नई दिल्ली : मोदी सरकार ने हाल में कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन अध्यादेश पारित किए हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार ये अध्यादेश किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए लाए गए और इसका सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा. मगर हैरानी की बात ये है कि ज्यादातर किसान नए कानून से या तो अनिभिज्ञ हैं या फिर इनके समर्थन में नहीं हैं.
देशभर के प्रमुख किसान संगठन 'एक देश-एक बाजार' की नीति को अपनाने के सरकार के प्रस्ताव के समर्थन में नहीं हैं. केंद्र सरकार के निर्णय का विरोध कई राज्यों में देखा गया और अब किसान संगठनों ने इस पर चर्चा भी शुरू कर दी है. ज्यादातर किसान नेताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि इन नए कानूनों का लाभ सिर्फ प्राइवेट कंपनियों या बड़े कॉर्पोरेट घरानों को होगा. आरएसएस की किसान इकाई भारतीय किसान संघ ने भी कृषि सुधार का समर्थन नहीं किया है.
शनिवार को अखिल भारतीय किसान महासंघ (AIFA) ने 'एक देश एक बाजार' और कृषि क्षेत्र में सुधार के नाम पर लाए गए अध्यादेशों पर एक ऑनलाइन चर्चा का आयोजन किया जिसमें कई किसान संगठन के प्रमुख नेता शामिल हुए. अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि कृषि सुधार कानून के आने से किसानों के बीच भय और असमंजस की स्थिति है. ये कानून किसानों के हित में नहीं हैं और आखिरकार इन कानूनों से कृषि क्षेत्र और अनाज मंडियों पर निजी क्षेत्र का कब्जा हो जाएगा और कॉरपोरेट को इसका फायदा मिलेगा.
राजाराम त्रिपाठी का यह भी कहना है कि इन अध्यादेशों को कोरोना काल में संकट के बीच जल्दबाजी में लाया गया और किसान संगठनों से सरकार ने कोई चर्चा नहीं की. ऐसे में सरकार की मंशा पर किसानों को संदेह पैदा होगा. जब व्यापार क्षेत्र से जुड़े सुधार से पहले सरकार CII और FICCI जैसे संस्थाओं से संपर्क कर सकती है तो कृषि क्षेत्र से जुड़े सुधारों के लिए किसान संगठनों से क्यों नहीं?
अंतरराष्ट्रीय कृषि एवं खाद्य परिषद (ICFA) के अध्यक्ष एमजे खान ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि सरकार कृषि सुधार के लिए लाए गए कानूनों को ऐतिहासिक बता रही है, लेकिन किसानों में इस विषय पर संदेह की स्थिति है. ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार और किसानों के बीच संवादहीनता है. सरकार को किसानों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए उनसे सीधा संवाद करना चाहिए. विशेषकर बड़े सुधार के लिए कानून बनाने से पहले किसान संगठनों से इस पर चर्चा होनी चाहिए थी न कि उद्योग और व्यापार जगत से संबंधित लोगों या संस्थाओं से.
उन्होंने आगे कहा कि अब ये अध्यादेश कानून बन चुके हैं, ऐसे में सरकार को देखना होगा कि किस तरह से वो किसानों को इसके प्रति जागरूक करती है और उन्हें मनाने में सफल होती है कि इन कानूनों से किसानों का भी फायदा होगा. प्राथमिक तौर पर तो यही लग रहा है कि इन कानूनों से ज्यादा फायदा प्राइवेट कंपनियों को होगा.