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इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध से क्या है राजस्थान के अलवर का कनेक्शन ?

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद पुराना है और युद्ध 70 सालों से छिड़ा है. इस युद्ध के इतिहास में अलवर रियासत का भी विशेष महत्व रहा है. रियासत के महाराज तेज सिंह ने धनराशि जुटाने के साथ युद्ध में अपने सैनिकों को भी जंग के लिए भेजा था.

इजरायल फिलिस्तीन का अलवर कनेक्शन
इजरायल फिलिस्तीन का अलवर कनेक्शन

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Published : May 24, 2021, 6:51 PM IST

अलवर (राजस्थान):इजरायल और फिलिस्तीन के बीच 70 सालों से गाजा पट्टी सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर लगातार विवाद चल रहा है. इस बार भी ग्यारह दिन चले संघर्ष में दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बने और मिसाइल हमले तक हुए. अमेरिका व रूस के दबाव और हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों में युद्ध विराम हो गया है. करीब 70 साल से भी पुरानी इजराइल और फिलिस्तीन की इस जंग में राजस्थान के अलवर का खास कनेक्शन रहा है. बताते हैं कि 1947 से पहले अलवर रियासत के सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा लिया था. इस दौरान अलवर रियासत की तरफ से युद्ध में राइफल, गोला-बारूद सहित अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराए गए थे. सैनिकों को युद्ध के लिए भेजा साथ ही इस दौरान फंड जुटाने के लिए अलवर रियासत में कई कार्यक्रम भी आयोजित हुए. द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर सन 1947 से पहले उस समय हुए युद्धों में अलवर की भूमिका के संबंध में इतिहासकार सह आचार्य डॉ. फूल सिंह सहारिया ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

डॉ. फूल सिंह सहारिया, इतिहासकार

जब युद्ध में शामिल हुए अलवर की रियासत के सैनिक

साल 1948 से पहले फिलिस्तीन ब्रिटेन के औपनिवेशिक प्रशासन के अन्तर्गत था. यहूदी लोग एक लम्बे समय से फिलिस्तीन में अपने एक निजी राष्ट्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे और संसार के अलग-अलग भागों से आकर यहूदी फिलिस्तीनी इलाके में बसने लगे. हालांकि, अरब राष्ट्र इससे नाखुश थे, जिसकी वजह से साल 1946-1947 के मध्य अरबों और यहूदियों के बीच युद्ध शुरू हो गया. इसी युद्ध में अलवर की रियासत के सैनिकों ने हिस्सा लिया था. इस दौरान ही 14 मई 1948 को इजरायल नामक एक नए देश का उदय हुआ.
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आकर इजराइल में बसे यहूदी
दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध से पहले वो हिस्सा तुर्की के कब्जे में था जिसे आज इज़रायल के नाम से जानते हैं. लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान साल 1917 में ब्रिटिश सेनाओं ने इस पर अधिकार कर लिया. 2 नवम्बर 1917 को तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मन्त्री बालफोर ने घोषणा की कि इजरायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है, जिसमें सारे संसार के यहूदी यहां आकर बस सकते हैं. इसके साथ ही मित्रराष्ट्रों (इंग्लैंड, अमेरिका, जापान, रूस और फ्रांस) ने भी इस घोषणा की पुष्टि कर दी. इस घोषणा के बाद से ही यहां यहूदियों की जनसंख्या निरन्तर बढ़ती गई. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद मित्रराष्ट्रों ने साल 1948 में एक इजरायल नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत स्थापना की, जिसके बाद से ही दुनिया के नक्शे पर इजराइल देश अस्तित्व में आया.

डॉ. फूल सिंह सहारिया, इतिहासकार
डॉ. फूल सिंह सहारिया अब तक 35 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र प्रस्तुत कर चुके हैंं और उनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें भी अलवर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर प्रकाशित हो चुकी हैं. डॉ. फूल सिंह ने बताया कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहा विवाद सालों पुराना है. उन्होंने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत काल के दौरान अलवर रियासत उनके अधीन थी. इस दौरान अंग्रेजों से हुई संधि के अनुसार अलवर रियासत के सैनिकों ने कई देशों के साथ मिलकर युद्ध लड़ा. पुराने अभिलेख और प्रकाशित अखबारों और शोध के माध्यम से उन्होंने बताया कि हांगकांग और सिंगापुर के शाही भारतीय तोपखाना ने कई हमले कर इटैलियन हवाई जहाज गिराए थे.

