सरकारी योजनाओं के सही तरह से लागू न हो पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण होता है पैसों की कमी. इसे विडंबना ही कहेंगे कि सरकारी खजाने में पर्याप्त धन होने के बावजूद आधिकारिक उदासीनता के कारण इन योजनाओं को पैसे नहीं मिलते. सरकारी तंत्र का ये पहलू पिछले दिनों सुर्खियों में तब आया, जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की पोषण अभियान योजना को युद्दस्तर पर लागू करने को कहा. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राज्य सरकारों द्वारा इस योजना को लागू न कर पाने के चलते अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुकी हैं. ईरानी की नाराजगी हालात के बारे में काफी कुछ कहती है. पोषण स्कीम राज्यों में केवल खाना पूर्ति के लिये लागू की गई है, और इसमें भी पश्चिम बंगाल, हरियाणा, पंजाब, केरल, ओड़िसा और गोवा जैसे राज्य काफी पीछे हैं. इस योजना के लिये केंद्र सरकार ने 3,769 करोड़ की रकम आवंटित की है. पर अभी तक मात्र 1,058 करोड़ (33 प्रतिशत) ही खर्च किया जा सका है. पश्चिम बंगाल, ओड़िसा और गोवा में तो इस योजना की शुरुआत भी नहीं हो सकी है. पंजाब और कर्नाटक में आवंटित रकम का केवल एक प्रतिशत ही खर्च हो सका है. हरियाणा और केरल में ये संख्या दस प्रतिशत से भी कम है.
केंद्र सरकार से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने तो इस योजना को लागू करने के बारे में कोई कदम ही नहीं उठाया है. राज्य के वित्त मंत्री ससी पांजा का कहना है कि राज्य सरकार की खुद की पोषण योजनाएं इस योजना से कहीं ज्यादा कारगर है, इसलिये इस योजना को फिलहाल तव्वजो नहीं मिली है. बीजेपी शासित गोवा में भी अमूमन ऐसे ही हालात हैं. इस योजना से जुड़ी गोवा सरकार की अधिकारी दीपाली नायक का कहना है कि विभाग के पास कर्मचारियों की कमी के चलते योजना को लागू करने में परेशानियां आ रही हैं. नायक का कहना है कि स्टाफ की कमी के कारण योजना के लिये जमीनी स्तर पर जरूरी सामान की खरीद में खासी देरी हो रही है. वहीं और राज्यों के मुकाबले पंजाब में हालात कुछ बेहतर हैं.
कई सर्वे ये साफ कर चुके हैं कि इस रफ्तार से ये योजनाएं अपने लक्ष्य को पाने में नाकाम रहेंगी. अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट के सर्वे के मुताबिक, अगर भारत ने इस योजना से जुड़ी कमियों पर काबू नहीं किया तो 2022 तक पोषण अभियान के लक्ष्य को पाने में वो कामयाब नही होगा. सर्वे में पोषण योजना के लक्ष्यों के तौर पर बच्चों में विकास की कमी, कम वजन, जन्म के समय कम वजन, महीलाओं और बच्चों में खून की कमी का जिक्र है. इस बारे में इंडियन मेडिकल कांउसिल की भी कुछ ऐसी ही राय है. भारत में पूरे पोषण से आज भी बच्चे और महिलाएं कोसों दूर हैं, हांलाकि देशभर में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मदद करने वाली कई योजनाएं चल रही हैं. पोषण अभियान योजना की शुरुआत 2018 में ऐसी सभी योजनाओं में समन्वय स्थापित करने के मकसद से हुई थी. इस योजना के जरिये सभी मंत्रालयों के बीच समन्वय बैठाने की कोशिश की जा रही है. इस योजना का मुख्य मकसद, आंगनबाड़ी कार्यक्रम की मदद से 2022 तक कुपोषण से निजाद पाना है. नीति आयोग ने सभी राज्यों के लिये
विकास में कमी को दो प्रतिशत, कद में कमी को दो प्रतिशत, बच्चों, महिलाओं और युवाओं में खून की कमी को तीन प्रतिशत और जन्म के समय कम वजन को दो प्रतिशत सालाना की दर से कम करने का लक्ष्य रखा है.