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अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर के शाकाहारी मगरमच्छ का निधन, दर्शन को शुभ मानते थे भक्त

केरल के प्रसिद्ध अनंतपुरम अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर की झील में रहने वाले 'बबिया' नाम के मगरमच्छ का निधन (crocodile Babia dies) हो गया है. 75 साल का ये मगरमच्छ शाकाहारी था और मंदिर में भक्तों द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को ही खाता था.

crocodile Babia die
बबिया मगरमच्छ का निधन

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Published : Oct 10, 2022, 5:10 PM IST

कासरगोड:अनंतपुरम अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर (Ananthapuram Ananthapadmanabha Swamy temple) की झील में रहने वाले 'बबिया' नाम के मगरमच्छ की रविवार को मौत हो गई. मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 75 साल की बबिया एक रहस्य था. वो पिछले दो दिनों से लापता था. मगरमच्छ पूरी तरह से शाकाहारी था और मंदिर में भक्तों द्वारा चढ़ाए गए चावल ही खाता था. ऐसा माना जाता है कि बबिया ने कभी झील में मछली (Babia crocodile) नहीं खाई. माना जाता है कि इसका दर्शन करना शुभ होता है. ये कभी-कभी झील से मंदिर के दर्शन किया करता था. बबिया का 'दर्शन' करने का वीडियो कुछ साल पहले वायरल हुआ था.

बताया जाता है कि ब्रिटिश काल के दौरान शासकों ने झील में मौजूद एक मगरमच्छ को गोली मारकर मार डाला था. उसकी मौत के कुछ महीने बाद बबिया तालाब में आया. ये कहां से आया यह आज तक रहस्य बना हुआ है. ऐसा माना जाता है कि यह झील में ही प्रकट हुआ था और किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाता था. 2019 में बबिया (Babiya) की मौत की अफवाह उड़ी थी जिसके बाद मंदिर के अधिकारियों ने बबिया के जीवित होने की पुष्टि की थी.

शाकाहारी 'बबिया' मगरमच्छ का निधन

अनंतपुरम अनंतपद्मनाभ मंदिर का इतिहास- माना जाता है कि अनंतपुरा झील (Anantapura Lake) मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया था. मंदिर एक झील के बीच में बना हुआ है. भारी बारिश में भी इस मंदिर का जल स्तर नहीं बढ़ता है. झील के दाहिनी ओर एक गुफा का प्रवेश द्वार है और मिथकों के अनुसार यह गुफा तिरुवनंतपुरम तक फैली हुई है. इस मंदिर को तिरुवनंतपुरम में प्रसिद्ध आनंद पद्मनाभ स्वामी मंदिर का मातृ मंदिर माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु इस गुफा के माध्यम से तिरुवनंतपुरम गए और यहां पहुंचने के बाद थकान के कारण लेट गए. यही कारण है कि तिरुवनंतपुरम में पद्मनाभ स्वामी मंदिर (Padmanabha Swamy Temple) में विष्णु की मूर्ति लेटी हुई है.

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कासरगोड अनंतपुरम मंदिर में भगवान की मूर्ति 'पंचलोहा' से नहीं बनी है. इसे 'कडुसरकार' नामक एक विशेष मिश्रण का उपयोग करके कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके बनाया गया है. मूर्ति गुड़, मोम, नारियल तेल और गेहूं के पाउडर सहित चौंसठ सामग्रियों को मिलाकर बनाई गई है. मंदिर में कृत्रिम रंगों की बजाए प्राकृतिक रंगों से दीवारों पर पेंटिंग की गई है जो पर्यटकों को आकर्षित करती है. माना जाता है कि मंदिर के भित्ति चित्र एक हजार साल से अधिक पुराने हैं.

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