हैदराबाद : सितंबर 2015 में जब देश ने अपना नया संविधान अपनाया था तब मधेशी लोगों के हितों की रक्षा के लिए नेपाल पर पांच महीने लंबे अनौपचारिक नाकेबंदी का समर्थन करने का भारत का फैसला मुख्य कारक था, जिसने नेपाल को चीन की ओर ढकेल दिया था, विदेश नीति के दो विशेषज्ञों ने ईटीवी भारत को यह कहते हुए बताया कि भारतीय अधिकारी बाद में नेपाल के नेतृत्व और उसके लोगों के साथ मिलकर भारत के विरोध में बढ़ती भावनाओं की समस्या को संबोधित करने में विफल रहे, जिसने इस दिक्कत को और बढ़ा दिया.
प्रोफेसर एसडी मुनि, पूर्व राजनयिक और भारत-नेपाल संबंधों के विशेषज्ञ कहते हैं कि '2014 की शुरुआत में, जब प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल की यात्रा की और वहां संसद को संबोधित किया तो नेपाली बहुत अभिभूत थे, लेकिन 2015 में जब नेपाली अपने संविधान के मसौदे को तैयार कर रहे थे, तो उन्होंने पाया कि भारत अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप कर रहा है.'
प्रोफेसर एसडी मुनि, जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगभग चार दशकों तक कूटनीति और विदेशी मामलों को पढ़ाया और लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक में भारत के राजदूत भी थे, कहते हैं कि भारत नेपाल के तराई क्षेत्र में लोगों की चिंता को दूर करने के लिए नेपाली अधिकारियों की सक्रिय भूमिका चाहता था.
नेपाल का तराई क्षेत्र देश के क्षेत्रफल के एक चौथाई से भी कम हिस्से में हैं, लेकिन यह देश की 28 लाख से अधिक लोगों की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है. इन लोगों की एक बड़ी संख्या, जिन्हें मधेशियों के रूप में भी जाना जाता है, ज्यादातर भारतीय वंश के हैं और 18वीं शताब्दी से यहीं इस देश में बस गए हैं.
प्रोफेसर मुनि ईटीवी भारत को बताया कि 'भारत ने उन्हें यह बताने के लिए दूत तक भेजा कि उनके पास एक नया संविधान नहीं होना चाहिए और यह भी कि नए संविधान में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द नहीं होना चाहिए, यह तब किया गया जब उन्होंने अपने संविधान सभा में नए संविधान का मसौदा तैयार कर लिया था और पारित भी कर चुके थे.'
'जब नेपाल ने इस हस्तक्षेप को मानने से इनकार कर दिया. उसके बाद भारत ने उसपर पांच महीनों के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे.'
हालांकि नेपाल सरकार ने भारत को उनके देश पर अनौपचारिक नाकाबंदी लागू करने के लिए दोषी ठहराया, वहीं भारत सरकार ने आपूर्ति को बाधित करने के लिए स्थानीय मधेशी प्रदर्शनकारियों को दोषी ठहराया.
प्रोफेसर एसडी मुनि ने कहते हैं कि 'पेट्रोलियम उत्पादों आदि जैसी कई आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति वहां तक नहीं पहुंची जिसके कारण नेपाली लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इस फैसले ने नेपाली जनता के बीच भारत के प्रति बहुत कड़वाहट पैदा कर दी और नेपाली राष्ट्रवाद का नया स्वरुप भारतीय विरोधी भावना में तब्दील हो गया.'
नई दिल्ली स्थित विदेश नीति के थिंक-टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के एक वरिष्ठ साथी के. योहोम कहते हैं कि नेपाली नेतृत्व को पहले से ही लग रहा था कि भारत उन्हें एक समान संप्रभु राष्ट्र नहीं मान रहा है और 2015 में नेपाल की नाकाबंदी ने इस धारणा को और मजबूती दे दी.
के योहोम ने कहा कि 'उनकी धारणा है कि नेपाल वासियों की नजर में भारत का रवैय्या जबरन हक जताने वाला या अनावश्यक दखल देने वाला है.'
उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि 'उनका यह मनना है कि भारत उनके साथ समान व्यवहार नहीं कर रहा है. जब नाकाबंदी हुई, तो उनकी यह धारणा यकीन में बदल गई.'
चीन के प्रति नेपाल का झुकाव 2015 के बाद से बढ़ गया.
प्रोफेसर एसडी मुनि कहते हैं कि भारत के साथ नेपाल के संबंध तनावपूर्ण होने के कारण हिमालयी देश ने अपने पूर्वी पड़ोसी चीन की ओर देखना शुरू कर दिया था, जिसने 1962 में क्षेत्रीय विवाद को लेकर भारत के साथ हिंसक युद्ध लड़ा था.
एसडी मुनि ने कहा कि 'उन्होंने चीन की तरफ अधिक गति से बढ़ना शुरू कर दिया. 2015 के बाद चीन के साथ बड़ी संख्या में समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए. भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण होते चले गए हैं.'