दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

चीन को 'झटका', भारत के इन राज्यों में निवेश करेगा ताइवान - India Taiwan trade ties

चीन के साथ बढ़ते तनाव की वजह से भारत और ताइवान करीब आ रहे हैं. ताइवान भारत में निवेश करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. विशेषज्ञों की राय है कि भारत को इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए. भारत को अब चीन के प्रति संकोच छोड़ देना चाहिए. एक रिपोर्ट हमारे संवाददाता चंद्रकला की.

India Taiwan trade talks
प्रतीकात्मक फोटो

By

Published : Oct 21, 2020, 7:18 PM IST

Updated : Oct 21, 2020, 8:31 PM IST

नई दिल्ली: भारत, ताइवान के साथ व्यापार वार्ता पर विचार कर रहा है. चीन के साथ संकोच को छोड़कर भारत ताइवान से अपने संबंध और अधिक प्रगाढ़ कर रहा है. ताइवान ने भी भारत में निवेश करने का मन बनाया है. वह चीन के बजाए भारत समेत एशिया के दूसरे देशों को प्राथमिकता दे रहा है.

सूत्रों के अनुसार, ताइवान और भारत कई वर्षों से व्यापार वार्ता करना चाह रहे हैं. लेकिन राजग की अगुआई वाली सरकार आगे बढ़ने के लिए अनिच्छुक रही है. क्योंकि ऐसा करने से चीन के साथ तनातनी बढ़ने का अंदेशा था. और इसे लेकर विश्व व्यापार संगठन में किसी भी समझौते के पंजीकृत होने को लेकर भी विवाद हो सकता था. लेकिन अब स्थितियां बदल रहीं हैं.

ताइवान के साथ व्यापार समझौते पर औपचारिक रूप से बातचीत शुरू करने के लिए भारत सरकार के भीतर समर्थन बढ़ रहा है, क्योंकि दोनों देशों के चीन के साथ संबंध खराब हो रहे हैं.

ताइवान की नई दक्षिणबद्ध नीति में विकास की एक नई लहर दिख रही है, क्योंकि इस नीति के तहत, ताइवान भारत में बड़े पैमाने पर उत्पादन केंद्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है.

नई दिल्ली ताइपे इसपर चर्चा करने को लेकर उत्साहित नजर आ रहे हैं.

मई 2016 में ताइवान के राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद, ताइवान की नई दक्षिणबद्ध नीति राष्ट्रपति त्से इंग-वेन द्वारा शुरू की गई एक नीतिगत पहल है.

विश्लेषक कहते हैं कि भारत-ताइवान संबंध को बढ़ते देखना दिलचस्प है और बिन्दुओं को जोड़ना भी मुश्किल है, क्योंकि ताइवान में भारत ने अचानक रुचि दिखाई है, जबकि पिछले एक दशक से ताइवान भारत में निवेश का स्त्रोत बनने की कोशिश करता रहा है.

पढ़ें-फिजी में हिंसक झड़प के बाद ताइवान और चीन के बीच आरोप प्रत्यारोप शुरू

ईटीवी भारत से बात करते हुए, नारायणन रविप्रसाद, सेंटर फॉर ईस्ट एशियन स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर, जेएनयू ने कहा भारत के उत्तरी पड़ोसी होने के कारण भारत में ताइवान के निवेश को आमंत्रित करने को लेकर भारत ने अपने उत्तरी पड़ोसी के कारण सावधानी बरती है. भारत अभी तक 1962 के भय की प्रक्रिया से गुजर रहा है और 1962 में चीन और भारत के बीच हुए युद्ध में भारत को जो नुकसान हुआ है, वह आज भी उससे उभर नहीं पाया है. शायद चीन भारत के मानसिक खाके को समझ गया है, इसलिए, भारत ताइवान को व्यापर क्षेत्र में आमंत्रित करने को लेकर एहतियात बरत रहा है.

रविप्रसाद ने बताया कि गलवान घाटी में टकराव के साथ ही बढ़ती चीनी आक्रामकता और भारत की भूमि पर उसके अवैध दावों के बाद, भारत सरकार ने फैसला किया है कि समय आ गया है कि भारत को निवेश के लिए ताइवान से संपर्क करना चाहिए, क्योंकि 2009-2010 के बाद से अपनी 'गो साउथ पॉलिसी' में ताइवान ने फैसला किया कि उनके निवेश के लिए केवल मुख्य भूमि चीन पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए. 'गो साउथ पॉलिसी' शुरू में तत्कालीन राष्ट्रपति मा-यिंग-जौ के शासन के तहत दक्षिण पूर्व एशिया में शुरू हुई थी.

ताइवान धीरे-धीरे अपने निवेश को पूरी तरह से चीन की मुख्य भूमि से हटाकर एशिया के अन्य हिस्सों में स्थानांतरित करना चाह रहा है और भारत अपने बड़े बाजार के कारण एक बहुत महत्वपूर्ण दावेदार है. ताइवान भारत के दक्षिणी हिस्सों में निवेश करना पसंद करता है, जिसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य शामिल हैं.

पढ़ें-'मालाबार' से जुड़ेगा ऑस्ट्रेलिया, ताइवान पर चीन की आक्रामकता पर क्वाड का जवाब

शिक्षाविद ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारत-ताइवान सूचना प्रौद्योगिकी के विकास में एक-दूसरे के साथ भी भागीदारी कर सकते हैं. इसके अलावा, डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भारत को डब्ल्यूएचओ में ताइवान को आमंत्रित करके नेतृत्व करना चाहिए, क्योंकि ताइवान में एशिया और दुनिया में सबसे अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली मौजूद है. यह वह समय है जब भारत को दुनिया पर दबाव बनाना चाहिए कि ताइवान को अब और हाशिये पर नहीं रखा जा सकता है. इस तरह से भारत ताइवान के साथ संबंध को बेहतर बनाने के लिए अहम भूमिका निभा सकता है और इस बात को अंजाम देने के लिए पेशेवर और प्रबंधकीय तरीके से पूरा करने की जरूरत है.

इसके अलावा, शिक्षा, पर्यटन, सिविल इंजीनियरिंग, स्मार्ट कृषि, सटीक चिकित्सा, कौशल प्रशिक्षण और औद्योगिक स्वचालन ताइवान के साथ सहयोग के महान अवसर प्रदान करने वाले क्षेत्र हैं.

हालांकि, इस बात का यहां विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए कि 2018 में भारत और ताइवान ने आर्थिक संबंधों को और विस्तारित करने के लिए एक द्विपक्षीय निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किए. वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, 2019 में उनके बीच व्यापार 18% से बढ़कर 7.2 बिलियन डॉलर हो गया है.

ताइवान के साथ व्यापार सौदा भारत के प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स में अधिक निवेश के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा. इसके अलावा, रिपोर्टों में कहा गया है कि इस महीने की शुरुआत में, केंद्र ने ताइवान की फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप, विस्ट्रॉन कॉर्प और पेंटागन कॉर्प सहित फर्मों को मंजूरी दे दी है, क्योंकि सरकार पांच वर्षों में स्मार्टफोन उत्पादन के लिए 10.5 ट्रिलियन रुपये से अधिक के निवेश को आकर्षित करना चाहती है.

पढ़ें-ताइवान की राष्ट्रपति से अमेरिकी मंत्री की भेंट, चीन बौखलाया

रिपोर्टों के अनुसार, भारत के साथ की गई कोई भी औपचारिक वार्ता ताइवान के लिए एक बड़ी जीत होगी, क्योंकि उसने चीन के दबाव के कारण अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार वार्ता शुरू करने का सुझाव दिया है. अधिकांश देशों की तरह, भारत ताइवान को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देता है, दोनों सरकारों ने 'प्रतिनिधि कार्यालयों' के रूप में अनौपचारिक राजनयिक मिशन बनाए रखे हैं.

रविप्रसाद ने आगे कहा कि भारत को निवेश के लिए ताइवान को प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि ताइवान अर्धचालक, पेट्रो-रसायन, वायरलेस संचार उपकरण, टेलीविजन और कंप्यूटर के अग्रणी निर्माताओं में से एक है.

ताइवान स्थित कंपनी क्वालकॉम, जो एप्पल के लगभग 90% स्मार्ट फोन की अस्सेम्ब्लिंग करती है, जिनके कारखाने चीन में स्थित हैं और कुछ कंपनियों को भारत में स्थानांतरित करने के मौके की तलाश में है.

विशेषज्ञ ने आगे सुझाव दिया कि ताइवान भारत-प्रशांत में चीन का मुकाबला करने में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत सहित अन्य देशों के साथ-साथ 'क्वाड' में एक सहायक भूमिका निभा सकता है और भारत को इसके लिए जोर देना चाहिए. ताइवान चीन की मुख्य भूमि का एक क्षेत्र है, जिसकी कूटनीतिक पहचान ज्यादातर दक्षिण-प्रशांत के देशों में है.

Last Updated : Oct 21, 2020, 8:31 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details