ओ'नील ने भविष्यवाणी की थी कि वर्ष 2050 तक ये अर्थव्यवस्थाएं शीर्ष पर होंगी. चीन और भारत के साथ दुनिया की पांच अर्थव्यवस्थाएं शीर्ष दो रैंक ले रही हैं. यह भविष्यवाणी इन देशों में प्रचलित मजबूत आर्थिक विकास पर आधारित थी. उनकी स्थिर राजकोषीय वृद्धि से उत्साहित होकर, चार राष्ट्र इसे औपचारिक रूप देने का निर्णय लेते हैं.
BRICS का समूहीकरण और पहली शिखर बैठक जून, 2009 में रूस में आयोजित की गई थी. बाद में, दक्षिण अफ्रीका गणराज्य को ब्रिक्स में विस्तार करने वाले समूह में जोड़ा गया. कई अन्य देशों जैसे इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, पाकिस्तान आदि ने इस समूह में जुड़ने की अपनी इच्छा व्यक्त की.
ब्रिक्स के देश 27 फीसदी से अधिक विश्व भूगोल और 41 फीसदी से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है. इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था में 23.2 फीसदी हिस्सेदारी रखता है. जीडीपी 40.55 ट्रिलियन डॉलर का है. विदेशी मुद्रा भंडार 4.46 ट्रि. डॉलर का है.
अपने उद्देश्य 'वित्तीय संस्थानों में सुधार और सुधार वैश्विक आर्थिक स्थिति' विषय पर चर्चा के दौरान ब्रिक्स देशों ने आईएमएफ और विश्व बैंक के प्रभाव और उनके कामकाज करने के एक पक्षीय रूख पर चिंता जताई. विकासशील देशों द्वारा उधार लेने के पारंपरिक रुख से उलट, 2012 में ब्रिक्स ने एक बड़ा फैसला लिया था. इसने आईएमएफ को 75 बिल डॉलर उधार देने के निर्णय लिया था.
बाद में 2014 में ब्रिक्स ने अपने स्वयं के बैंक स्थापना का निर्णय लिया. इसे न्यू डेवलपमेंट बैंक कहा जाता है. सभी सदस्य देशों ने अलग-अलग 10-10 बिल डॉलर की राशि का योगदान किया. बाद में यह राशि दोगुनी की गई. बैंक विभिन्न देशों में विकासात्मक परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान करता है.
ब्रिक्स में भी 2014 में एक आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. सदस्य-राज्यों के लिए तरलता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, जब भी वे कठिन स्थितियों का सामना करेंगे, तो इसके तहत सौ बिल की पूंजी प्रतिबद्ध की गई. संकट की स्थिति में ब्रिक्स वित्तीय स्थिरता के गारंटर के रूप में कार्य करेगी.