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जल्द ही अंतरिक्ष में होगा चंद्रयान-2, एक्सपर्ट ने दी अपनी राय

इसरो चंद्रयान-2 और गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में है. चंद्रयान-2 और गगनयान को लेकर वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन ने ईटीवी भारत से बातचीत में क्या कुछ कहा जानें..

इसरो चंद्रयान-2 को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में

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Published : Jun 14, 2019, 12:05 AM IST

नई दिल्लीः भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) द्वारा 'चंद्रयान-2' को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं. इसे 15 जुलाई को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा, जोकि सात सितंबर को चंद्रमा पर उतारा जाएगा.

वहीं दूसरी ओर ISRO मिशन 'गगनयान' पर भी काम कर रहा है. ये मिशन दिसंबर 2021 तक पूरा होगा. इस मिशन में इसरो पहली बार भारत में बने रॉकेट को स्पेस में भेजेगा. बता दें, इसकी बेसिक ट्रेनिंग भारत में होगी लेकिन अडवांस ट्रेनिंग विदेश में होगी. इस मिशन का बजट 10 हजार करोड़ तक का तय किया गया है.

देश के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम में ISRO ने मील का पत्थर साबित किया है. जिसके तहत ISRO का अंतरिक्षयान, 'चंद्रयान-2' सात जून को चांद पर उतरेगा.

इस संबंध में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की. इस दौरान उन्होंने इसरो और वायुसेना के बीच गगनयान के लिए हुए समन्वय के बारे में बातचीत की. साथ ही उन्होंने चंद्रयान-2 की विशेषताएं भी साझा की.

वरिष्ठ वैज्ञानिक ने दी चंद्रयान-2 पर राय

उन्होंने बताया कि जब चंद्रयान -1 भेजा गया तो इसे प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन कहा गया. उसमें हम विज्ञान का अच्छा प्रयोग नहीं कर सकते थे, जबकि इस बार हमारे पास कुछ वैज्ञानिक उद्देश्य हैं. चंद्रयान-2 का एक मुख्य उद्देश्य चांद की सतह पर अच्छी तरह से अपने लैंडर को उतारना है. उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि इस समय यह एक अच्छी लैंडिंग होगी.

बता दें, चंद्रयान -2 में तीन मॉड्यूल होंगे, ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर. जिन्हें सतह, खनिजों व रासायनिक संरचना सहित अन्य चीजों की मैपिंग के लिए डिजाइन किया गया है.

वेंकटेश्वरन ने कहा कि यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक बिल्कुल ही अलग दिशा में ढाल देगा.

पढ़ेंः भारत खुद का अपना अंतरिक्ष स्टेशन करेगा तैयारः ISRO

उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि चांद के लिए मिशन पहले अमेरिका और फिर रूस द्वारा थे. सिर्फ ये दो देश ही एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, जो कि 1976 के आसपास खत्म हो गई थी.

अब चांद पर जाने की एक नई रूचि है. जिसका एक कारण भविष्य की महत्वकांक्षा है. भविष्य में चांद ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्त्रोत बन सकता है और यह 20 साल पहले नहीं किया जा सकता था.

वहीं गगयनयान के लिए इसरो व वायुसेना के बीच हुए समन्वतय के बारे में बोलते हुए वेंकटेश्वरन ने कहा, आमतौर पर जब देश किसी को अंतरिक्ष पर भेजते हैं तो वे लोग सशस्त्र बलों के ही होते हैं, विशेषकर वायुसेना के होते हैं. उन्होंने कहा ऐसा इसलिए क्योंकि ये लोग विमान को ऑपरेट करते हैं, जो कि अंतरिक्ष यान से मिलते जुलते होते हैं.

वरिष्ठ वैज्ञानिक ने दी गगनयान पर राय

वेंकटेश्वरन ने कहा, इस बात की भी चर्चा है कि इसरो अंतरिक्ष यान को चलाने के लिए वायु सेना के कुछ पायलट को चुनेगा. जिसके बारे में अभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. इसरो अंतरिक्ष में भेजने के लिए महिलाओं को चुनने की कोशिश में है.

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