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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने बनाया डीकंपोजर, पराली सड़ाने में कारगर

राजधानी दिल्ली की हवा की गुणवत्ता का स्तर हर रोज गिरता जा रहा है. इसका मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली है. इस समस्या से निपटने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक बोया डीकंपोजर विकसित किया है. इस डीकंपोजर की मदद से पराली को जल्द डीकंपोज किया जा सकेगा.

Bio decomposer Solution
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Published : Oct 30, 2020, 11:56 PM IST

हैदराबाद : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने दिल्ली के पूसा (PUSA) संस्थान में एक बायो डीकंपोजर तकनीक विकसित की है. इस तकनीक को पूसा डीकंपोजर कहा जाता है.

इस तकनीक की मदद से तरल डीकंपोजर तैयार किया जाता है. तरल डीकंपोजर तैयार करने के लिए पूसा कैप्सूल और अन्य समाग्री जैसे बेसन का उपयोग किया जाता है. तरल को तैयार होने में चार-पांच दिन का समय लगता है.

तैयार तरल का खेतों में पड़ी पराली पर छिड़काव किया जाता है. इससे पराली तेजी से डीकंपोज हो जाती है.

बायो डीकंपोजर क्या है?
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने डीकंपोजर कैप्सूल विकसित किया है. इसको पानी में घोल कर खेतों में पराली पर छिड़का जा सकता है. इसकी मदद से पराली जल्दी डीकंपोज हो जाएगी और किसान उसको खाद की तरह इस्तेमाल कर पाएंगे.

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, डीकंपोडर के छिड़काव के बाद उसको अपना काम करने में 20-25 दिन लगते हैं. हालांकि, किसानों का कहना है 20-25 दिन का इंतजार उनके लिए बहुत लंबा है. वह धान की फसल के बाद 10 का इंतजार करते हैं, जिसके बाद वह गेहूं की बोआई शुरू कर देते हैं.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि किसानों को गेहूं की बोआई करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. वह 20-25 दिनों का इंतजार कर सकते हैं.

डीकंपोजर का इस्तेमाल कैसे करें?
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि सात तरह के कवक ऐसे हैं जो कड़े पराली को जल्द डीकंपोज करने में मदद करते हैं.

इन कवकों को चार कैप्सूल में पैक किया गया है. चार कैप्सूलों की कीमत 20 रुपये है. इन कैप्सूलों से इस्तेमाल करने लायक तरल बनाया जाता है, जिसको तैयार होने में चार से पांच दिन लगते हैं.

तरल को बनाने के लिए 25 लीटर उबलते हुए पानी में 150 ग्राम गुड़ मिलाया जाता है. गुड़ से कवक को बढ़ने में मदद मिलती है. तरल के ढंडे हो जाने के बाद उसमें 50 ग्राम बेसन और चार पूसा कैप्सूल मिलाई जाती है.

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इसके बाद तरल को कपड़े से ढक कर अंधेरे कमरे में चार-पांच दिन के लिए रख दिया जाता है. चार-पांच दिन में तरल की सतह पर कवक की मोटी परत जम जाती है. इसको अच्छे से मिलाया जाता है और उसके बाद यह मिश्रण इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है.

कितना डीकंपोजर करना है इस्तेमाल
25 लीटर मिश्रण को 500 लीटर पानी में मिलाकर एक हेक्टेयर भूमि पर छिड़काव किया जा सकता है. इसके बाद यह पराली को 20-25 दिन में डीकंपोज कर देगा.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि डीकंपोजर उन खेतों में भी काम करेगा, जहां पर पराली को मशीन से काटा नहीं किया गया है.

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि डीकंपोजर डालने के बाद किसानों को 20-25 दिन इंतजार करने की जरूरत नहीं है. वह 10-15 दिन के बाद बोआई के लिए जमीन को तैयार करना शुरू कर सकते हैं.

तकनीक का कैसे हो रहा इस्तेमाल
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि डीकंपोजर का पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में परीक्षण किया जाएगा.

मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी कि पंजाब और हरियाणा में 100 हेक्टेयर भूमि पर इसका उपयेग किया जाएगा. दिल्ली में 800 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश की 10,000 हेक्टेयर भूमि पर किया जाएगा.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान बीते डेढ़ वर्ष से डीकंपोजर पर परीक्षण कर रहा है. इस तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए 2019 में चार कंपनियों को लाइसेंस दिया गया था और 2020 में दो कंपनियों को इसका लाइसेंस दिया गया है.

दिल्ली ने दो डीकंपोजर का इस्तेमाल शुरू भी कर दिया है. 11 अक्टूबर से वह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की मदद से इसका छिड़काव कर रही है.

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