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जानें क्या है ईशनिंदा कानून, इन देशों में है मौत के प्रावधान

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Published : Feb 7, 2020, 11:50 PM IST

Updated : Feb 29, 2020, 2:21 PM IST

दुनिया के लगभग 69 देशों में ईशनिंदा के कानून लागू हैं. इनमें से कुछ देश ऐसे भी है जहां ईशनिंदा मामले में मृत्यु की सजा होती है. भारत में ईशनिंदा कानून लागू है. इसका जिक्र भारतीय दंड संहिता के अध्याय 15 में है. ईशनिंदा कानून के बारे में जानें कुछ रोचक तथ्य...

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हैदराबाद : दुनिया के कई देश ऐसे है, जहां ईशनिंदा कानून लागू है. कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां पर ईश निंदा कानून के तहत मृत्युदंड तक के प्रावधान है. इन दोनों में भारत भी एक ऐसा देश है, जहां ईशनिंदा कानून लागू है. भारत में ईशनिंदा कानून के मामले में तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है. विश्व परिपेक्ष्य से देखें तो सऊदी अरब और पाकिस्तान में इस कानून के सबसे कड़े प्रावधान है, क्योंकि यहां शरिया कानून लागू है. इसके तहत मुत्यु दंड की सजा आसानी से हो सकती है.

भारत की बात करें तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 A के तहत हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन संविधान की धारा 19(2) के मुताबिक बोलने की आजादी पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है.

भारतीय संविधान में ईशनिंदा
भारतीय दंड संहिता का अध्याय15 ईशनिंदा कानून से संबंधित है. इसके तहत प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतंत्रता है. इसके अलावा कोई भी किसी भी दूसरे धर्म का अपमान नहीं कर सकता. इस अध्याय के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति या धर्म का अपमान करता है तो वह दंड का भागीदार होता है.

भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है. भारतीय संविधान सभी धर्मों के लिए समान सुरक्षा प्रदान करता है. संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. भारतीय संविधान सभी व्यक्तियों को समान रूप से अपनी पसंद का धर्म चुनने और उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार देता है.

भारतीय दंड संहिता का यह अध्याय देश में धार्मिक सद्भाव बनाए रखने में राष्ट्र की मदद करता है. इस अध्याय के तहत अपराधों को मोटे तौर पर तीन प्रभागों में वर्गीकृत किया जा सकता है :-

  1. धारा 295 और 297- किसी भी धार्मिक स्थल को तोड़ने या अपमान करने पर.
  2. धारा 295A और 298 - लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर.
  3. धारा 296 - धार्मिक सभाओं को बाधित करना.

धारा 295 A : यदि कोई जान बूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से भारत के नागरिकों के किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा या फिर उस वर्ग के धर्म या धार्मक विश्वास का अपमान करेगा तो उसे तीन साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है.

धारा 298 : किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत पहुचाने के इरादे से कोई जान बूझकर गलत शब्दों का इस्तेमाल करता है. यदि इसके खिलाफ कोई कोर्ट जाता है तो उसे एक साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है.

भारत में ईशनिंदा कानून

  • आईपीसी की धारा 295A ईशनिंदा कानून से संबंधित है.
  • यदि कोई जान बूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी नागरिक की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाएगा तो इसमें दंड का प्रावधान है.
  • धारा 295A एक संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि पुलिस न्यायिक रूप से बिना किसी स्वीकृत वारंट के आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है. इस कानून को 1927 में जोड़ा गया.
  • अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि धारा 295 ए ईशनिंदा के लिए नहीं बल्कि हेट स्पीच के खिलाफ एक धारा है.

अन्य कानून
आईपीसी की धारा 124A, 153A, 153B, 292, और 293 भी ईशनिंदा से संबंधित है. ये खंड किसी भी व्यक्ति या समूह की धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने वाले शब्दों पर रोक लगाते हैं. जो किसी विशेष धर्म के खिलाफ दुश्मनी को उकसाने के लिए होते हैं.

