नई दिल्ली :हाथरस में हुए कथित दुष्कर्म के मामले में सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ में सुनवाई की जा रही है. इस मामले को लेकर दायर जनहित याचिका और कार्यकर्ताओं तथा वकीलों के हस्तक्षेप के आवेदनों पर सुनवाई की गई. इस दौरान पीठ से कहा गया कि उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है.
निष्पक्ष सुनवाई न होने की आशंका पर कहा गया कि पहले ही जांच कथित रूप से चौपट कर दी गई है. इस आशंका पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'उच्च न्यायालय को इसे देखने दिया जाए. अगर कोई समस्या होगी तो हम यहां पर हैं ही.'
इस मामले में सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, इन्दिरा जयसिंह और सिद्धार्थ लूथरा सहित अनेक वकील विभिन्न पक्षों की ओर से मौजूद थे.
- इस मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे लेकिन पीठ ने कहा, 'हमें पूरी दुनिया की मदद की आवश्कता नहीं है.'
- सुनवाई के दौरान पीड़ित की पहचान उजागर नहीं करने से लेकर उसके परिवार के सदस्यों और गवाहों को पूरी सुरक्षा और संरक्षण जैसे मुद्दों पर बहस हुई.
- पीड़ित के परिवार के वकील ने इस मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश से बाहर राष्ट्रीय राजधानी की अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की.
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी इस मामले की उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई को लेकर अपनी आशंका व्यक्त की और गवाहों के संरक्षण का मुद्दा उठाया.
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे का जिक्र किया जिसमें पीड़ित के परिवार और गवाहों को प्रदान की गई सुरक्षा और संरक्षण का विवरण दिया गया था.
राज्य सरकार ने न्यायालय के निर्देश पर इस हलफनामे में गवाहों की सुरक्षा के बारे में सारा विवरण दिया है. राज्य सरकार इस मामले को पहले ही सीबीआई को सौंप चुकी है और उसने शीर्ष अदालत की निगरानी के लिए भी सहमति दे दी है.
- मेहता ने न्यायालय के आदेश पर अमल करते हुए हलफनामा दाखिल करने का जिक्र करते हुए कहा कि पीड़ित के परिवार ने सूचित किया है कि उन्होंने वकील की सेवाएं ली हैं और उन्होंने राज्य सरकार के वकील से भी उनकी ओर से मामले को देखने का अनुरोध किया है.
- उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पीठ से अनुरोध किया गया है कि गवाहों की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ तैनात की जानी चाहिए.
- साल्वे ने कहा, 'महोदय आप जिसे भी चाहें, सुरक्षा सौंप सकते हैं.' उन्होंने कहा कि इसे राज्य सरकार पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं माना जाना चाहिए. मेहता ने कहा, 'राज्य पूरी तरह से अपक्षतपातपूर्ण है.'
पीड़ित के परिवार की ओर से पेश अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने कहा कि वह चाहते है कि जांच के बाद इसकी सुनवाई दिल्ली की अदालत में कराई जाए. उन्होंने कहा कि जांच एजेन्सी को अपनी प्रगति रिपोर्ट सीधे शीर्ष अदालत को सौंपने का निर्देश दिया जाए.
- मेहता ने कहा कि सही स्थिति तो यह है कि राज्य सरकार पहले ही कह चुकी है कि उसे कोई आपत्ति नहीं है और कोई भी जांच कर सकता है. उन्होंने कहा कि सीबीआई ने 10 अक्टूबर से जांच अपने हाथ में ली है.
- मेहता ने कहा कि पीड़ित की पहचान किसी भी स्थिति में सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि कानून इसकी अनुमति नहीं देता है.
- सॉलिसीटर जनरल ने कहा, 'कोई भी ऐसा कुछ नहीं लिख सकता जिसमें पीड़ित का नाम या और कुछ हो जिससे उसकी पहचान का खुला हो सकता हो.'
एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि इस समय आरोपी को नहीं सुना जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'हमें उत्तर प्रदेश राज्य में निष्पक्ष सुनवाई की उम्मीद नहीं है. जांच पहले ही चौपट की जा चुकी है.' उन्होंने कहा, 'पीड़ित के परिवार और गवाहों को उत्तर प्रदेश द्वारा को दी गई सुरक्षा से हम संतुष्ट नहीं है. उन्नाव मामले की तरह इसमें भी सुरक्षा सीआरपीएफ को दी जानी चाहिए.'
एक आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि इस मामले का सारा विवरण पूरी मीडिया में है.