नई दिल्ली : सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) ने 25 जून को आशा वर्करों के लिए 'ऑल इंडिया डिमांड डे' मनाने की घोषणा की है. इस बीच ट्रेड यूनियन ने कोविड-19 संकट के प्रबंधन के लिए सरकार को दोषी ठहराया और 14 मांगों की सूची केंद्र सरकार के समक्ष रखी.
सीआईटीयू द्वारा बयान में कहा गया कि हमारे देश में प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु, श्रमिकों के नौकरी का नुकसान, कोरोना मामलों में वृद्धि और स्वास्थ्य प्रणाली यह सब सरकार की विफलता है. सीआईटीयू के अनुसार कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा पीड़ित आशा कार्यकर्ता हैं. जिन्हें स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारियों के रूप में भी मान्यता नहीं है. लगभग 10 लाख आशा कार्यकर्ता घर-घर जा निरीक्षण करने के कारण बीमार हैं. सैकड़ों आशा कार्यकर्ता कोविड-19 से संक्रमित हैं. इन कार्यकर्ताओं को बिना किसी सुरक्षा के सर्वेक्षण पर भेजा जाता है. कुछ राज्यों में 15 से अधिक आशा कार्यकर्ताओं की ड्यूटी पर मौत होने की खबर मिली है. ज्यादातर मामलों में उका कोविड टेस्ट भी नहीं कराया गया था. कई आशा कार्यकर्ताओं और उनके परिवार को लोगों के हमले के कारण अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ा.
दूसरे के जीवन को बचान के लिए अपनी जान जोखिम में डालने के बदले में उन्हें क्या मिला. महीनों तक उन्हें वेतन तक नहीं मिलता है. जिसकी वजह से आशाएं अपना आत्मविश्वास खो रही हैx. इन परेशानियों के बाद भी मोदी सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं को छह महीने के लिए 1000 रुपये की राशि देने की घोषणा की है, लेकिन यह सेनेटाइजर और मास्क खरीदने के लिए काफी नहीं है. यह अभी सभी तक नहीं पहुंची है. इसके साथ ही हालही में कोरोना की लड़ाई में शामिल सभी के लिए 50 लाख रुपये के बीमा पैकेज की घोषणा की है, लेकिन ट्रेड यूनियन के अनुसार, नीति कोरोना खर्च के उपचार को कवर नहीं करता है. साथ ही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता इस योजना के तहत शामिल नहीं हैं. अधिकांश राज्यों में आशा कार्यकर्ता और 108 एम्बुलेंस कर्मचारी, स्वच्छता कर्मचारी भी इस योजना के तहत नहीं आते हैं, जबकि हरियाणा जैसे कुछ राज्यों में, आशा कार्यकर्ताओं के लिए बीमा राशि केवल 10 लाख रुपये तक है.