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जानें कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक पारित करने वाले छह राज्यों का कैसा है बिल - कृषि सुधार कानून

हाल ही में केंद्र द्वारा बनाए गए तीन नए कृषि सुधार कानूनों को 'निष्प्रभावी' करने के लिए कुछ राज्य विधानसभा में संशोधित बिल पास किए गए हैं. सभी विपक्षी दलों ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया और राज्यपाल को विधेयक सौंपा.

farm law
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Published : Jan 31, 2021, 8:19 PM IST

हैदराबाद :तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध जारी है. जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है, वहां कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक पास किया जा रहा है. अब तक पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, केरल, कर्नाटक की सरकार ने केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ विधेयक पारित किया है. केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाले छह राज्यों विधेयक का यहां तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है.

पंजाब

पंजाब विधानसभा ने केंद्र द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों को खारिज करते हुए सर्वसम्मति से तीन नए विधेयकों को पारित किया है. पंजाब ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य है.

  • किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 अधिकारियों को एमएसपी से नीचे गेहूं खरीदने या बेचने वाले किसी भी व्यक्ति पर जुर्माना और कम से कम तीन साल की जेल देने की अनुमति देता है.
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 ने किसानों को एमएसपी से नीचे उपज बेचने के लिए विवश करने वाले किसी भी व्यक्ति को दंडित करने का प्रस्ताव दिया है.
  • आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 में कृषि उपज की जमाखोरी और कालाबाजारी की जांच करने का प्रावधान है.
  • सिविल प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक 2020 में किसानों को 2.45 एकड़ तक के ऋणी किसान की जमीन की कुर्की या बिक्री पर रोक लगाता है.

राजस्थान

राजस्थान केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाला दूसरा राज्य है.

कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020

विधेयक में कहा गया है कि फसल की बिक्री या खरीद के लिए कोई भी कृषि समझौता तब तक मान्य नहीं होगा, जब तक कि कृषि उपज के लिए भुगतान की गई कीमत केंद्र सरकार द्वारा घोषित प्रचलित MSP के बराबर या उससे अधिक न हो.

केंद्रीय अधिनियम में कहा गया है कि एक कृषि समझौते का पालन करते हुए, उक्त कृषि उपज को किसी भी राज्य अधिनियम से छूट दी गई है. राजस्थान सरकार, हालांकि, APMC अधिनियम के तहत उत्पादन के लिए एक शुल्क या उपकर लगाने और किसानों के कल्याण के लिए इसका उपयोग करना चाहती है. बिल में कहा गया है कि शुल्क या उपकर का बोझ किसान पर हस्तांतरित नहीं किया जाएगा.

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020

विधेयक में व्यापारियों को दंडित करने का प्रावधान दिया गया है, यदि वे किसानों को परेशान करते हैं. 3 से 7 साल की सजा या पांच लाख रुपये का न्यूनतम जुर्माना, या दोनों होगा. यानी इसमें किसानों के उत्पीड़न के लिए तीन से सात साल की कैद के साथ-साथ जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है.

विधेयक के अनुसार, उत्पीड़न को तब माना जाएगा जब व्यापारी कृषि उपज की डिलीवरी को स्वीकार नहीं करता है, या किसान की समझौते की शर्तों के अनुसार डिलीवरी को स्वीकार कर लिया हो, लेकिन माल की डिलीवरी की तारीख से तीन दिन के भीतर भुगतान नहीं किया हो, या फिर जो भी जो भी पहले.

केंद्रीय कानून ने किसानों के उत्पाद क्षेत्र में किसी भी किसान या व्यापारी या इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पर बाजार शुल्क या उपकर या लेवी लगाने पर रोक लगा दी है.

राजस्थान विधेयक राज्य को कॉर्पोरेट या व्यापारी द्वारा लाए या खरीदे या बेचे गए कृषि उपज पर शुल्क/उपकर इत्यादि लगाने की अनुमति देता है और फिर इसका कल्याण करने के लिए विभिन्न माध्यमों से किसानों को वापस दे देता है.

आवश्यक वास्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020

तीसरे विधेयक में उपभोक्ताओं को कृषि उपज की जमाखोरी और कालाबाजारी से बचाने और किसानों के हितों को सुरक्षित रखने का प्रावधान है. केंद्रीय अधिनियम के विपरीत जिसने कृषि वस्तुओं के स्टॉक पर सीलिंग को हटा दिया था, बिल ने राज्य सरकार को उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को विनियमित करने और असाधारण परिस्थितियों में स्टॉक सीमा को लागू करने के लिए अधिकार देने का प्रयास करता है.

