नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि महिला अधिकारियों को कर्नल पद पर प्रोन्नति के लिए सूचीबद्ध करने से इनकार करने का सेना का रवैया मनमाना है. इसके साथ ही न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे महिला अधिकारियों की पदोन्नति के लिए विशेष चयन बोर्ड की बैठक एक पखवाड़े के भीतर फिर से आयोजित करे. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने महिला अधिकारियों के उचित अधिकारों को समाप्त करने का रास्ता ढूंढने के रवैये की निंदा की. पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे.
पीठ ने कहा, 'इस तरह का दृष्टिकोण उन महिला अधिकारियों को न्याय प्रदान करने की आवश्यकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिन्होंने उचित अधिकार प्राप्त करने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है.' उन्होंने कहा, 'कर्नल के रूप में पैनल में शामिल होने के लिए महिला अधिकारियों की गोपनीय रिपोर्ट (सीआर) के वास्ते जिस तरह से कट-ऑफ लागू किया गया है, वह मनमाना है, क्योंकि यह सेना के नीति परिपत्र और इस अदालत के फैसले के विपरीत है.'
शीर्ष अदालत ने कहा कि निर्धारित नीतिगत ढांचा यह स्पष्ट करता है कि नौ साल की सेवा के बाद सभी गोपनीय रिपोर्ट (सीआर) पर विचार किया जाना आवश्यक है. इसमें कहा गया है कि मौजूदा मामले में महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के बराबर लाने के लिए मनमाने ढंग से कट-ऑफ लागू किया गया था. शीर्ष अदालत ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि अधिकारियों को समायोजित करने के लिए रिक्तियों की संख्या अपर्याप्त है.
शीर्ष अदालत ने कहा, 'इस संबंध में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अदालत ने अपने 21 नवंबर, 2022 के आदेश में सेना के अधिकारियों के बयान दर्ज किये थे कि हमारे फैसले के अनुसार 150 रिक्तियां उपलब्ध कराई जानी थीं, इनमें से 108 रिक्तियां भरी जा चुकी हैं. इसलिए रिक्तियों की अनुपलब्धता का आधार भी नहीं चलेगा.' शीर्ष अदालत भारतीय सेना की उन महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिन्हें स्थायी कमीशन दिया गया है. यह विवाद चयन द्वारा कर्नल के पद पर पदोन्नति के लिए पैनल में शामिल न किए जाने से संबंधित है.
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