दुमका: भारत में नॉर्वे के राजदूत हैंस जैकब फ्राइडेनलुंड रविवार को झारखंड की उपराजधानी दुमका पहुंचे, जहां उनका परंपरागत आदिवासी तौर तरीकों से स्वागत किया गया. इसके बाद वे राजकीय पुस्तकालय पहुंचे, जहां छात्रों के साथ दोनों देशों की सभ्यता, संस्कृति, भाषा के साथ-साथ दोनों देशों के क्लाइमेट पर संवाद भी किया. हैंस जैकब फ्राइडेनलुंड का मुख्य कार्यक्रम सोमवार को स्थानीय कन्वेंशन हॉल में आयोजित होगा, जहां वे जिले के बुद्धिजीवियों और छात्र-छात्राओं के साथ उच्च शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के विषय पर परिचर्चा में भाग लेंगे.
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पुस्तकालय में छात्र छात्राओं के साथ किया संवाद:हैंस जैकब फ्राइडेनलुंड ने दुमका के राजकीय पुस्तकालय में उपस्थित छात्रों के साथ बातचीत की और छात्रों को को अपने देश के बारे में बताया. इसके साथ ही नॉर्वे देश की अर्थव्यवस्था और भारत और नॉर्वे के बीच मधुर संबंधों के बारे में भी छात्रों को अवगत कराया, उन्होंने नार्वे की इकोनॉमी, इको सोशियो के साथ-साथ पर्यावरण के विषय पर महत्त्वपूर्ण जानकारी दिए गए. उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह एक भावनात्मक अनुभव है, क्योंकि जब मैंने 1965 में अपनी स्कूली शिक्षा शुरू की थी, मेरी जो शिक्षिका थी, वह संथाली संस्कृति की प्रशंसक थी. उन्होंने संथाली भाषा और संस्कृति सीखी और संथाली भाषा में लिखा भी, जो मेरे लिए प्रेरणादायक है.
इस बीच छात्र-छात्राओं ने विभिन्न क्षेत्रों और विषयों पर राजदूत से सवाल किए, जिसका जवाब भी हैंस जैकब फ्राइडेनलुंड ने बखूबी दिए. जिले के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने पुस्तकालय विजिट करने और बच्चो से इंटरैक्ट करने के लिए नार्वे के राजदूत का आभार व्यक्त किया और कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से ही नार्वे और भारत के बीच सोशियो इको डेवलप होगी. हेंस जैकब ने कहा कि संथाल परगना के दुमका में पहली बार आना बहुत अच्छा लग रहा है. हमारे देश नॉर्वे का संथाल परगना की संस्कृति और परंपरा से पुराना नाता रहा है.
क्या है दुमका और नॉर्वे का कनेक्शन: दरअसल, नॉर्वे के लोगों का दुमका की धरती से बहुत गहरा लगाव रहा है. नॉर्वे के मिशनरी से रहे लार्स ओरसेन स्क्रेप्सरूड ने 1867 ईसवी में संथाल परगना की धरती पर वर्तमान दुमका जिले के बेनागड़िया गांव में एवेंजर मिशन की स्थापना की थी. बाद में वे असम गये तो 1868 में नार्दन इवानजेलिकल लुथेरियन चर्च की स्थापना की. उनके बाद पॉल ओल्फ बोडिंग (पी.ओ बोडिंग) भी नार्वे से दुमका पहुंचे थे. इन दोनों ने संथाली भाषा और साहित्य का ना केवल अध्ययन किया, बल्कि इस क्षेत्र को लेकर काफी कुुछ जानकारी भी एकत्रित की. खुद संताली सीखी और पुस्तक लेखन कर संथाली साहित्य, व्याकरण, कथा-कहानी और लोकोक्तियों के अलावा चिकित्सा पद्धति को भी लिपिबद्ध किया.
इतना ही नहीं बेनागड़िया जैसे सुदूरवर्ती इलाके में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना कर संथाली पत्र-पत्रिकाओं का उन्होंने प्रकाशन कराया था. हाल ही में नॉर्वे से भारत आकर संथाली भाषा और साहित्य को विकसित करने वाले स्क्रेप्सरूड और पीओ बोडिंग की जयंती पर दुमका जिला प्रशासन ने जब साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किया, तो नार्वे के राजदूत हैंस जैकब फ्राइडेनलुंड ऑनलाइन माध्यमों से ना केवल जुड़े थे, बल्कि संदेश भी दिया था.