सिविल प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक 2020

केंद्रीय अधिनियम 1908 की धारा 60 में संशोधन करता है और पांच एकड़ तक के ऋणी किसान की जमीन की कुर्की या बिक्री पर रोक लगाता है. किसानों की संपत्ति जैसे पशु, गौशाला, इत्यादि को कुर्की से छूट दी जाएगी.

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाला तीसरा राज्य है.

  • छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक 2020 ने पूरे राज्य को कृषि उपज बेचने के लिए एक बाजार के रूप में घोषित किया, जो केंद्र के कृषि कानूनों को नकारने के लिए कृषि उत्पाद बेचने के लिए प्राइवेट सेक्टर को सीधे किसानों से उपज खरीदने की अनुमति देता है.
  • इसका उद्देश्य राज्य के किसानों को बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव और भुगतान जोखिम से बचाना है. मंडी अधिनियम में संशोधन किए गए हैं, ताकि किसानों को उनकी उपज के मुकाबले बेहतर दाम मिल सके. इस विधेयक में किसानों के हितों की रक्षा करने का प्रावधान है और साथ ही यह किसी भी केंद्रीय कानूनों का उल्लंघन नहीं करता है, इस प्रकार केंद्र के साथ टकराव से बचा जाता है.
  • विधेयक के अनुसार राज्य सरकार किसानों की फसल या उत्पाद को स्थानीय मंडी के साथ-साथ राज्य की अन्य मंडियों तथा अन्य राज्यों के व्यापारियों को बेचकर बेहतर कीमत प्राप्त करने तथा ऑनलाइन भुगतान के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की स्थापना कर सकती है.
  • राज्य के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने बताया कि 80 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं. चूंकि इन सीमांत और छोटे किसानों के पास न तो खाद्यान्नों को स्टोर करने की क्षमता है और न ही बाजार में इसकी कीमतों पर मोलभाव करने की, इसलिए उनके लाभ में 'डीम्ड मंडी (बाजार)' और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म स्थापित करना आवश्यक हो गया है, ताकि उन्हें बाजार में उतार-चढ़ाव से प्रभावित हुए बिना उनकी उपज का सही मूल्य मिल सके.

दिल्ली

  • दिल्ली केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाला चौथा राज्य है.
  • कानूनों को निरस्त करने का प्रस्ताव आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत द्वारा विधानसभा में पेश किया गया था.
  • केरल केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाला पांचवा राज्य है.
  • प्रस्ताव में कहा गया है कि ये तीनों कानून किसान विरोधी और उद्योगपतियों के हित में हैं, जो कृषि समुदाय को गंभीर संकट में धकेलेंगे. इन कानूनों से किसानों की मोल-तोल करने की क्षमता खत्म होगी और इसका फायदा उद्योगों को होगा.

केरल

  • केरल केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाला पांचवां राज्य है.
  • प्रस्ताव में कहा गया है कि ये तीनों कानून किसान विरोधी और उद्योगपतियों के हित में हैं, जो कृषि समुदाय को गंभीर संकट में धकेलेंगे. इन कानूनों से किसानों की मोल-तोल करने की क्षमता खत्म होगी और इसका फायदा उद्योगों को होगा.

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक (बिल) पारित करने वाला छठवां राज्य है.

तुलनात्मक विश्लेषण

  1. पंजाब और राजस्थान द्वारा पारित बिल एक जैसे ही हैं. दोनों में ही एमएसपी से नीचे गेहूं खरीदने या बेचने वाले किसी भी व्यक्ति पर जुर्माना और जेल का प्रावधान है. हालांकि, जेल की अवधि और जुर्माने की राशि अलग-अलग है. इसके अलावा दोनों में कृषि उपज की जमाखोरी और कालाबाजारी की जांच करने का प्रावधान है.
  2. पंजाब और राजस्थान के विपरीत, छत्तीसगढ़ में पारित कृषि कानूनों के विरोध में विधेयक, किसानों को बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाने की कोशिश कर रहा है. इसके अलावा यह किसानों को भुगतान जोखिम से भी बचाएगा.
  3. पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विपरीत, शेष तीन राज्यों- दिल्ली, केरल और पश्चिम बंगाल ने इन कानूनों को निरस्त करने के लिए प्रस्ताव पारित किया और खाद्य सुरक्षा, संवैधानिक वैधता और किसानों के मौलिक अधिकार और हित का हवाला देते हुए एमएसपी पर एक कानून की मांग की है.

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