अलवर (राजस्थान):इजरायल और फिलिस्तीन के बीच 70 सालों से गाजा पट्टी सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर लगातार विवाद चल रहा है. इस बार भी ग्यारह दिन चले संघर्ष में दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बने और मिसाइल हमले तक हुए. अमेरिका व रूस के दबाव और हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों में युद्ध विराम हो गया है. करीब 70 साल से भी पुरानी इजराइल और फिलिस्तीन की इस जंग में राजस्थान के अलवर का खास कनेक्शन रहा है. बताते हैं कि 1947 से पहले अलवर रियासत के सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा लिया था. इस दौरान अलवर रियासत की तरफ से युद्ध में राइफल, गोला-बारूद सहित अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराए गए थे. सैनिकों को युद्ध के लिए भेजा साथ ही इस दौरान फंड जुटाने के लिए अलवर रियासत में कई कार्यक्रम भी आयोजित हुए. द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर सन 1947 से पहले उस समय हुए युद्धों में अलवर की भूमिका के संबंध में इतिहासकार सह आचार्य डॉ. फूल सिंह सहारिया ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
जब युद्ध में शामिल हुए अलवर की रियासत के सैनिक
साल 1948 से पहले फिलिस्तीन ब्रिटेन के औपनिवेशिक प्रशासन के अन्तर्गत था. यहूदी लोग एक लम्बे समय से फिलिस्तीन में अपने एक निजी राष्ट्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे थे और संसार के अलग-अलग भागों से आकर यहूदी फिलिस्तीनी इलाके में बसने लगे. हालांकि, अरब राष्ट्र इससे नाखुश थे, जिसकी वजह से साल 1946-1947 के मध्य अरबों और यहूदियों के बीच युद्ध शुरू हो गया. इसी युद्ध में अलवर की रियासत के सैनिकों ने हिस्सा लिया था. इस दौरान ही 14 मई 1948 को इजरायल नामक एक नए देश का उदय हुआ.
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से आकर इजराइल में बसे यहूदी
दरअसल, प्रथम विश्व युद्ध से पहले वो हिस्सा तुर्की के कब्जे में था जिसे आज इज़रायल के नाम से जानते हैं. लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान साल 1917 में ब्रिटिश सेनाओं ने इस पर अधिकार कर लिया. 2 नवम्बर 1917 को तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मन्त्री बालफोर ने घोषणा की कि इजरायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है, जिसमें सारे संसार के यहूदी यहां आकर बस सकते हैं. इसके साथ ही मित्रराष्ट्रों (इंग्लैंड, अमेरिका, जापान, रूस और फ्रांस) ने भी इस घोषणा की पुष्टि कर दी. इस घोषणा के बाद से ही यहां यहूदियों की जनसंख्या निरन्तर बढ़ती गई. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद मित्रराष्ट्रों ने साल 1948 में एक इजरायल नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत स्थापना की, जिसके बाद से ही दुनिया के नक्शे पर इजराइल देश अस्तित्व में आया.
दूसरा विश्व युद्ध और भारत
फूल सिंह सहारिया बताते हैं कि जर्मनी की वायु सेना ने भी लंदन पर हमला किया. उसमें 400 लोग मारे गए और 1400 के लगभग घायल हुए. जुलाई 1940 के शुरू में भारत ने बड़ी संख्या में युद्ध सामग्री भेजी. इसमें 7 करोड़ 50 लाख रुपये के गोला बारूद, हथियार दिए गए थे. इनमें दो लाख सब प्रकार के गोले, 600 राइफलें भेजी गई थी. इसके अलावा 95 वेव इंक्रीमेंट सेट के साथ-साथ लाखों कंबल के साथ कई चीजें भेजी दी. फंड इकट्ठा करने के लिए उस दौरान अलवर रियासत काल में कई कार्यक्रम हुए.
उन्होंने कहा कि वाशिंगटन स्टार पोस्ट के माध्यम से बताया गया कि अमेरिका भी विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल होगा. इस दौरान जर्मनी की आशंकाओं के विरुद्ध जापान के साथ एक संधि हो चुकी थी. इसी में यह भी प्रकाशित किया गया था कि हिटलर 1941 में रूस पर आक्रमण करने का विचार कर रहा है. ग्रीन सेना की ओर से 7000 इटेलियन को कैद किया गया है. 29 नवंबर को ब्रिटिश पोस्ट ने 11 जर्मन हवाई जहाज नष्ट किए. मिस्र के पश्चिमी रेगिस्तान में हिंदुस्तानी फौज के सिपाहियों में खासा जोश देखने को मिला. सितंबर 1940 के अंत तक सप्लाई डिपार्टमेंट के दो खरीद करने वाले विभागों की ओर से सिविल और मिलिट्री के लिए लगभग 56 करोड़ 50 लाख के माल के ऑर्डर दिए जा चुके थे.