नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण का समर्थन किया और कहा कि उनके खिलाफ अवमानना मामला कानून पर सवाल खड़े करता है. मामले में संविधान पीठ को सुनवाई करनी चाहिए.
न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने यह भी कहा कि एक स्वत: संज्ञान वाले मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दोषी ठहराया गए व्यक्ति को अंत:अदालती अपील का अवसर मिलना चाहिए. उन्होंने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या से जुड़े मूलभूत सवालों वाले किसी मामले के फैसले के लिए कम से कम पांच न्यायाधीशों की एक पीठ होनी चाहिए.'
जोसेफ ने एक बयान में कहा, 'दोनों ही स्वत: संज्ञान वाले मामलों में, भारत के संविधान की व्याख्या पर कानून के मूलभूत सवालों के मद्देनजर और इसका मूल अधिकारों पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इन विषयों की संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की जरूरत है.'
शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने न्यायालय की अवमानना के दायरे और इसकी सीमा पर कुछ गंभीर सवालों को सुनने का फैसला किया. उन्होंने कहा, 'निश्चित रूप से, कहीं अधिक गंभीर मुद्दे हैं, जिनमें संविधान की व्याख्या से जुड़े कानून के मूलभूत सवाल शामिल हैं.'
उन्होंने कहा, 'उदाहरण के लिए, एक स्वत: संज्ञान वाले मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गए किसी व्यक्ति को क्या अंत: अदालती अपील के लिए अवसर मिलना चाहिए, जैसा कि आपराधिक विषयों में दोष सिद्धि की अन्य सभी परिस्थितियों में होता है, क्या दोषी व्यक्ति अपील के जरिए दूसरा अवसर पाने का हकदार है.'
जोसेफ ने कहा कि न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 19 के तहत एक अंत: अदालती अपील उस स्थिति में मुहैया होती है जब उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने आदेश जारी किया हो और खंडपीठ द्वारा यह दिए जाने के मामले में, अपील उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है.
उन्होंने कहा कि यह प्रावधान न्याय की निष्फलता की बहुत क्षीण संभावना को टालने के लिए ही शायद उपलब्ध कराया गया है. क्या अन्य संवैधानिक अदालत में, उच्चतम न्यायालय में भी, ऐसा संरक्षण नहीं होना चाहिए?