भारत में पुलिस हिरासत में हुईं मौतों के आंकड़ों पर एक नजर
तमिलनाडु के तूतीकोरिन में पुलिस हिरासत में हुई पिता-पुत्र की मौत के बाद लोगों में जहां आक्रोश है, वहीं पुलिस की बर्बरता से भय भी व्याप्त है. पुलिस और नागरिकों के बीच परस्पर विश्वास बढ़ाने के लिए सरकारें प्रयास कर रही हैं. फिलहाल जनसामान्य के साथ पुलिस की क्रूरता के मामले बढ़ते जा रहे हैं. पुलिस हिरासत में हुईं मौतों के आंकड़ों और सरकार के प्रयासों पर एक नजर...
कस्टोडियल डेथ्स
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Published : Jul 2, 2020, 12:15 PM IST
हैदराबाद : तमिलनाडु के तूतीकोरिन में पिता-पुत्र की मौत के मामले के बाद लोगों में आक्रोश है. दरअसल 19 जून को लॉकडाउन के दौरान अपनी मोबाइल की दुकान खुली रखने के कारण पुलिस पिता-पुत्र को पूछताछ के लिए ले गई थी. हिरासत के दौरान कथित तौर पर पुलिस ने उनके साथ क्रूरता की. हालत खराब होने पर 22 जून को पिता-पुत्र को कोविलपट्टी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उसी रात बेटे की मौत हो गई थी. इसके बाद 23 जून की सुबह पिता ने भी दम तोड़ दिया.
हिरासत में मौत, भारत में मामलों का पंजीकरण और सजा दरों का विश्लेषण
साल
पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज मामले
पुलिस के खिलाफ दाखिल चार्जशीट
अपराधी
दर्ज किए गए मामलों की सजा दर (% में)
चार्जशीट फाइल होने के बाद कितनों को सजा
पुलिस हिरासत में मौत
2018
5,479
918
41
0.74%
4.4%
70
2017
2,005
1,000
128
6.3%
12.8%
100
2016
3,082
1,104
31
1.0%
2.80%
92
2015
5,526
1,122
25
0.45%
2.22%
67
2014
2,601
1,132
44
1.69%
3.88%
61
स्रोत : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)
टॉर्चर इंडिया 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार न्यायिक हिरासत में 1,606 लोगों की मौत हुई है. वहीं 125 लोग पुलिस हिरासत में अपनी जान गंवा चुके हैं.
तमिलनाडु में पुलिस हिरासत में हुईं मौतें
साल
पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज मामले
पुलिस के खिलाफ दाखिल चार्जशीट
अपराधी
दर्ज किए गए मामलों की सजा दर (% में)
चार्जशीट फाइल होने के बाद कितनों को सजा
पुलिस हिरासत में मौत
2018
71
19
0
0
0
12
2017
116
23
1
0.86%
4.34%
8
2016
114
42
1
0.88%
2.3%
5
2015
139
29
0
0
0
3
2014
126
54
1
0.79%
1.85%
7
स्रोत : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)
पुलिस कामकाज पर सर्वेक्षण रिपोर्ट
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) की लोकनीति टीम ने 2018 के सर्वेक्षण के अनुसार पाया कि 25% से कम लोग भारतीय पुलिस पर भरोसा करते हैं. वहीं सेना पर 54% भरोसा करते हैं.
भारत में पुलिसिंग की स्थिति रिपोर्ट 2019 (कॉमन कॉज-सीएसडीएस 2018) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में पांच में से दो लोग पुलिस से डरते हैं.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (2018) के एक अध्ययन की रिपोर्ट है कि पुलिस के अनियंत्रित व्यवहार के चलते भारतीय आबादी के लगभग तीन-चौथाई लोग शिकायतें दर्ज नहीं कराते.
