हैदराबाद : करोना वायरस महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन में दुनिया थम सी गई है. नतीजतन, सभी सिस्टम अचानक बंद हो गए हैं. इसमें न्यायपालिका प्रणाली भी शामिल है. दरअसल, वर्तमान व्यवस्था के कारण अन्य सभी प्रणालियों की तरह न्यायालयों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
सभी तंत्र प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से अपने कार्यबल और तंत्र प्रक्रियाओं को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
हालांकि अब समय आ गया है कि न्याय प्रणाली भी इस संकट की घड़ी में तकनीक को अपनाए और उसे अपने कार्य प्रणाली में शामिल करके उसका लाभ उठाए.
अगर न्यायालय तकनीक का इस्तेमाल करके ऑनलाइन सुनवाई शुरू कर दी जाए तो वकील और मुवक्किल दोनों ही बिना कोर्ट जाए केस की सुनवाई में हिस्सा ले सकते हैं.
हमें इस तरह के उपायों के लिए तंत्र और प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है. जैसे कि सभी अदालतों में एक लाइसेंस प्राप्त वकील को घर पर वीडियो कॉन्फ्रेंस की सुविधा होने और आवश्यक्तानुसार उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
वीडियो कॉन्फ्रेंस से गवाहों से पूछताछ की संभावना का पता लगाया जा सकता है, लेकिन अगर ऐसा संभव नहीं है तो बिना गवाहों वाले मामलों की ऑनलाइन सुनवाई की जा सकती है. ताकि दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को लॉकडाउन के दौरान अदालत में न आना पड़े.
अधिकांश आपातकालीन सुनवाई, जैसे कि अदालतों में जमानत याचिकाएं, वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनी जा रही हैं. पहले की तुलना में कुछ सीमित तकनीकी परिवर्तन हुए हैं, जैसे कि सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई.
पढ़ें-एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने की मांग- जुलाई से शुरू हो अदालत
अदालत की कार्यवाही में काफी भीड़ जमा हो जाती है. इस समस्या का समाधान ई-फाइलिंग दस्तावेजों द्वारा, लाइव वेबकास्टिंग के माध्यम से कोर्ट रूम की सुनवाई और सामान्य मामलों में ऑनलाइन साक्ष्य दर्ज करके पूरा किया जा सकता है.
न्यायपालिका प्रणाली किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ है. ऐसी स्थितियों में जहां प्रशासन लोकतंत्र का पालन नहीं कर रहा है और कुछ संप्रदाय/लोग गैर कानूनी कार्यों का सहारा ले रहे हैं, किसी देश के नागरिकों की अंतिम आशा देश की न्यायिक प्रणाली में होता है.