नई दिल्ली : दिन भर की लंबी बहस के बाद सोमवार रात लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पास कर दिया गया. बिल के पक्ष में कुल 311 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में सिर्फ 80 वोट की पड़ सके. इस बिल को अब राज्यसभा में कल पेश किया जाएगा. इस बिल पर बहस के लिए दोपहर दो बजे का समय तय किया गया है. साथ ही इस विधेयक को लेकर सभा में सात घंटे तक चर्चा की जाएगी.
इस विधेयक के मद्देनजर कांग्रेस ने अपने राज्यसभा सांसदों को व्हिप जारी कर दिया है.
राज्यसभा में क्या है स्थिति
भाजपा के पास 83 सांसद हैं. बीजू जनता दल के 7, एआईएडीएमके के 11, शिवसेना के तीन, जेडीयू के छह, अकाली दल के तीन, वाईएसआर के दो, एलजेपी के एक, आरपीआई के एक और नामित सदस्य इस बिल का समर्थन कर सकते हैं.
दूसरी तरफ विपक्ष में कांग्रेस के पास 46, टीएमसी के पास 13, सपा के नौ, टीआरएस के छह, लेफ्ट के छह, डीएमके के पांच, राजेडी के चार, एनसीपी के चार, बसपा के चार, टीडीपी के दो, मुस्लिम लीग के एक, पीडीपी के दो, जेडीएस के एक, केरल कांग्रेस के एक सांसद हैं. हालांकि, शिवसेना ने अभी तक अपनी स्थिति साफ नहीं की है. शिवसेना अगर बिल का विरोध करती है, तो शाह के सामने विधेयक को पास कराने को लेकर संकट हो सकता है.
इन सबके बीच इस सावल पर कि क्या शिवसेना CAB का राज्यसभा में भी समर्थन करेगी, पार्टी नेता अरविंद सावंत ने कहा, 'अलग-अलग भूमिका होती है क्या हमारी? राष्ट्र हित की भूमिका लेकर शिवसेना खड़ी रहती है, ये किसी की मोनोपॉली नहीं है.'
लोकभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के प्रताड़ित गैर मुस्लिमों को सम्मान प्रदान करेगा. शाह ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित होने के बाद कहा कि यह विधेयक प्रताड़ना का सामना करने वालों को अपना जीवन फिर से संवारने का अवसर देगा.
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निचले सदन में विधेयक पर सदन में सात घंटे से अधिक समय तक चली चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह विधेयक लाखों करोड़ों शरणार्थियों के यातनापूर्ण नरक जैसे जीवन से मुक्ति दिलाने का साधन बनने जा रहा है. ये लोग भारत के प्रति श्रद्धा रखते हुए हमारे देश में आए, उन्हें नागरिकता मिलेगी.
शाह ने कहा, 'मैं सदन के माध्यम से पूरे देश को आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह विधेयक कहीं से भी असंवैधानिक नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता. अगर इस देश का विभाजन धर्म के आधार पर नहीं होता तो मुझे विधेयक लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.' उन्होंने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौता काल्पनिक था और विफल हो गया और इसलिये विधेयक लाना पड़ा.
शाह ने कहा कि देश में एनआरसी आकर रहेगा और जब एनआरसी आयेगा तब देश में एक भी घुसपैठिया बच नहीं पाएगा. उन्होंने कहा कि किसी भी रोहिंग्या को कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा. अमित शाह ने कहा कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए देश में किसी धर्म के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. यह सरकार सभी को सम्मान और सुरक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है. जब तक मोदी प्रधानमंत्री हैं, संविधान ही सरकार का धर्म है.
सदन ने कुछ सदस्यों के संशोधनों की अपील की थी. हालांकि, गृह मंत्री के जवाब के बाद संशोधनों को खारिज करते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी गई. विपक्ष के कुछ संशोधनों पर मत विभाजन भी हुआ और उन्हें सदन ने अस्वीकृत कर दिया. विधेयक पारित होने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी, खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल समेत भाजपा तथा उसके सहयोगी दलों के विभिन्न सदस्यों ने गृह मंत्री अमित शाह के पास जाकर उन्हें बधाई दी.
इससे पहले अमित शाह ने अपने जवाब में कहा कि 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी. 2011 में 23 प्रतिशत से कम होकर 3.7 प्रतिशत हो गई. बांग्लादेश में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो 2011 में कम होकर 7.8 प्रतिशत हो गई. शाह ने कहा कि भारत में 1951 में 84 प्रतिशत हिंदू थे जो 2011 में कम होकर 79 फीसदी रह गए, वहीं मुसलमान 1951 में 9.8 प्रतिशत थे, जो 2011 में 14.8 प्रतिशत हो गए.
उन्होंने कहा कि इसलिए यह कहना गलत है कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है. उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर भेदभाव न हो रहा है और ना आगे होगा. शाह ने कहा कि यह विधेयक किसी धर्म के खिलाफ भेदभाव वाला नहीं है और तीन देशों के अंदर प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है जो घुसपैठिये नहीं, शरणार्थी हैं.
