नई दिल्लीः बाल यौन शोषण के मामलों की संख्या में चिंताजनक वृद्धि बनी हुई है. माता-पिता अपने नन्हें बच्चों को इन अपराधियों से बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं.
गौरतलब है कि सख्त कानून बनाए जाने पर भी इन अपराधों से बच्चों को नहीं बचाया जा पा रहा है.
कई मामलों की जांच में देरी हो जाती है. साथ ही कई बार अपराधों का पता ही नहीं चल पाता, जिस वजह से समस्या और भी ज्यादा चिंताजनक बनती जा रही है.
साढ़े तीन साल की मासूम से छेड़छाड़
तेलंगाना के संगारेड्डी में साढ़े तीन साल की मासूम से छेड़छाड़ का मामला सामने आया है.
पांच साल की बच्ची से बलात्कार
विकाराबाद जिले में पड़ोसी द्वारा पांच साल की बच्ची से बलात्कार किया गया.
तेरह वर्षीय बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार
वारंगल अर्बन में, तेरह वर्षीय एक महिला के साथ तीन लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया. इस घटना के बाद किशोरी ने आत्महत्या कर ली.
पिता ने नौ साल की बच्ची का किया रेप
असम में, एक व्यक्ति ने अपनी नौ साल की बेटी के साथ बलात्कार किया, उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
अपनी ही बेटियों का किया यौन शोषण
हरियाणा के गुरुग्राम में व्यक्ति ने अपनी ही बेटियों का यौन शोषण किया. जिसके बाद उसे भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
साथी छात्रों ने की छेड़खानी
मामला छत्तीसगढ़ का है, जहां एक लड़की के साथी छात्रों ने ही उसके साथ छेड़छाड़ की.
बता दें आरोपियों को IPC की धारा 376, 354A और POCSO एक्ट 4 के तहत जेल में डाल दिया गया है.
इस तरह के मामले आए दिन देश में होते रहते हैं लेकिन अधिकांश मामलें प्रकाश में आते ही नहीं है.
पढ़ेंः मासूम बच्चों को अगवा कर करता था यौन शोषण, अरेस्ट
क्या कहते हैं आंकड़े
आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो साल दर साल लड़कियों पर अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं.
नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार, 2015 में 94,172 मामले सामने आए हैं, जबकि बात यदि 2016 की करें तो ये मामले बढ़कर 1,06,958 हो गए हैं.
रिकॉर्ड किए गए मामलों में से 50% से अधिक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल से हैं. बच्चों से संबंधित मामलों में यौन शोषण के मामले18% है.
द्रुतगति से बढ़ रही मामलों की संख्या
POCSO अधिनियम के तहत, 34.4% मामले दर्ज किए गए हैं.
घोंघे की गति से चल रही जांच
बाल छेड़छाड़ के मामलों की जांच बेहद ही धीमी गति से बढ़ रही है. आरोपियों की दी जाने वाली सजा की संख्या में भी कमी है.
आपको बता दें कि 2015 से 16 के दौरान तकरीबन बाल यौन शोषण के 1.06 लाख मामले दर्ज हुए थे, लेकिन इनमें से 8.87 फीसदी मामलों की ही जांच हुई है.
यह भी पढे़ंः ग्रेटर कैलाश के निजी स्कूल में बच्ची के साथ यौन-शोषण, स्वीपर ही निकला 'हैवान'
सबूतों के अभाव के कारण खारिज होते हैं मामले
अधिकांश मामलों में शिकायतकर्ता के पास कोई सबूत नहीं होता जिसकी वजह से मामलों को खारिज कर दिया जाता है.
डेढ़ महीने के अंदर सुनाई मौत की सजा
हाल ही में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपराधी को नौ महीने की बच्ची के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार करने और उसकी हत्या करने के लिए डेढ़ महीने के अंदर मौत की सजा सुनाई है.
युवाओं को हो समाज की बेहतर समझ
टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग हो रहा है. व्यसनों के कारण नैतिकता की अवहेलना की जा रही है.
युवा पीढ़ी को मानवीय मूल्यों के बारे में बताना अनिवार्य है.
यह शिक्षा स्कूल स्तर से ही पाठ्यक्रम में शामिल की जानी चाहिए. तभी युवाओं के समाज की बेहतर समझ मिल सकेगी.
खासतौर से गांवों और कस्बों में अलग अलग स्तरों पर कर्मचारियों को POCSO एक्ट की अच्छी समझ होनी चाहिए. माता-पिता, शिक्षक, आंगनवाड़ी और आशा स्टाफ, महिला और बाल विकास मंत्रालय और नर्सों को इस बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए.
हम अपनी जिम्मेदारी निभा कर बच्चों के साथ हो रही अपराध की घटनाओं को कम कर सकते हैं.