग्रह किया गया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे सरकार को प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी ) का 3.7 फीसद तक आर्थिक लाभ होगा लेकिन फिलहाल कोविड को महामारी के बीच सरकार के पास इतने अधिक खर्च के लिए गुंजाइश कहां है?

मोटर वाहन उद्योग जो पांच सेकंड में एक सौ किलो मीटर तक पिकअप के साथ वाहन मुहैया कराने के लिए ग्राहकों को आश्वस्त और उत्साहित करता है यदि जमीनी हकीकत को देखते हुए घरेलू सड़कों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए मानक के अनुरूप गति को धीमी कर नियंत्रण बेहतर करे तो सड़क सुरक्षा में कुछ हद तक सुधार होगा.

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