दूसरा विश्व युद्ध और भारत

फूल सिंह सहारिया बताते हैं कि जर्मनी की वायु सेना ने भी लंदन पर हमला किया. उसमें 400 लोग मारे गए और 1400 के लगभग घायल हुए. जुलाई 1940 के शुरू में भारत ने बड़ी संख्या में युद्ध सामग्री भेजी. इसमें 7 करोड़ 50 लाख रुपये के गोला बारूद, हथियार दिए गए थे. इनमें दो लाख सब प्रकार के गोले, 600 राइफलें भेजी गई थी. इसके अलावा 95 वेव इंक्रीमेंट सेट के साथ-साथ लाखों कंबल के साथ कई चीजें भेजी दी. फंड इकट्ठा करने के लिए उस दौरान अलवर रियासत काल में कई कार्यक्रम हुए.

डॉ. फूल सिंह सहारिया, इतिहासकार

उन्होंने कहा कि वाशिंगटन स्टार पोस्ट के माध्यम से बताया गया कि अमेरिका भी विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल होगा. इस दौरान जर्मनी की आशंकाओं के विरुद्ध जापान के साथ एक संधि हो चुकी थी. इसी में यह भी प्रकाशित किया गया था कि हिटलर 1941 में रूस पर आक्रमण करने का विचार कर रहा है. ग्रीन सेना की ओर से 7000 इटेलियन को कैद किया गया है. 29 नवंबर को ब्रिटिश पोस्ट ने 11 जर्मन हवाई जहाज नष्ट किए. मिस्र के पश्चिमी रेगिस्तान में हिंदुस्तानी फौज के सिपाहियों में खासा जोश देखने को मिला. सितंबर 1940 के अंत तक सप्लाई डिपार्टमेंट के दो खरीद करने वाले विभागों की ओर से सिविल और मिलिट्री के लिए लगभग 56 करोड़ 50 लाख के माल के ऑर्डर दिए जा चुके थे.

उन्होंने कहा कि यूनाइटेड किंगडम साम्राज्य के देशों तथा साम्राज्य के बाहर के देशों के लिए इराक, मिस्र और भारत की रक्षा करने वाले फौजियों के लिए कुल मिलाकर युद्ध के प्रथम 14 महीने के अंदर 108000 ठेके दिए जा चुके थे. हवाई जहाज उड़ाने की ट्रेनिंग के लिए पहला ट्रेनिंग स्कूल अंबाला छावनी में खोला गया. उसके बाद लाहौर में ट्रेनिंग दी गई. लाहौर के प्राथमिक ट्रेनिंग स्कूल में 74 भारतीय अफसर भर्ती किए गए जिसमें 15 मुसलमान थे.

अलवर रियासत की तरफ से दी गई मदद

केंद्रीय असेंबली में कांग्रेस सदस्यों ने बहस के दौरान कहा कि जर्मनी की हुकूमत कोई नहीं चाहता है. उस दौरान ब्रिटिश फौज के डर से 5000 इटालियन सैनिकों ने घुटने टेक दिए थे. अलवर रियासत ने भी लगातार अपना सहयोग दिया. 9 जुलाई 1940 में युद्ध प्रारंभ हुआ और उस दौरान अलवर रियासत के राजा के आदेश पर 3 माह 10 दिन में 2,36,096 रुपये की राशि एकत्र की गई और 31 मार्च 1941 तक 3,50,157 रुपये की राशि दी गई.

19 अक्टूबर 1940 को अलवर महाराज की अध्यक्षता में वार परपजेस प्रदेश कमेटी की जनरल मीटिंग हुई. जिसमें 1,40,000 रुपये ग्रेट ब्रिटेन को लड़ाकू जहाज तैयार करने के लिए दिए गए. इंडियन आर्मी की एक मोटर ट्रांसपोर्ट यूनिट के लिए जवान उपलब्ध कराए गए. इसके तहत 106 लोग शुरुआत में भेजे गए.

फूल सिंह सहारिया के मुताबिक अलवर रियासत शुरू से ही खासी अहम रही है. विश्व में होने वाले युद्ध में राजस्थान की अलवर रियासत के सैनिकों ने सबसे अधिक हिस्सा लिया है. अलवर रियासत की तरफ से गोला बारूद फंड सहित अन्य सामान उपलब्ध कराए गए. अलवर रियासत में महिलाओं का भी अहम रोल रहा है. महिलाओं ने समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से सहयोग किया और फंड जमा करने में भी उनकी अहम भूमिका रही.

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