लखनऊ :उत्तरप्रदेश की सीत विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. खास बात यह है कि एक सीट देवरिया में चुनाव काफी दिलचस्प और रोचक हो गया है. उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय से ब्राह्मणों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए चल रहे घटनाक्रम को देखते हुए राजनीतिक दलों ने देवरिया सदर विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वर्ग के 'त्रिपाठी' उपनाम वाले उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारकर बड़ा दांव चला है. सभी पार्टियों ने इस सीट पर 'त्रिपाठी' उम्मीदवार उतारकर चुनावी लड़ाई को काफी दिलचस्प बना दिया है. अब देखने वाली बात होगी चारों प्रमुख राजनीतिक दलों का कौन सा 'त्रिपाठी' चुनाव मैदान में विजयी होता है.
राजनीतिक संदेश देने की कोशिश
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में जिस प्रकार से सियासी मुद्दा ब्राह्मणों को लेकर बना हुआ है, उसको देखते हुए इस समुदाय को राजनीतिक संदेश देने के उद्देश्य से राजनीतिक दलों ने देवरिया सदर सीट पर 'त्रिपाठी' उम्मीदवार उतारा है. सभी दलों में यह होड़ रही कि इस सीट पर 'त्रिपाठी' उम्मीदवार को ही चुनाव मैदान में उतारा जाए और आखिरकार चारों प्रमुख राजनीतिक दलों ने ब्राह्मण समाज के 'त्रिपाठी' उपनाम वाले उम्मीदवारों को ही तवज्जो दी.
'त्रिपाठी बनाम त्रिपाठी' की लड़ाई दिलचस्प
पूर्वांचल के देवरिया जिले की सदर विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक रहे जन्मेजय सिंह की मौत के बाद उपचुनाव हो रहा है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस पार्टी व भारतीय जनता पार्टी ने ब्राह्मण उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है. यहां पर पूरी चुनावी लड़ाई ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण हो गई है.
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सबसे पहले बसपा ने घोषित किया था 'त्रिपाठी' उम्मीदवार
देवरिया सदर सीट पर सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी ने अपने उम्मीदवार का एलान किया था. बसपा ने इस सीट पर अभय नाथ त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा था. उसके बाद कांग्रेस पार्टी ने मुकुंद भास्कर मणि त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया और इसके बाद समाजवादी पार्टी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारकर ब्राह्मण वर्ग को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने का कार्ड खेला. जब बसपा, कांग्रेस और सपा तीनों दलों ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे तो बीजेपी नेतृत्व को लगा कि कहीं चुनावी लड़ाई में पार्टी को नुकसान न उठाना पड़ जाए तो भाजपा को भी ब्राह्मण उम्मीदवार उतारना पड़ा.
चुनाव मैदान में 'त्रिपाठी बनाम त्रिपाठी' लड़ाई
बीजेपी ने एक डिग्री कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर डॉ. सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतार कर उपचुनाव को और दिलचस्प बना दिया है. अब पूरी चुनावी लड़ाई 'त्रिपाठी बनाम त्रिपाठी' के बीच रोचक जंग में नजर आएगी.
किसी एक त्रिपाठी के भाग्य का होगा फैसला
पूर्वांचल के देवरिया जिले की सदर सीट पर सवा तीन लाख मतदाता हैं. जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, दलित और यादव मतदाताओं की बहुलता है. इसके अलावा अति पिछड़ी जातियों के वोट भी यहां पर काफी संख्या में हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि सवा तीन लाख मतदाता में ज्यादा लोग किस 'त्रिपाठी' के पक्ष में अपने मतदान का प्रयोग करते हैं और किसकी किस्मत चमकती है.
भाजपा ने की सामाजिक समीकरण सुधारने की कवायद
भाजपा की तरफ से देवरिया सदर सीट पर उम्मीदवार घोषित करने से पहले जिन छह सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए गए थे, उनमें एक भी सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं उतारा गया था. इसको लेकर तमाम तरह के सवाल उठ रहे थे. इसके बाद जब तीनों राजनीतिक दलों द्वारा ब्राह्मण उम्मीदवार घोषित कर दिए गए थे तो बीजेपी के सामने भी सामाजिक और जाति समीकरण सुधारने को लेकर एक बड़ी चुनौती थी. इन्हीं तमाम चीजों पर समीकरण दुरुस्त करने के उद्देश्य से भारतीय जनता पार्टी ने आखिरकार इस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारने का फैसला किया.
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देवरिया की जनता बताएगी कौन ब्राह्मण हितैषी पार्टी
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर पिछले कुछ महीनों से ब्राह्मण को लेकर वर्तमान प्रदेश सरकार पर उपेक्षा और उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं. ऐसी स्थिति में जब सभी दलों ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे तो बीजेपी ने भी ब्राह्मण प्रत्याशी घोषित कर दिया. अब देवरिया सदर की जनता अपने मतदान के माध्यम से यह बताएगी कि कौन सी पार्टी ब्राह्मण हितैषी है और कौन से 'त्रिपाठी' को देवरिया की जनता विधानसभा तक पहुंचाती है.