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ब्रिक्स में भारत के लिए क्या खास था, एक विश्लेषण

ब्राजील के ब्रासीलिया में 14 नवंबर को 11 वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का समापन हुआ. पांच सदस्यों के इस संस्था के वार्षिक कार्यक्रम में ब्राजील, रूस, भारत के राज्य प्रमुखों ने भाग लिया. चीन और द. अफ्रीका इसके दो अन्य सदस्य हैं. इसे संक्षेप में हम लोग ब्रिक्स कहते हैं. ब्रिक्स से पहले इसे ब्रिक कहा जाता था. इसमें ब्राजील, रूस, भारत और चीन सदस्य थे. इस शब्द को पहली बार 2001 में गोल्डमैन सैक्स के तत्कालीन अध्यक्ष जिम ओ नील द्वारा गढ़ा गया था. इसका उद्देश्य था दुनिया के चार तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को निरूपित करने के लिए एसेट्स मैनेजमेंट ग्रुप.

फाइल फोटो.

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Published : Nov 21, 2019, 3:24 PM IST

ओ'नील ने भविष्यवाणी की थी कि वर्ष 2050 तक ये अर्थव्यवस्थाएं शीर्ष पर होंगी. चीन और भारत के साथ दुनिया की पांच अर्थव्यवस्थाएं शीर्ष दो रैंक ले रही हैं. यह भविष्यवाणी इन देशों में प्रचलित मजबूत आर्थिक विकास पर आधारित थी. उनकी स्थिर राजकोषीय वृद्धि से उत्साहित होकर, चार राष्ट्र इसे औपचारिक रूप देने का निर्णय लेते हैं.

BRICS का समूहीकरण और पहली शिखर बैठक जून, 2009 में रूस में आयोजित की गई थी. बाद में, दक्षिण अफ्रीका गणराज्य को ब्रिक्स में विस्तार करने वाले समूह में जोड़ा गया. कई अन्य देशों जैसे इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, पाकिस्तान आदि ने इस समूह में जुड़ने की अपनी इच्छा व्यक्त की.

ब्रिक्स के देश 27 फीसदी से अधिक विश्व भूगोल और 41 फीसदी से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है. इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था में 23.2 फीसदी हिस्सेदारी रखता है. जीडीपी 40.55 ट्रिलियन डॉलर का है. विदेशी मुद्रा भंडार 4.46 ट्रि. डॉलर का है.

अपने उद्देश्य 'वित्तीय संस्थानों में सुधार और सुधार वैश्विक आर्थिक स्थिति' विषय पर चर्चा के दौरान ब्रिक्स देशों ने आईएमएफ और विश्व बैंक के प्रभाव और उनके कामकाज करने के एक पक्षीय रूख पर चिंता जताई. विकासशील देशों द्वारा उधार लेने के पारंपरिक रुख से उलट, 2012 में ब्रिक्स ने एक बड़ा फैसला लिया था. इसने आईएमएफ को 75 बिल डॉलर उधार देने के निर्णय लिया था.

बाद में 2014 में ब्रिक्स ने अपने स्वयं के बैंक स्थापना का निर्णय लिया. इसे न्यू डेवलपमेंट बैंक कहा जाता है. सभी सदस्य देशों ने अलग-अलग 10-10 बिल डॉलर की राशि का योगदान किया. बाद में यह राशि दोगुनी की गई. बैंक विभिन्न देशों में विकासात्मक परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान करता है.

ब्रिक्स में भी 2014 में एक आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. सदस्य-राज्यों के लिए तरलता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, जब भी वे कठिन स्थितियों का सामना करेंगे, तो इसके तहत सौ बिल की पूंजी प्रतिबद्ध की गई. संकट की स्थिति में ब्रिक्स वित्तीय स्थिरता के गारंटर के रूप में कार्य करेगी.

सदस्य राष्ट्र अलग-अलग मुद्दों पर भी समझ विकसित कर उस पर काम कर रहे हैं. संचार और सूचना प्रौद्योगिकी, सीमा शुल्क और टैरिफ जैसे अन्य क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण नियंत्रण, आतंकवाद का मुकाबला, स्वास्थ्य में अनुसंधान, विज्ञान में नवाचार, ऊर्जा,अमेरिका प्रतिबंधों को दरकिनार कर फंड ट्रांसफर सिस्टम वगैरह.


हालांकि, किसी भी अन्य बहुपक्षीय संगठन की तरह, ब्रिक्स में भी कमियां हैं. कुछ आलोचक इसे चीन केन्द्रित बताते हैं. कुछ का कहना है कि भिन्नता और प्रतिस्पर्धी हित एक दूसरे के खिलाफ है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सभी क्षेत्रीय संगठन के अंदर सदस्यों के बीच घर्षण का अनुभव होता है. ऐसे संगठन एक समान लक्ष्य के लिए इकट्ठे होते हैं.

यह अच्छी कूटनीति का काम है, खासकर मौजूदा स्थितियों के बीच सबसे अच्छा समाधान प्राप्त करने के लिए.

एक और सवाल पूछे जाने की संभावना है कि ब्रिक्स हमारे लिए महत्वपूर्ण क्यों होना चाहिए. और हाल ही में संपन्न ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से हमें क्या मिला है? सबसे पहले, ये क्षेत्रीय छोटे समूह को संभालना आसान है और विचार-विमर्श करना आसान है और बड़े समूहों की तुलना में यहां पर जल्द निर्णय स पर पहुंचा जा सकता है.

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सार्क लगभग मृतप्राय हो चुका है. जी 20 छोटा संयुक्त राष्ट्र जैसा हो गया है. लिहाजा ब्रिक्स, बिम्सटेक और आसियान जैसे छोटे समूह हमारे विशिष्ट उद्देश्यों के लिए अधिक प्रासंगिक हो गया है. ब्राजीलिया में हुई बैठक में आतंकवाद से मुकाबले के लिए संयुक्त प्रयास करने की आवश्यकता पर हमारे रुख को स्पष्ट किया गया, देशों ने सहमति प्रदान की, खासकर आतंकियों की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मुद्दों पर.

(लेखक- जेके त्रिपाठी)

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