भारत ने 14 अक्टूबर, 1997 को अत्याचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन यह कानून लागू नहीं किया गया है. वहीं भारत में यातना निवारण विधेयक (प्रिवेंशन ऑफ टॉर्चर बिल, 2017) भी पारित नहीं किया गया है.
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और उसका खराब क्रियान्वयन
2006 में, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार के लिए सात निर्देश जारी किए थे. छठे निर्देश में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को तत्काल प्रभाव से राज्य और जिला स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरण (पीसीए) गठित करना था.
इस प्राधिकरण का गठन पुलिस के दुर्व्यवहार या हिरासत से बलात्कार / मौत की कोशिश, बलात्कार / मौत, गंभीर चोट, और भ्रष्टाचार से लेकर अवैध गिरफ्तारी या नजरबंदी तक के मुद्दों पर लोगों की शिकायतों को प्राप्त करने और पूछताछ करने के लिए किया गया है.
पुलिस शिकायत प्राधिकरण सुनिश्चित करेगा कि लोगों की पुलिस के खिलाफ शिकायतें सुनी जाएं और पुलिस के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए. लोगों का पुलिस को देखने का नजरिया बदलना और इसे पूरी तरह से पेशेवर बनाना पीसीए का एक अहम लक्ष्य है.
पीसीए का क्रियान्वयन
राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (सीएचआरआई) पीसीए के कामकाज और प्रगति की निगरानी कर रहा है, जो कि अपर्याप्त है.
सीएचआरआई के अनुसार, राज्यों ने पीसीए सिर्फ कागजों पर बनाया है या अदालत के निर्देशों की अनदेखी की है.
असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मेघालय, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड में पीसीए हैं. सात केंद्रशासित प्रदेशों में भी पीसीए हैं. केवल असम, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, नागालैंड और राजस्थान में पीसीए राज्य और जिला स्तरों पर है.
पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में पीसीए गठित नहीं किया गया है. वहीं मध्य प्रदेश में जिला स्तर पर ही पीसीए गठित किए जाएंगे.
राष्ट्रीय पुलिस आयोग (NPC), 1977-81 :- आपातकाल के बाद स्थापित, एनपीसी ने 8 रिपोर्टें पेश कीं, जिनमें कई पुलिस मुद्दों के प्रमुख सुधार थे.
रिबेरो समिति, 1988 :- एक नए पुलिस अधिनियम को फिर से लागू करने के लिए और एनपीसी की सिफारिशों को लागू करने और की गई कार्रवाई में हुई कमी की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित की गई.
पद्मनाभैया समिति, 2000 :- पुलिस और पुलिस की जवाबदेही के राजनीतिकरण और अपराधीकरण के मुद्दों से निबटने लिए बनाई गई.
मलीमठ समिति, 2002-03 :- भारतीय दंड संहिता में बदलाव सुझाए गए और न्यायिक कार्यवाही में सुधार के तरीके बताए गए.
पुलिस अधिनियम मसौदा समिति 1, 2005 :- 1861 के पुलिस अधिनियम को बदलने के लिए एक नया पुलिस अधिनियम बनाया गया.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, 2006 :- सुप्रीम कोर्ट ने राज्य पुलिस बलों को सात निर्देश जारी किए, जिनमें राज्य सुरक्षा आयोग, पुलिस प्रतिष्ठान बोर्ड और एक पुलिस शिकायत प्राधिकरण स्थापित करना शामिल था.
दूसरा प्रशासनिक सुधार, 2007 :- पुलिस और नागरिकों के बीच संबंध असंतोषजनक थे. यह देखते हुए इसे बदलने के लिए कई सुधारों का सुझाव दिए गए.
न्यायमूर्ति थॉमस समिति, 2010 :- पुलिस सुधारों के लिए राज्य सरकारों की कुल उदासीनता पर प्रकाश डाला गया.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, 2018 :- पुलिस सुधारों पर नए निर्देश दिए गए और 2006 के निर्देशों के कार्यान्वयन में प्रगति की समीक्षा की गई.