शाहजहांपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा.' यह चंद लाइनें शाहजहांपुर के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अपने जान की कुर्बानी दे दी. उन्हीं की याद में 19 दिसंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.
शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है. यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है. शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया. इसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया और 19 दिसंबर 1927 को इन महानायकों को फांसी दे दी गई.
शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की. यहां राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. इसी वजह से आज भी यह आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है.
इस मंदिर में राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. जबकि, अशफाक उल्ला खां कट्टर मुसलमान थे. लेकिन, दोनों दोस्त एक ही थाली में खाना खाया करते थे. इन दोनों महान क्रांतिकारियों की दोस्ती आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.
काकोरी कांड से बौखला गई थी अंग्रेजी हुकूमत
दोनों मित्र देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई-नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड में अंग्रेजों से लोहा लिया था. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने वाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी.