नंदीग्राम (प.बंगाल) : रक्तरंजित नंदीग्राम के संघर्ष ने ममता बनर्जी को एक जुझारू जन नेता की पहचान दी और अब इसी जमीन पर उन्हें कभी उन्हीं के सिपहसालार रहे शुभेंदु अधिकारी से कड़ी चुनौती मिल रही है. आम तौर पर ग्रामीण और शहरी पश्चिम बंगाल की विशेषताओं को अपने में समेटे सामान्य कृषि क्षेत्र नजर आने वाले इस इलाके को भू-अधिग्रहण विरोधी संघर्ष ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया था. विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं एक बार फिर यहां संघर्ष का खतरा मंडराने लगा है, जिससे नंदीग्राम की शांति भंग होने का अंदेशा है.
औद्योगीकरण के लिए सरकारी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कभी काफी हद तक एक जुट होकर सबसे खूनी संघर्ष का गवाह बना नंदीग्राम आज सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकृत नजर आता है.
प्रदेश में तत्कालीन वामपंथी सरकार द्वारा यहां विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) बनाने के लिये भूमि अधिग्रहण के खिलाफ 2007 में हर तरफ सुनाई देने वाले नारे ‘तोमर नाम, अमार नाम…नंदीग्राम, नंदीग्राम’ (तुम्हारा नाम, मेरा नाम नंदीग्राम, नंदीग्राम) से यह इलाका अब काफी आगे निकल आया है.
आज नंदीग्राम की दीवारों पर धुंधले दिखाई देते तोमार नाम अमार नाम, नंदीग्राम, नंदीग्राम की जगह जय श्री राम का नारा प्रमुखता से दिखता है.
ममता बनर्जी ने की यहां चुनाव लड़ने घोषणा
इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सबसे बड़ी वजह क्षेत्र के कद्दावर नेता और तृणमूल कांग्रेस में अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके शुभेंदु अधिकारी का भाजपा में शामिल होना और फिर ममता बनर्जी का यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा करना है.
बनर्जी द्वारा सोमवार को की गई घोषणा का पूरे पूर्वी मिदनापूर्व जिले में असर होगा.
बनर्जी और अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे हैं. टीएमसी सुप्रीमों पथ प्रदर्शक के तौर पर रहीं तो अधिकारी जमीनी स्तर पर उनके सिपहसालार रहे जो एसईजेड के खिलाफ जन रैलियों का आयोजन करते थे. इस एसईजेड में इंडोनेशिया के सलीम समूह द्वारा रसायनिक केंद्र स्थापित किया जाना था.
टीएमसी के लोकसभा सदस्य और अधिकारी के पिता शिशिर तब भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति (बीयूपीसी) के संयोजक थे. इस समिति में विभिन्न राजनीतिक विचारधारा के लोग शामिल थे. टीएमसी, कांग्रेस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और यहां तक की वाम दलों के असंतुष्ट सदस्यों ने भी सरकार के साथ एकजुट होकर यह संघर्ष किया.
पश्चिम बंगाल की सियासत में वामदलों और कांग्रेस के हाशिये पर जाने के बाद नंदीग्राम में बनर्जी की टीएमसी और भाजपा के बीच एक कड़ी व कड़वाहट भरी सियासी जंग के आसार बन रहे हैं.
विरोधी दलों की रैलियों पर हमले हो रहे हैं, लोग जख्मी हो रहे हैं.
बीयूपीसी के संघर्ष के बाद इस क्षेत्र में कोई उद्योग नहीं आया और नंदीग्राम की अर्थव्यवस्था का मुख्य रूप से कृषि उत्पादों, चावल व सब्जियों और आसपास के इलाकों में ताजा मछली की आपूर्ति पर टिकी है.
नंदीग्राम में 2007-11 के बीच संघर्ष से यहां की शांति भंग हुई जब बूयीपीसी और माकपा समर्थकों के बीच हुई झड़प में कई लोग मारे गए लेकिन इसके बावजूद इलाके में कभी धार्मिक या सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं हुआ और मतभेद पूरी तरह राजनीतिक ही थे.