नई दिल्ली : हरियाणा और महाराष्ट्र में उम्मीद से कमजोर प्रदर्शन करने के बाद झारखंड में भाजपा को मिली पराजय से ये विचार प्रबल हो रहे हैं कि स्थानीय नेतृत्व के अलावा क्षत्रपों को भी तरजीह दिया जाना चाहिए और उनकी चिंताओं की अनदेखी नहीं होनी चाहिए.
भाजपा सूत्रों ने कहा कि पार्टी नेतृत्व जल्द ही स्थिति का आकलन करेगा कि झारखंड में क्या गलत हुआ और कहा कि नेतृत्व और राज्य इकाई में आंतरिक कलह जैसे स्थानीय मुद्दों के अलावा एकताबद्ध विपक्ष को लेकर भी विश्लेषण किया जाएगा और दिल्ली सहित आगामी चुनावों के लिए रणनीति बनाई जाएगी.
सूत्रों ने बताया कि झारखंड के अनुभव ने स्थानीय इकाइयों की आवाज सुनने की आवश्यकता पर बल दिया है, खासकर उन राज्यों में जहां पार्टी सत्ता में है. उन्होंने कहा कि भाजपा को महाराष्ट्र में कुछ सीटों का नुकसान हुआ, क्योंकि कई क्षेत्रीय कद्दावर नेताओं के टिकट काट दिए गए जिनके संबंध तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से अच्छे नहीं थे.
उल्लेखनीय है कि झारखंड के निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुबर दास, अपनी ही पार्टी के एक प्रमुख नेता सरयू राय से हार गए. राय कद्दावर स्थानीय नेता हैं और केंद्रीय नेतृत्व ने दास के कामकाज के तरीके पर राय की आपत्तियों को नजरअंदाज कर गलती की.
उन्होंने कहा कि हो सकता है कि इससे पार्टी शासित राज्यों असम, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में हो रहे घटनाक्रम पर ज्यादा नजदीकी से नजर रखने के लिए प्रेरित हो.
संशोधित नागरिकता कानून को लेकर असम में हुए प्रदर्शन के कारण पार्टी वहां रक्षात्मक मुद्रा में है, वहीं उत्तराखंड के स्थानीय निकाय चुनावों में उसने खराब प्रदर्शन किए.