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मध्य प्रदेश : खो रही राजनीति की मर्यादा, बोलने से गुरेज नहीं कर रहे नेता

भूखे-नंगे, चुन्नू-मुन्नु, जवानी-बुढ़ापा, काला कौआ, ये बयान मध्य प्रदेश के राजनेता सियासी समर में दे रहे हैं, जिससे प्रदेश में राजनीति की मर्यादा गिरती जा रही है. उपचुनाव के दौरान नेता राजनीतिक मर्यादाओं को लांघकर कुछ भी बोलने से गुरेज नहीं कर रहे.

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Published : Oct 15, 2020, 10:02 PM IST

भोपाल :मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सियासी सरगर्मी अपने चरम पर पहुंच गई है. जिन परिस्थितियों में ये उपचुनाव हो रहे हैं, उसमें दोनों दलों के नेताओं की बयानबाजी का गिरा हुआ स्तर देखने मिल रहा है. बीजेपी और कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज नेता भी आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल और बदजुबानी का काम कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश में राजनेता सियासी समर में राजनीतिक मर्यादाओं को लांघकर कुछ भी बोलने से गुरेज नहीं कर रहे. चुनावी रैलियों में भी कांग्रेस और बीजेपी के नेता अपने भाषणों में एक दूसरे पर ऐसी छींटाकशी कर रहे हैं. ये बयान कोई छोटे-मोटे नेता नहीं, बल्कि बीजेपी-कांग्रेस में प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से हो रही है. गद्दार-वफादार से शुरू हुई लड़ाई नवरात्र आते-आते अब राम और रावण में बदल गई है. चुनावी मंचों पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से दस कदम आगे नेता एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं.

नेताओं के बिगड़े बोल

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वे बयान जिन पर मचा बवाल

मध्य प्रदेश में नेता एक दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे थे, लेकिन मुरैना में कांग्रेस नेता दिनेश गुर्जर ने सीएम शिवराज को भूखे-नंगे घर से पैदा हुआ बताया. इस बयान के बाद सियासी पारा गरमा गया. कांग्रेस नेता बरसे तो बीजेपी के नेता भी गरज पड़े. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने सांवेर की सभा में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को को चुन्नू-मुन्नू बता दिया. खुद को टाइगर बताने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक सभा के दौरान कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते वक्त खुद को 'काला कौआ' बताया. इधर जीतू पटवारी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधते वक्त उनके पूरे परिवार को ही गद्दार बताया.

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एक्टिंग करने चले जाए सीएम शिवराज

कमलनाथ भी इस मामले में कहां पीछे रहने वाले थे. कभी शिवराज सिंह चौहान को नालायक बताने वाले कमलनाथ ने इस बार सीएम शिवराज को राजनीति छोड़कर बॉलीवुड जाकर एक्टिंग करने की बात कह दी. तो दूसरी तरफ प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कमलनाथ की जवानी और बुढ़ापे पर सवाल खड़े कर दिए. नरोत्तम मिश्रा ने कहा, वे हर सभा में जवानी की बात करते हैं, मतलब खुद ही अपने बुढ़े होने का सबूत देते हैं.

इन नेताओं ने भी दिए विवादित बयान

मंत्री कमल पटेल ने कमलनाथ को विलेन बता दिया, तो मोहन यादव ने दो कदम आगे जाकर विरोध को जमीन में गाड़ने का बयान देते नजर आए. इसके अलावा अरविंद भदौरिया, सज्जन सिंह वर्मा, कुणाल चौधरी, प्रेमचंद गुड्डू और अन्य कई नेता लगातार मर्यादाओं को लांघ रहे हैं. अब जरा सोचिए ये बयान प्रदेश के शीर्ष नेताओं के हैं, तो फिर नीचले स्तर पर राजनीतिक बयानबाजी दायरा क्या होगा. अंदाजा लगाया जा सकता है.

एमपी की मर्यादित राजनीति में बढ़ती अमर्यादा

अटल बिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे, श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेताओं से मध्य प्रदेश की पहचान होती है. जो राजनीति में अपनी भाषण शैली से आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं. वे दहाड़ते भी थे और गरजते भी थे पर उनमें जो संयम, सहनशीलता और शिष्टाचार नजर आता था. वो वर्तमान मध्य प्रदेश की राजनीतिक सियासी सूरमाओं में दूर-दूर तक नहीं दिखता. यानी एमपी के मर्यादित राजनीति में अमर्यादा तेजी से बढ़ रही हैं.

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राजनीतिक जानकारों की राय

वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे कहते हैं उपचुनाव के दौरान देखा जा रहा है कि प्रमुख दलों के दोनों नेता बयानों पर संयम नहीं बरत रहे हैं. इसके कारण पूरी राजनीति कलंकित हो रही है. जब नेतृत्व के ऊपर से विश्वास हट जाएगा और उस पर काले धब्बे आ जाएंगे. तब कभी देश को जरूरत पड़ने पर नेतृत्व आह्वान करेगा, तो आम जनता के बीच विश्वास का संकट पैदा होगा. यह सबसे बड़ा संकट है, चुनाव होते रहेंगे और जीत हार होती रहेगी, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नेतृत्व के प्रति आस्था और विश्वास कायम रहे.

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मध्य प्रदेश में इस वक्त यहां के नेताओं को जो मन में आ रहा है, बोल रहे हैं और दहाड़ रहे हैं, जो बर्दाश्त की सीमा से बाहर होता है. यानी नेता सत्ता के लिए ऐसे मर्यादा खोते बयानों के पीछे राजनीतिक सहनशीलता कहां गुम होती जा रही है, पता ही नहीं चल रहा. जिससे राजनीति की गरिमा खतरे में नजर आ रही है. राजनीति में आरोप- प्रत्यारोप होता है, लेकिन नेताओं को यह समझना चाहिए कि, भाषा की मर्यादा ही उन्हें नेता बनाती है. इसलिए नेताओं को ये समझना चाहिए कि, समर्थक भले ही आपके बयान पर ताली बजाता हो, लेकिन मतदाता सोच समझकर ही मतदान करता है.

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