लद्दाख के गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में दोनों पक्षों को भारी नुकसान पहुंचा है. यह पिछले 45 सालों में दोनों देशों के बीच पहली हिंसक झड़प है, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक हताहत हुए हैं.
कहा जा रहा है कि झड़प के दौरान चीनी सैनिकों ने भारतीय सेना के जवानों पर लोहे की छड़ों, पत्थरों से और लात-घूंसों से हमला किया? जो लोग चीन से संबंधित घटनाक्रम पर करीब से नजर बनाए हुए हैं. उनके मन में कई जवाब एक साथ आते हैं. क्या चीन ने अपने भीतर कई दिनों से पाली हुई भड़ास को निकाला है?
डीबीओ रोड पर गालवान घाटी के पास गश्ती प्वाइंट 14 पर यह झड़प हुई. सोमवार रात को भारतीय सैनिक गश्त कर रहे थे. इस दौरान चीनी सैनिकों से आमना-सामना हुआ और फिर दोनों तरफ से फायरिंग हुई.
क्या है वास्तविक नियंत्रण रेखा?
वास्तविक नियंत्रण रेखा भारत और चीन के बीच अलग-अलग धारणाओं के अनुसार बनी एक लचीली सीमा व्यवस्था है. अपनी धारणा के अनुरूप तय किए गए स्थान तक दोनों देशों के सैनिक वास्तविक नियंरण रेखा पर गश्त करते हैं. लद्दाख क्षेत्र में दोनों देशों के बीच कोई विशिष्ट सीमांकन रेखा नहीं है, इस प्रकार इसे सैन्य नेतृत्व की धारणा के आधार पर परिभाषित किया जाता है कि सेना के जवानों को किस स्थान पर गश्त करनी चाहिए. हालांकि दोनों देशों द्वारा स्पष्ट प्रोटोकॉल परिभाषित हैं जिसके मुताबिक तय होता है कि वास्तविक नियंरण रेखा पर शांति कैसे बनाए रखनी है.
ये भी पढ़ें-गलवान घाटी में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू की अंतिम विदाई
वास्तविक नियंत्रण रेखा बहुत ऊंचाई वाले क्षेत्र में स्थित है जिसकी निगरानी भारत की तरफ से ज्यादातर सेनाओं द्वारा और कुछ स्थानों पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस द्वारा की जाती है. लद्दाख के पूर्वी ओर पंगोंग झील और वास्तविक नियंरण रेखा पर गलवन घाटी मुख्य रूप से विवादास्पद क्षेत्र हैं. झील का एक-तिहाई हिस्सा चीन के अधिकार क्षेत्र में है और बाकी भारत के पास है. यहां दो भौगोलिक स्थान हैं जिन्हें फिंगर 4 और फिंगर 8 कहा जाता है. चीनी फिंगर 4 को वास्तविक नियंत्रण रेखा मानते हैं और भारतीय फिंगर 8 को मानते हैं.
घटना गलवान घाटी में डीबीओ मार्ग पर में घटी है. यह मुख्य सड़क उत्तर लद्दाख को आपूर्ति पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए गलवान घाटी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इस मुख्य मार्ग की रक्षा करती है. इससे उद्देश्य साबित हो जाता है कि चीनी सैनिकों ने फिंगर 4 तक पहुंचने का प्रयास क्यों किया और यह स्थान दोनों सेनाओं के बीच विवाद की जड़ कैसे बन गया.
गलवान घाटी क्यों है महत्वपूर्ण
गलवान घाटी भारतीय सेना के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. उसके ठीक पीछे स्थित अक्साई चिन है, इसलिए यह चीनियों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान है. चीनी सेना भारत के लिए गलवान क्षेत्र का महत्त्व बखूबी जानती है, क्योंकि यह घाटी डीबीओ मार्ग की रक्षा करती है जोकि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूर्वी लद्दाख में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए जीवन रेखा है.
हालिया हिंसक झड़प के लिए चीनी सेना द्वारा इस स्थान को चुनने का एक कारण इस यथास्थिति के महत्वपूर्ण सीमा चिन्ह को बदल डालना था. भारतीय पक्ष ने कोर कमांडर स्तर पर दोनों पक्षों के बीच 6 जून को हुई सहमति के प्रोटोकॉल के अनुरूप इस स्थान तक गश्त की. कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में सेना की इकाई ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव की तीर्वता को घटाने की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए पूरी तरह से संधि का पालन किया. जब उन्होंने वहां कुछ तम्बू गड़े हुए पाए तो उन्हें नष्ट करना शुरू कर दिया. तभी भारी संख्या में तैनात चीनी सैनिकों ने आक्रामक रूप से हमला बोल दिया. वे पूरी तरह से तैयार होकर आए थे और उन्हें हिंसक उपायों को अपनाने के साफ निर्देश प्राप्त थे. इसके विपरीत भारतीय पक्ष पहले ही दिन से इस समस्या को शांतिपूर्वक हल करना चाहता था.
ये भी पढ़ें-राहुल ने सरकार से पूछा, 'निहत्थे क्यों थे हमारे सैनिक ?'
इतनी जानों के खोने के पीछे कई करण हैं. इनमें से एक है तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के राज्य की यथास्थिति में बदलाव. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के लिए एक और अड़चन जो उसे हिंसक साधनों को अपनाने के लिए उकसाती है, वह है अटूट सड़कों से पुलों तक का ढांचागत विकास जो कटे हुए इलाकों और गांवों को मोटर चलाने योग्य सड़कों से जोड़कर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर खानाबदोशों के जीवन को आसान बनाता है.
चीनी पक्ष की बेचैनी काफी हद तक स्पष्ट नजर आने लगी थी जब जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन राज्य को भारत सरकार द्वारा सीधे अपने शासन के अंतर्गत ले लिए गया. जम्मू-कश्मीर के नक्शे से लद्दाख को हटाकर, दोनों हिस्सों को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया जिसने इस क्षेत्र को एक विशेष दर्जा प्रदान किया था.
ऐसा नहीं है कि लद्दाख की सीमा पर कभी परेशानी या तनाव नहीं था. तकरीबन हर सप्ताह सेना के स्तर पर बातचीत होती रही है. राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक समझ के साथ दृष्टिकोण कुल मिलाकर यह था कि कई मोर्चों को खोलने से बचने का प्रयास जारी रखना है. लेकिन इस बार पड़ोसी देशों के साथ मनमुटाव व्याप्त है. चीन ने तनावपूर्ण स्थितियों को बढ़ाने का काम उस समय अंजाम दिया है जबकि उसको नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान से समर्थन प्राप्त है. नेपाल और भारत के बीच कालापानी और लेपुलेक को लेकर और कश्मीर के मुद्दे पर नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच अशांत सीमा विवाद को लेकर संबंधों में इस तरह के तनावपूर्ण मार्ग पर कभी नहीं जाते देखा गया.
सीपीईसी (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा)
चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को क्षेत्र में खेल-परिवर्तक के रूप में वर्णित किया गया है. गिलगित-बाल्टिस्तान (पीओके) क्षेत्र से काशगर और अरब सागर के बीच का संपर्क चीनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाला है. सीपीईसी परियोजना के लिए पाकिस्तान के भारी समर्थन की वजह है कि उसे कश्मीर के मुद्दे पर अपनी अंतरराष्ट्रीय आवश्यकताओं के लिए चीन द्वारा पूरा समर्थन प्राप्त है.
चीन ने कश्मीर के मुद्दे पर हमेशा ही पाकिस्तान का साथ दिया है, चाहे वो घाटी में अलगाववादी ताकतों को मजबूत करना हो या फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा उसे काली सूची में जाने से बचाना हो. यहां तक कि चीन ने आतंकवादी कमांडर मौलाना मसूद अजहर को बचाने की कोशिश की, जो एक पत्रकार के भेष में पुर्तगाली पासपोर्ट से लैस भारतीय क्षेत्र में दाखिल हुआ था और बाद में कश्मीर में गिरफ्तार किया गया था और फिर भारत के विमान आईसी-814 जिसका पंजाब से नेपाल के रास्ते में अपहरण कर लिया गया था, उसपर सवार यात्रियों की अदला-बदली में उसे छोड़ दिया गया था.
ये भी पढ़ें-जानें, क्या भारत-अमेरिकी रिश्तों के कारण चीन ने बदले अपने तेवर
मसूद अजहर ने आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद की स्थापना की और उसका संचालन गिलगित-बल्टिस्तान इलाकों में करता था. चीन ने उसे बचाने की कोशिश की, जबकि भारत उसे संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक आतंकवादी के रूप में काली सूची में वर्णित करवाने की कोशिश कर रहा था. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी उपद्रव मचाए हुए हैं. चीन कभी भी सड़क निर्माण स्थलों पर कोई व्यवधान नहीं चाहता था, जो कि मुख्य रूप से हो सकता है अगर अजहर जैसे लोगों को उसके साथ नहीं लिया जाता.
अब यह सवाल बना हुआ है कि भारत को सभी प्रमुख तीन मोर्चों पर दबाव में आने से बचने के लिए क्या करना चाहिए. नेपाल के साथ अपने तनाव को कम करके सामान्य स्थिति बहाल करने का कार्य भारत को मुख्य कार्यसूची में शामिल करना चाहिए. दूसरा, चीन के मुद्दे को राजनयिक और राजनीतिक समाधान पर छोड़ना और सैन्य विकल्प को अंतिम विकल्प रखना, वह भी तब जब राजनीतिक साधन पूरी तरह से समाप्त हो चुके हो जाएं. नियंत्रण रेखा पर तनाव एक कभी न समाप्त होने वाला मुद्दा है, उसे वास्तविक नियंत्रण रेखा से दूर रखना होगा, जो चीन और पाकिस्तान के घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए एक विस्मयकारी काम होगा. चीन के मामले में बिना संघर्ष में शामिल हुए युद्ध को जीतना होगा अन्यथा यह सभी संबंधित पक्षों के लिए एक बड़ी आपदा का कारण बनने वाला है.
(बिलाल भट, न्यूज एडिटर, ईटीवी भारत)