न्यूयार्क : अमेरिका में कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसद में इस टिप्पणी का स्वागत किया है कि 1990 में कश्मीरी समुदाय का पलायन शुरू होने पर कश्मीर की पहचान दफन हो गई थी. साथ ही उन्होंने कहा कि इस बात की स्वीकरोक्ति उनके पुनर्वास और न्याय की दिशा में एक कदम है.
‘वैश्विक कश्मीरी पंडित प्रवासी’ ने प्रधानमंत्री मोदी के 'ऐतिहासिक बयान' के लिए का उनका स्वागत किया, जिसमें उन्होंने कश्मीरी पंडितों के दर्द के बारे में बात की थी. इन कश्मीरी पंडितों को उग्रवाद के कारण घाटी छोड़नी पड़ी थी.
जम्मू-कश्मीर को भारत का मुकुट बताते हुए मोदी ने गत छह फरवरी को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के जवाब में कहा था कि 19 जनवरी 1990 की काली रात को कश्मीर की पहचान दफन हो गई थी.
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प्रवासी समूह ने कहा कि दुनियाभर में कश्मीर पंडित 19 जनवरी को ‘जनसंहार दिवस’ के रूप में मनाते हैं, जब रातोरात पूरे समुदाय को पलायन के लिए मजबूर किया गया. इस समूह ने कहा कि उनका अपना गृहक्षेत्र 'हत्याओं, बलात्कार, सम्पत्तियों के विनाश और जातीय नरसंहार के लक्षित अभियान' का गवाह बन गया.