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स्तरहीन शिक्षा और बेरोजगार उत्पादन के केंद्र बन गए हैं भारतीय संस्थान - विश्वविद्यालय

रचनात्मक शिक्षण और उच्च मानकों पर ध्यान देने वाले दुनिया के दस सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों ने 800 से अधिक नोबेल पुरस्कार विजेता दिए हैं. इसके विपरीत भारत में नियुक्तियों में लापरवाही, बुनियादी ढांचे का अभाव और धन आवंटन की घोर कमी के कारण 90% कॉलेजों और 70% विश्वविद्यालय खराब शिक्षा और बेरोजगारों के उत्पादन केंद्रों के पर्याय बन गए हैं. ऐसे संस्थान जो घरेलू स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वह कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं?

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प्रतीकात्मक चित्र

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Published : May 8, 2020, 6:18 PM IST

हैदराबाद : एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय, लगभग 40 हजार कॉलेज और साढ़े ग्यारह हजार संस्थान के साथ भारतीय उच्च शिक्षा का विस्तार देखने में बहुत भव्य है, लेकिन इसकी गुणवत्ता पर करीब से देखने पर निराशाजनक परिणाम आता है.

अनुसंधान के संदर्भ में अध्ययन और विश्लेषण करने पर भारत के सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को एक साथ भी रखा जाए, तो भी कैम्ब्रिज (ब्रिटेन) या स्टैनफोर्ड (यूएस) के बराबरी नहीं कर पाएंगे. भारत में विश्वविद्यालय प्रणाली की जड़ें काफी अव्यवस्थित हैं.

राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) के नवीनतम अध्ययन में फिल्ड स्तर पर चौंकाने वाली जानकारी प्राप्त हुई है. शिक्षा के स्तर, शिक्षण की गुणवत्ता, अनुसंधान आदि में इस पिछड़ेपन का कारण जमीनी स्तर पर संसाधनहीनता को जिम्मेदार माना गया है.

'नैक' का कहना है कि देशभर के 600 विश्वविद्यालय और 25,000 कॉलेज मान्यता प्राप्त नहीं हैं. कुछ शिक्षण संस्थान कई बहानों के साथ मान्यता की प्रक्रिया पूरी नहीं करना चाहते है. 22% संस्थानों के उत्तरदाता मानकों की कमी के कारण अनावश्यक जोखिम से बचने के लिए सर्वेक्षण से दूर रहते हैं.

सर्वेक्षण अभ्यास में भाग लेने वाले 72% लोगों का कहना है कि वह सक्रिय रूप से अपने प्रदर्शन में सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं. तमिलनाडु में, उच्च शिक्षा के लगभग ढाई हजार संस्थानों में से आठ सौ से कम ही मान्यता प्राप्त करने में सफल हो सके हैं.

उच्च शिक्षा की सीटों वाली संस्थान में लगातार शिक्षण और सीखने के मानकों में सुधार के लिए प्रयास करना चाहिए तथा अनुसंधान की गुणवत्ता में ध्यान देना चाहिए. ऐसे में यह सभी संस्थान खुद को प्रमाण पत्र जारी करने वाला एक केंद्र के रूप में सीमित करके संतुष्ट हैं. यह एक खतरनाक रुझान को उजागर करता है.

उच्च शिक्षा, जिसे राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. वहीं निम्न गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और अनुसंधान से पीड़ित है. सामान्य मानकों को पूरा करने में विफल संस्थान नैक द्वारा मान्यता प्राप्त करने की योग्यता नहीं रखती हैं. नैक का निरीक्षण है कि ग्रामीण भारत के कई कॉलेजों में न्यूनतम मानकों का पालन करने के लिए बुनियादी सुविधाओं और ई-लर्निंग सुविधाओं की घोर कमी है.

हालांकि, पर्याप्त संख्या में सरकारी कॉलेज हैं, जोकि लगभग साढ़े तीन लाख रुपये नकद और मान्यता के लिए 18% जीएसटी शुल्क भरने को तैयार है. कई राज्यों के विश्वविद्यालयों में कोई शासी निकाय नहीं हैं. कुलपति का पद वर्षों से खाली हैं. पैसे की कमी और कई समस्याओं से जूझ रहे हैं.

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का यह विचार कि विश्व स्तर के विश्वविद्यालयों की सूची में स्थान पाने के इच्छुक किसी भी विश्वविद्यालय को प्रतिभाशाली शिक्षाविदों को नियुक्त करना चाहिए क्योंकि शिक्षण के लिए आवश्यक हैं. यद्यपि इसके लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है.

रचनात्मक शिक्षण और उच्च मानकों पर ध्यान देने वाले दुनिया के दस सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों ने 800 से अधिक नोबेल पुरस्कार विजेता दुनिया को दिया है. इसके विपरीत भारत में नियुक्तियों में लापरवाही, बुनियादी ढांचे का अभाव और धन आवंटन की घोर कमी के कारण 90% कॉलेजों और 70% विश्वविद्यालयों खराब शिक्षा और बेरोजगारों के उत्पादन केंद्रों के पर्याय बन गए हैं. ऐसे संस्थान जो घरेलू स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वह कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं?

वर्तमान स्थिति में धीरे-धीरे ही सुधार किया जा सकता है, यदि प्राथमिक शिक्षा में सुधार किया जाए और उच्च शिक्षा को गुणवत्ता के लिए मानव संसाधन मे आवश्यक निवेश किया जाए. योग्य शिक्षाविदों को उच्च कोटि के मानकों पर खरे शिक्षण संस्थान में नियुक्त किया जाए.

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