उन्होंने यह भी कहा, 'मैं दोहराना चाहता हूं कि देश में किसी शरणार्थी नीति की जरूरत नहीं है. भारत में शरणार्थियों के संरक्षण के लिए पर्याप्त कानून हैं.' उन्होंने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने द्विराष्ट्र नीति की बात की लेकिन कांग्रेस ने उसे रोका नहीं. उसने धर्म के आधार पर देश का विभाजन स्वीकार किया था, यह ऐतिहासिक सत्य है.
शाह ने कहा कि हमारी अल्पसंख्यकों को लेकर अवधारणा संकुचित नहीं है जैसा कि विपक्ष के सदस्यों ने आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि वह यहां के अल्पसंख्यकों की बात ही नहीं कर रहे. यह उन तीन देशों के अल्पसंख्यकों की बात है. उन्होंने कहा कि इस देश में इतनी बड़ी आबादी मुस्लिमों की है. कोई भेदभाव नहीं हो रहा. तस्वीर ऐसी बनाई जा रही है कि अन्याय हो रहा है.
शाह ने कहा, 'मैं फिर से आश्वस्त करना चाहता हूं कि जब हम एनआरसी लेकर आएंगे तो देश में एक भी घुसपैठिया बच नहीं पाएगा. हमें एनआरसी की पृष्ठभूमि बनाने की जरूरत नहीं. हमारा रुख साफ है कि इस देश में एनआरसी लागू होकर रहेगा. हमारा घोषणापत्र ही पृष्ठभूमि है.' उन्होंने कहा कि कहा कि हमें मुसलमानों से कोई नफरत नहीं है और कोई नफरत पैदा करने की कोशिश भी न करे.
गृह मंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों के दलों ने विधेयक का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि सिक्किम को भी संरक्षण प्राप्त है और चिंता करने की जरूरत नहीं है . इससे पहले, विधेयक रखते हुए शाह ने कहा कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान ऐसे राष्ट्र हैं जहां राज्य का धर्म इस्लाम है.
शाह ने कहा कि आजादी के बाद बंटवारे के कारण लोगों का एक दूसरे के यहां आना जाना हुआ. इस समय ही नेहरू लियाकत समझौता हुआ, जिसमें एक दूसरे के यहां अल्पसंख्यकों को सुरक्षा की गारंटी देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई थी. उन्होंने कहा कि हमारे यहां तो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान की गई लेकिन अन्य जगह ऐसा नहीं हुआ . हिन्दुओं, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा .
अमित शाह ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से इन तीन देशों से आए छह धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात कही गई है .
अमित शाह ने पूर्वोत्तर क्षेत्र की सामाजिक एवं भाषाई विशिष्टता के संरक्षण की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि अब मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट व्यवस्था में शामिल किया जायेगा. इसके बाद ही विधेयक को अधिसूचित किया जाएगा.
गौरतलब है कि विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि ऐसे अवैध प्रवासियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, उन्हें अपनी नागरिकता संबंधी विषयों के लिए एक विशेष शासन व्यवस्था की जरूरत है.
विधेयक में हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के प्रवासियों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से नहीं वंचित करने की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि यदि कोई ऐसा व्यक्ति नागरिकता प्रदान करने की सभी शर्तों को पूरा करता है तब अधिनियम के अधीन निर्धारित किये जाने वाला सक्षम प्राधिकारी, अधिनियम की धारा 5 या धारा 6 के अधीन ऐसे व्यक्तियों के आवेदन पर विचार करते समय उनके विरूद्ध अवैध प्रवासी के रूप में उनकी परिस्थिति या उनकी नागरिकता संबंधी विषय पर विचार नहीं करेगा.
भारतीय मूल के बहुत से व्यक्ति जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान के उक्त अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्ति भी शामिल हैं, वह नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा पांच के अधीन नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं. किंतु यदि वे अपने भारतीय मूल का सबूत देने में असमर्थ है, तो उन्हें उक्त अधिनियम की धारा छह के तहत 'देशीयकरण' द्वारा नागरिकता के लिये आवेदन करने को कहा जाता है. यह उनको बहुत से अवसरों एवं लाभों से वंचित करता है.
इसमें कहा गया कि इसलिए अधिनियम की तीसरी अनुसूची का संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें इन देशों के उक्त समुदायों के आवेदकों को 'देशीयकरण द्वारा नागरिकता के लिए पात्र बनाया जा सके.' इसके लिए ऐसे लोगों मौजूदा 11 वर्ष के स्थान पर पांच वर्षों के लिए अपनी निवास की अवधि को प्रमाणित करना होगा.
इसमें वर्तमान में भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक के कार्ड को रद्दे करने से पूर्व उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है. विधेयक में संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले पूर्वोत्तर राज्यों की स्थानीय आबादी को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी की संरक्षा करने और बंगाल पूर्वी सीमांत विनियम 1973 की 'आंतरिक रेखा' प्रणाली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को प्रदान किये गए कानूनी संरक्षण को बरकरार रखने के मकसद से है.