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विशेष : भारत में चीनी घुसपैठ का समय चिंताजनक

पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है. वहीं चीन ने अपने सैनिकों को युद्ध लड़ने के लिए तैयार रहने के लिए कहा है. बता दें कि भारत-चीन सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच कई बार झड़प हो चुकी है और अभी एलएसी पर गतिरोध जारी है. चीन के ऊपर कहीं न कहीं कोरोना वायरस को फैलाने का आरोप लग रहा है. इस दौरान वहां से विदेश निवेशक अपने कारखाने बंद कर भारत की तरफ रुख कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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Published : May 31, 2020, 5:27 PM IST

हैदराबाद : भारत-चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सीमा गतिरोध अब अपने चौथे सप्ताह में है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार चीन ने एलएसी पर करीब 4000 सैनिकों और भारी उपकरणों को जमा कर रखा है. असामान्य रूप से कुछ दिन पहले हुई दोनों पक्षों के बीच हाथापाई में कई भारतीय और चीनी सैनिक घायल हुए हैं. बीजिंग से उच्चतम स्तर की मंजूरी के बिना इस प्रकार की समन्वित घुसपैठ संभव नहीं हो सकती थी. वुहान और महाबलीपुरम में हुए अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में हुए द्विपक्षीय समझौते का क्या हुआ? ऐसा अभी ही क्यों?

इसकी पृष्ठभूमि समझना जरूरी है. चीन इस तरह की वैश्विक हठ का आदी नहीं है, जिसका वह वर्तमान में अनुभव कर रहा है. विश्व में उसकी प्रतिष्ठा एकदम निम्नस्तर पर हो गई है. इसे 1918-20 के स्पेनिश फ्लू के बाद से मानव जाति के लिए सबसे घातक महामारी के जन्मस्थान के रूप में देखा जा रहा है. उसकी भूमि से विदेशी निवेश और उद्योग भाग रहे हैं. पेइचिंग के बारे में वैश्विक धारणा एक धमकाने देश वाली है, जो दूसरे देशों पर धौंस जमाता है.

अपनी वीटो शक्ति के बल पर उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को कोरोना वायरस महामारी के कारण मचे हाहाकार पर चर्चा करने से रोक दिया. हालांकि यूरोपीय संघ ने विश्व स्वास्थ्य सभा को जो मसविदा प्रेषित किया, उस कारण उसे कुछ पीछेहट करनी पड़ी. मई 2018-19 को हुई बैठक में इस मसविदे को 120 देशों का समर्थन मिला. राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सम्मलेन संबोधित करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसमें उन्होंने सहयोग करने के अस्पष्ट वादे किए. जिस बात के लिए चीन मशहूर है. उन्होंने समस्या के समाधान के बदले अफ्रीका में स्वास्थ्य सेवा खड़ी करने के लिए दो बिलियन डॉलर देने का वादा किया.

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विश्व नेतृत्व की होड़ में चीन अमेरिका का कट्टर प्रतिद्वंदी है. अमेरिका के साथ आधुनिक टेक्नोलॉजी के मामले में संबंध तोड़ने के बाद अब उसने बाकी दुनिया के साथ आर्थिक संबंध तोड़ना भी शुरू कर दिया है. चीन में जनता का मन खट्टा हो गया है. चीन का नेतृत्व दबाव में है और अमेरिकी कांग्रेस चीन से कई ट्रिलियन डॉलर मुआवजे की मांग करने का प्रस्ताव लाने की सोच रही है.

चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने आक्रामक बयान में कहा कि अमेरिका में एक राजनैतिक वायरस फैल रहा है, जो चीन को बदनाम करने के हर मौके का इस्तेमाल कर रहा है. ऐसी परिस्थिति में कोई भी दूसरा देश दब कर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपने संबंध अच्छे बना लेता, लेकिन चीन ने ऐसा नहीं किया. उसने दक्षिण चीन सागर में रुख आक्रामक किया, ताइवान को डराया और हांगकांग की स्वायत्तता को कम करने और विरोधी स्वर को दबाने के लिए नए सुरक्षा कानून लागू किए. अमेरिका के विदेश सचिव माइक पोम्पिओ ने कहा कि जमीनी हकीकत बताते हैं कि हांगकांग अब स्वायत्त नहीं रहा और उस पर प्रतिरोध भी लगाए जा सकते हैं.

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अब आते हैं भारत और चीन के बीच वर्तमान तनाव पर तो यह एक सच्चाई है कि चीन के साथ लगी सीमा की व्याख्या होनी अभी बाकी है. हर साल 400-500 घुसपैठ की घटनाएं होती रहती हैं, जिन्हें तत्काल निबटा लिया जाता है, लेकिन हाल में ऐसी घटनाएं कुछ ज्यादा ही हो रही हैं. इसमें 2017 पर डोकलाम के पठार पर हुई घटना को सुलझाने में 72 दिन लग गए. इस बार के तनाव में सबसे बड़ा अंतर है समय का, पैमाने का, सैनिक जमावड़े का और इरादे का. हाल में तनाव चार क्षेत्रों में चल रहा है. तीन गलवान की घाटी में और चौथा पांगोंग की झील के पास लद्दाख में.

चीन द्वारा भारत को ललकारने के कई कारण हैं. एक तो यह कि शी जिनपिंग कोरोना वायरस संकट की वजह से उनकी छवि को जो बट्टा लगा है, उस वजह से वह अपने आपको एक शक्तिशाली नेता के रूप में दिखाना चाह रहे हैं. दूसरा यह कि बीजिंग दुनिया को चीन केंद्रित बनाना चाहता, जिसमें भारत एक रोड़ा है. तीसरा यह कि चीन को यह पता है कि इस समय भारत पर कोरोना वायरस का बोझ है. चौथा यह कि वह दिखाना चाहता है कि दुनिया में उसकी जो आलोचना हो रही है, उससे वह कतई विचलित नहीं है. पांच, वह सब को यह संदेश देना चाहता है कि अगर किसी ने चीन का विरोध किया, तो उसके उसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं. छठा, चीन न केवल भारत के निश्चय की परीक्षा लेना चाहता है, बल्कि समस्त विश्व समुदाय की.

ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रपति जिनपिंग ऊंचे दांव के खतरनाक कदम उठा रहे हैं. चीनी भाषा की समाचार संस्था सरकारी प्रचार कर रही हैं और भारत को आक्रमणकारी करार दे रही हैं.

26 मई को पीपल लिबरेशन आर्मी के समापन सत्र को संबोधित करते हुए जिनपिंग ने बिना किसी देश का नाम लिए उन्हें 'युद्ध के लिए तैयार रहने का' आह्वान किया. ऐसा कहकर उन्होंने पैंतरेबाजी करने के अवकाश को सीमित कर दिया.

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सौभाग्य से दोनों पक्षों के लिए कई द्विपक्षीय सैन्य, राजनयिक और राजनीतिक संवाद तंत्र उपलब्ध हैं, जो पहले से ही सक्रिय हैं. उम्मीद है कि इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा लिया जाएगा. फिर भी इस तथ्य को छिपाया नहीं जा सकता कि भारत एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है.

(लेखक : विष्णु प्रकाश, पूर्व राजदूत)

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