69 देशों में लागू

  • असामाजिक स्थिति और अधिकारों पर एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में दुनिया के 69 देशों में ईशनिंदा कानून लागू है.
  • ह्यूमनिस्ट्स इंटरनेशनल की फ्रीडम ऑफ थॉट रिपोर्ट के 2019 संस्करण में पाया गया है कि छह देशों में ईशनिंदा करने पर मृत्यु दंड का प्रावधान है.
  • रिपोर्ट के अनुसार 18 ऐसे देश हैं, जहां पर ईशनिंदा का कानून रद कर दिया गया है. इनमें से 12 देशों में ईशनिंदा कानून के तहत मृत्युदंड का प्रावधान था, लेकिन एक रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि इनमें से 13 देशों में आसानी से मृत्युदंड दिया जा सकता था.
  • ये आकड़े इस तथ्य के बावजूद आते हैं कि पिछले पांच वर्षों में आठ देशों में ईशनिंदा कानून को रद कर दिया गया है, जिनमें में छह देश यूरोप के है. आयरलैंड में ईशनिंदा कानून को रद करने के लिए जनमत संग्रह कराया गया है, लेकिन अब तक यह लंबित है.

कठोर प्रावधान वाले देश -
रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब और पाकिस्तान में कठोर प्रावधान बनाए गए हैं. क्योंकि यहां पर इस्लामी दंड संहिता और शरिया कानून लागू है. शरिया कानून के तहत तहत ईशनिंदा करने वाले लोग धर्म को ना मानने वाले घोषित कर दिए जाते हैं, जिसकी सजा मौत है.

गौरतलब है कि ईसाई धर्म से आसिया बीबी को ईशनिंदा के मामले में 2010 में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें आठ साल जेल में व्यतीत करने के बाद 2018 में रिहा कर दिया गया था.

हाल ही में आसिया बीबी के जीवन पर एक किताब एनफिन लिबरे (आखिरकार आजादी मिली) आई है, जिसमें आसिया बीबी ने जेल में बिताए अपने दिनों, रिहाई से मिली राहत और एक नए जीवन को संवारने में आ रही दिक्कतों का जिक्र करते हुए कहा है, 'आप मीडिया के जरिए मेरी कहानी जानते हैं. लेकिन जेल, फिर यहां नई जिंदगी, नई शुरूआत के बारे में आप कुछ नहीं जानते.'

उन्होंने कहा, 'मैं कट्टरता की कैदी हो गई थी. आंसू ही जेल में मेरा एकमात्र सहारा थे.' आसिया बीबी ने किताब में पाकिस्तान में जेल की बुरी स्थिति के बारे में बताया है, जहां उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखा गया था.

उन्होंने कहा, 'मेरी कलाइयां जलने लगती थीं, सांस लेना मुश्किल था. मेरी गर्दन में लोहे की पट्टी बंधी रहती थी, जिसे गार्ड एक नट के जरिए कस सकता था. यह पट्टी लोहे की जंजीर से जुड़ी थी और बेहद लंबी थी, जिसका दूसरा छोर मेरी कलाइयों को जकड़ता था. जंजीर गंदे फर्श पर पड़ी रहती थी. आसपास केवल अंधेरा था और था मौत का अहसास.'

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून की आलोचना अक्सर होती रहती है.

ईशनिंदा के प्रावधान अनेक देशों में-

  • ब्रुनेई ने इस वर्ष ईशनिंदा से संबंधित नया कानून बनाया है. इस कानून के अनुसार ईशनिंदा और धर्मत्याग के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है.
  • मॉरिटानिया, जिसने पिछले साल ईशनिंदा और धर्मत्याग के लिए मौत की सजा का प्रवाधान किया था.
  • इंडोनेशिया, जहां हाई-प्रोफाइल ईशनिंदा के मामलों को चिंता का कारण बताया जाता है.
  • ईरान, जहां सरकार ने मजबूर हिजाब कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर शिकंजा कसा है.
  • भारत, जहां रिपोर्ट हिन्दुत्व मान्यताओं से जुड़े अभियोग और अंतर-जातीय हिंसा के बारे में चिंता का हवाला देती है.

धार्मिक रूढ़िवादियों का राज्य प्रवर्तन
यह रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि किस राज्य ने किसी विशेष धार्मिक रूढ़िवादी कानून को लागू किया है. यह चार श्रेणियों में अपने रिकॉर्ड के अनुसार देशों को रैंक करता है. संविधान और सरकार, शिक्षा और बच्चों के अधिकार, समाज और समुदाय और मानवतावादी मूल्यों की अभिव्यक्ति और वकालत.

Last Updated : Feb 29, 2020, 2:21 PM IST

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