नई दिल्ली: अयोध्या राम मंदिर मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो गई है. रामलला के वकील अपना दलील कोर्ट में रखी. इससे पहले निर्मोही अखाड़ा ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा था.
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में एक पक्षकार 'राम लला विराजमान' से सवाल किए. बता दें, अयोध्या मामले में देवता की ओर से दायर वाद में भगवान राम के जन्म स्थान को भी एक पक्षकार बनाया गया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील अयोध्या प्रकरण में तीसरे दिन की सुनवाई में कहा कि जहां तक हिन्दू देवताओं का संबंध है तो उन्हें कानून में कानूनी व्यक्ति माना गया है जो संपत्ति का स्वामी हो सकता है और मुकदमा भी कर सकता है.
पीठ ने जानना चाहा, 'क्या जन्म स्थान को कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है. जहां तक देवताओं का संबंध है तो उन्हें कानूनी व्यक्ति माना गया था.' इस मामले में एक पक्षकार के रूप में क्या 'राम जन्मस्थान'कोई वाद दायर कर सकता है.
- पीठ के इस सवाल के जवाब में परासरन ने कहा, 'हिन्दू धर्म में किसी स्थान को उपासना के लिये पवित्र स्थल मानने के लिये वहां मूर्तियों का होना जरूरी नहीं है. हिन्दूवाद में तो नदी और सूर्य की भी पूजा होती है और जन्म स्थान को भी कानूनी व्यक्ति माना जा सकता है.'
- इस पर पीठ ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के एक फैसले का जिक्र किया जिसमे पवित्र गंगा नदी को एक कानूनी व्यक्ति माना गया है जो मुकदमे को आगे बढ़ाने की हकदार है.
इसके बाद पीठ ने परासरन से कहा कि दूसरे बिन्दुओं पर अपनी बहस आगे बढ़ायें.
- परासरन ने आरोप लगाया कि 'राम लला विराजमान' की मूर्ति को उस समय पक्षकार नहीं बनाया गया जब मजिस्ट्रेट ने विवादित स्थल को कुर्क किया और जब दीवानी अदालत ने इस मामले में रिसीवर नियुक्त करके निषेधात्मक आदेश दिया था.
- जन्म स्थान के महत्व को इंगित करते हुये परासरन ने संस्कृत के श्लोक 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी' का वाचन किया और कहा कि जन्म स्थान स्वर्ग से भी महान है.