देहरादून : उत्तराखंड के देहरादून की एक सुदूरवर्ती कॉलोनी के निवासियों ने स्वच्छ भारत मिशन से प्रेरित होकर सफाई करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया है. केवल विहार कॉलोनी के लोगों ने कचरा प्रबंधन का प्रभावी तरीका अपनाया है. उनके इस खास प्रबंधन की वजह से उन्होंने प्लास्टिक मुक्त स्थान की छवि बना ली है.
लोगों को अपने-अपने घरों पर ही कचरे को अलग-अलग रखने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से लोग सूखा और गीला कचरा अलग रखते हैं. इसके बाद कचरे को कम्पोस्ट या खाद में बदला जाता है.
केवल विहार में अभियान के दौरान सिंगल यूज प्लास्टिक को भी जमा किया जाता है. फिर इस कचरे का प्रयोग सड़क निर्माण में किया जाता है. इसके अलावा सिंगल यूज प्लास्टिक को इंडियन पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट में भी भेजा जाता है, जहां डीजल बनाने में इसका उपयोग किया जाता है.
इस इलाके को जीरो वेस्ट जोन बनाने के लिए केवल विहार को दून स्मार्ट सिटी से पहला पुरस्कार भी मिल चुका है.
कॉलोनी में 1500 कपड़े के बैग भी बनाए गए हैं. इसके लिए पुराने बेड शीट और परदों का प्रयोग किया गया है. कपड़ों से बने ये बैग स्थानीय दुकानदारों और सब्जी बेचने वालों को बांटे गए हैं. ऐसा करने से सफाई की इस मुहिम में सभी लोग भागीदार बन रहे हैं.
ऐसा समय आएगा जब भारत पूरी तरह से प्लास्टिक मुक्त बन जाएगा. देहरादून की केवल विहार कॉलोनी का प्रयास इस दावे के लिए एक पुख्ता प्रमाण है.
ईटीवी भारत ने केवल विहार कॉलोनी को प्लास्टिक मुक्त बनाने की मुहिम पर यहां के स्थानीय निवासी आशीष गर्ग से बात की. उन्होंने बताया कि करीब एक साल पहले स्वच्छ भारत मिशन से प्रभावित हुए. इसके बाद उन्होंने घर-घर जाकर लोगों से सूखे और गीले कचरे को अलग-अलग कर इसे कंपोस्ट बनाने की जानकारी दी.
आशीष ने बताया कि कॉलोनी से सिंगल यूज प्लास्टिक जमा करने के बाद उन्होंने प्लास्टिक कचरे को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम में डीजल बनाने के लिए भेजा. आशीष की कोशिशों से आज कॉलोनी के सैकड़ों घरों में प्लास्टिक से कंपोस्ट बनाया जा रहा है. इससे प्लास्टिक का बेहतर उपयोग हो रहा है.
सिस्टम और सरकारी अधिकारियों पर आरोप लगाने को लेकर आशीष गर्ग ने कहा कि देश को स्वच्छ बनाना सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है. सभी को आगे आना चाहिए और देश को एक बेहतर स्थान बनाना चाहिए.
कॉलोनी में रहने वाली एक महिला ने ईटीवी भारत को बताया कि वे कपड़ों की थैलियां बनाने का काम भी कुछ महिलाओं को भी दे रही हैं, इसे वे अपने जीवन यापन का जरिया बना सकती हैं.
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