नई दिल्ली :प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच अगले माह द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन होने वाला है. ऐसी खबरों के बीच चीन सरकार से संबद्ध एक मीडिया ने दावा किया है कि नई दिल्ली और टोक्यो के लिए बीजिंग के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल होगा. जापानी अध्ययन के एक प्रमुख भारतीय विद्वान ने कहा है कि भारतीय-जापानी रिश्ते का लक्ष्य किसी तीसरे देश के विरुद्ध नहीं है.
चीन के प्रभावशाली अंग्रेजी दैनिक 'ग्लोबल टाइम्स’ में 'हार्ड फॉर इंडिया, जापान टू फॉर्म ए यूनाईटेड फ्रंट अगेंस्ट चाइना’ यानी 'भारत और जापान के लिए चीन के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में शिंघुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रेटजी इंस्टीट्यूट के अनुसंधान विभाग के निदेशक क्विंग फेंग ने कहा है कि चीन को दबाने के लिए यदि भारत जापान को मनाने की कोशिश करता है तो वह नाकाम होकर बर्बाद ही होना है. क्विंग का यह लेख इस साल भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर हुए टकराव को देखते हुए आया है, जिसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पिछले 45 साल में पहली बार दोनों पक्षों के कई जवानों की मौत हुई थी.
क्विंग ने लिखा है कि सीमा पर टकराव के बाद भारत ने सीमा पर विवाद जारी रहते ही एकतरफा और अनुचित काम किए हैं. उदाहरण के तौर पर भारत ने टिक-टॉक और वी-चैट सहित चीन के 59 मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. भारत चीन को लगाम खींचकर रोकने के लिए जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी मनाने में लगा है. हालांकि, यह महामारी के बाद के युग में भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में या विकास में मदद नहीं करेगा. चीन को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करके भारत आर्थिक मामले में और अधिक कष्ट भोगेगा. भारत की राष्ट्रीय शक्ति चीन के राष्ट्रीय हितों को चुनौती देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती. हालांकि, इसके साथ ही इस लेख में कहा गया है कि चीन-भारत और चीन-जापान के रिश्ते उतनी तेजी से नीचे नहीं गए जितनी चीन और अमेरिका के गए हैं.
लेख में कहा गया है कि नई दिल्ली बीजिंग पर दबाव बनाना चाहता है लेकिन अब भी एक सामान्य प्रवृत्ति वार्ता करके ही चीन-भारत के विवाद को सुलझाना है.
जहां तक जापान की बात है तो वह महामारी के बाद के समय में अपने आर्थिक विकास पर विचार करते हुए हो सकता है कि अब भी चीन के साथ रिश्तों को स्थिर करना चाहे. यही मामला है कि नई दिल्ली और टोक्यो बीजिंग को उकसाने के लिए अत्यधिक बयानबाजी और चाल नहीं चलेंगे.
क्विंग ने आगे लिखा है कि चीन का भारत और जापान के साथ विवाद भले ही है, नई दिल्ली और टोक्यो एशिया में संतुलन बनाए रखने के लिए सहयोग को मजबूत करना चाह सकते हैं. हम एशिया की दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं भारत और जापान के बीच सामान्य सहयोग को देखना चाहेंगे. कुल मिलाकर उनकी सफलता पूरे एशिया क्षेत्र में सहयोग के लिए सुचालक है.
लेकिन ऐसा सहयोग संयुक्त रूप से चीन पर दबाव बनाने के मकसद पर आधारित है तब हम लोग निश्चित रूप से इसके विरोध में हैं, क्योंकि यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र को अस्थिर करेगा.
भारत के विदेश मंत्रालय को हालांकि अभी तारीख तय करनी है लेकिन मीडिया की खबरों में बताया गया है कि वास्तव में मोदी और आबे के बीच वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन सितंबर की शुरुआत में होने की संभावना है.