दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

झुग्गियों में जीवन बसर कर रहे हैं PAK से आए शरणार्थी, देखें वीडियो

दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास मजनू के टीले में पाक से आए तकरीबन 500 शरणार्थी रहते हैं, जो जिनके हालात बेहद ही खराब हैं. जब ईटीवी भारत ने खुद जाकर उनके हालात जानने की कोशिश की. देखें पूरी रिपोर्ट

By

Published : Jun 20, 2019, 11:23 PM IST

पाक से आए शरणार्थी तरस रहे रोजी-रोटी को

नई दिल्ली: देशभर में आज ही के दिन विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. दिल्ली में मजनू का टीला के पास पाक से आए तकरीबन 500 प्रवासी रहते हैं. इनमें से ज्यादातर बीते 6-7 सालों से यहां आकर बसे हैं. पाक से आए ये प्रवासी झुग्गी झोपड़ियों में अपना जीवन बिता रहे हैं. समस्याओं से भरे जीवन के बीच यहां के युवाओं ने भविष्य के सपनों की उम्मीद ही खो दी है.

ईटीवी भारत ने यहां के कई लोगों से बातचीत की और समझने की कोशिश की कि क्या कारण है कि इन्हें पाकिस्तान से हिंदुस्तान आकर में बसना पड़ा और हिंदुस्तान में बसे ये लोग किन किन समस्याओं को झेल रहे हैं.

पाक से आए शरणार्थियों के बुरे हाल

'हिंदू होने के कारण छोड़ना पड़ा पाकिस्तान'
7 साल पहले पाकिस्तान से आकर यहां बसे 67 वर्षीय गोविंदा ने बताया कि अच्छी जिंदगी की उम्मीद लेकर हिंदुस्तान आए थे. जिंदगी तो मिल गई, लेकिन जीने के लिए जरूरतों का अभाव पड़ गया है. गोविंदा का कहना हैं कि इसी हाल में बीते 7 साल से रह रहे हैं. पानी की व्यवस्था नहीं है साथ ही बिजली भी नहीं मिलती है.

ताराचंद की व्यथा भी कुछ ऐसी ही है. उन्होंने बताया कि बंटवारे के बाद पाकिस्तान में हिंदुओं की दशा ज्यादा खराब हो गई थी. हमें कहा जाने लगा कि आप हिंदू हो, आपका मुल्क हिंदुस्तान है, आप हिंदुस्तान जाओ और इसी के चलते एक दिन हम अपना सबकुछ छोड़कर यहां आ गए.

'नागरिकता की दरकार है'

2001 में पाकिस्तानी हिंदुओं का जो पहला जत्था आया था, उसमें सोना दास भी आए थे. उस समय दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में ये लोग रहने लगे. लेकिन फिर बाद में सरकार की तरफ से कहा गया कि आप सभी एक जगह पर इकट्ठे बस जाएं. फिर इन्हें मजनू का टीला के पास जगह दी गई. सोना दास यहां रहने वाले सभी लोगों के प्रधान हैं. वे हर जरूरत और काम में इनका नेतृत्व करते हैं.

पढ़ेंः पाक को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने तैयार किया IBG- जानें विशेषज्ञों की राय

सोना दास ने बताया कि ये लोग यहां पर इज्जत से रहे तो रहे हैं, लेकिन सुविधाओं का पूरा अभाव है. उन्होंने कहा कि बस हमें नागरिकता की दरकार है कि हिंदुस्तान हमें अपना ले.

वहीं दूसरी ओर कुलवंती का कहना है कि यह हमारा देश था इसलिए हम यहां पर चले आए. उन्होंने कहा कि हम वहां पर गीता भी पढ़ते थे, रामायण भी पढ़ते थे और यहां भी पढ़ते है. कुलवंती ने बताया कि वहां पर मंगलसूत्र पहनने पर पाबंदी थी, सिंदूर लगाने पर पाबंदी थी, लेकिन यहां पर ऐसा कुछ नहीं है और यहां हम अच्छे से जिंदगी जी रहे हैं.

'उम्मीदों के साथ आए थे भारत'
करीब 6 साल पहले पाकिस्तान से अपने घर वालों के साथ हिंदुस्तान आई दो बहनों वैजयंती माला और ललिता का कहना है कि यहां पर उन्हें स्कूल में एडमिशन नहीं मिल पा रहा है. दोनों बहने पढ़कर कुछ बेहतर करना चाहती हैं, लेकिन नागरिकता की वजह से वह पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं. वैजयंती माला कहती है कि वे तो उम्मीदों के साथ भारत आई थीं, लेकिन यहां पर उम्मीदें दम तोड़ती दिख रही हैं.

भविष्य की है चिंता
करीब 120 परिवारों की इस बस्ती में सभी पाकिस्तान से अच्छी जिंदगी के सपने लेकर हिंदुस्तान आए थे कि हिंदुस्तान उन्हें अपना लेगा. जिस हिंदू पहचान ने उन्हें अपने घर, अपनी जमीन और अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया, वहीं हिंदू पहचान शायद भारत में उनकी ताकत बन जाए. लेकिन बीते कुछ सालों में जिस तरह वे एक ही जिंदगी जी रहे हैं जिससे उन्हें डर सता रहा है कि क्या बड़े होते उनके बच्चे भी इसी जिंदगी को जिएंगे.

ABOUT THE AUTHOR

...view details