नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव बढ़ गया है. गलवान घाटी पर सोमवार शाम को अस्थाई ढांचे को लेकर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई. दोनों देशों के बीच यह झड़प घंटों तक चली. इस दौरान भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए. वहीं चीन के 35 सैनिकों के हताहत होने की खबर है. दो परमाणु संपन्न देशों के बीच यह सीमा विवाद अब वैश्विक सुर्खी का रूप ले चुका है.
कयास लगाए जा रहे हैं कि चीन के द्वारा गलवान घाटी में दिखाई गई अचनाक आक्रमता भारत और अमेरिका के बीच बढ़ रहे संबंधों का नतीजा तो नहीं है. 1962 के युद्ध समय दोनों विकासशील देश थे और विश्व में अपनी जगह स्थापित करते का प्रयास कर रहे थे, परन्तु इस समय स्थितियां अलग-अलग हैं. दोनों परमाणु संपन्न देश हैं.
इस समय चीनी तेवर में बदलाव का नया चेहरा सिर्फ भारतीय सीमा पर नहीं है. वरन् इसके उदाहरण वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, हांगकांग भी हैं.
चीन की यह सोची समझी रणनीति है. चीन वन-बेल्ट-वन-रोड (OBOR) और चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के साथ मिलकर एक रास्ता तैयार करना की कोशिश कर रहा है, जिससे वह बंगाल की खाड़ी तक पहुंच सके, भारतीय और प्रशांत महासागरों पर रणनीतिक नियंत्रण और प्रभुत्व हासिल कर सके. यह चीन का एक सपना है. इस पर चीन लगातार काम कर रहा है.
भारत और अमेरिका के किसी भी सहयोगी के खिलाफ आक्रामकता एक संकेत है कि चीन एक निश्चित सीमा से परे बर्दाश्त नहीं करेगा और उस सीमा को चीन द्वारा निर्धारित किया जाएगा.
भारत ने पिछले वर्ष पांच अगस्त को जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधान खत्म कर दिए थे और पाक अधिकृत काश्मीर (पीओके) और अक्साई चीन पर दावे के कारण चीन को समस्या का सामना करना पड़ रहा है. चीन इसलिए भी तेवर दिखा रहा है क्यों कि वह चाहता है कि भारत गिलगिट-बाल्टिस्तान मुद्दे को बढ़ावा न दे और साथ ही चीन, भारत की अमेरिका पर निर्भरता भी देखना चाहता है.