नई दिल्ली :अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट के बाहर रविवार को हुए आत्मघाती हमले में 169 अफगान नागरिकों और 13 अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई. वहीं, अमेरिका ने इस आत्मघाती हमले के 48 घंटे के भीतर अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट के साजिशकर्ता के खिलाफ ड्रोन हमला किया.
अमेरिका के सेंट्रल कमान के प्रवक्ता कैप्टन बिल अर्बन ने शुक्रवार को कहा, अमेरिकी सेना ने इस्लामिक स्टेट-खुरासान (आईएसके) साजिशकर्ता के खिलाफ आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया. यह मानवरहित हवाई हमला अफगानिस्तान के नांगहर प्रांत में हुआ. शुरुआती संकेत मिले हैं कि हमने लक्षित व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया. हमारे पास किसी भी असैन्य व्यक्ति के न मारे जाने की जानकारी है.
इससे पहले राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि काबुल हवाईअड्डे पर हमला करने वाले आतंकवादियों को नहीं बख्शेंगे. राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा था कि खतरा अभी बना हुआ है. हमारे सैनिक अब भी खतरे में हैं. यह अभियान का सबसे खतरनाक हिस्सा है.
अमेरिका ने इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत (आईएसआईएस-के) के खतरे के कारण अफगानिस्तान से लोगों को निकालने की प्रक्रिया के 'पीछे खिसक जाने' के बावजूद कहा कि वह लोगों की निकासी का अपना अभियान 31 अगस्त तक ही पूरा करेगा.
अमेरिका और तालिबान ने युद्धग्रस्त देश से अमेरिकी सैनिकों की निकासी के लिए 31 अगस्त की समयसीमा तय की है.
व्हाइट हाउस के अनुसार, काबुल आतंकी हमले के बाद अगर अमेरिकी सैन्य बल अपने नागरिकों और अफगानों की निकासी जारी रखते हैं तो निकासी अभियान के अगले कुछ दिनों में खतरनाक होने की संभावना है.
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की समय सीमा नजदीक आने के साथ ही सवाल उठ रहे हैं कि उसके बाद क्या होगा.
ईटीवी भारत से बात करते हुए, राजनीतिक विचारक और विदेश नीति विशेषज्ञ डॉ सुवरो कमल दत्ता (Dr Suvro Kamal Dutta) ने कहा, संभावना है कि निकासी की समय सीमा बढ़ाई जाएगी. निकासी अभियान के पूरा होने के साथ, 31 अगस्त के बाद दुनिया अफगानिस्तान को व्यापक खूनखराबा की ओर बढ़ते हुए देख सकती है. पश्चिमी ताकतों और तालिबान के बीच भारी संघर्ष हो सकता है.
दत्ता ने कहा कि अफगानिस्तान एक खतरनाक आतंकी ज्वालामुखी के ऊपर बैठा है. यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा अभी इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो दुनिया भर में इसके विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं.
तालिबान को क्लीनचिट देना, वास्तविकता से मुंह फेरने जैसा
डॉ दत्ता ने आगे कहा कि अमेरिका को यह समझना होगा कि अलग-अलग समूहों का सामना करने के अलावा, उसे तालिबान पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है और राष्ट्रपति बाइडेन का काबुल बम धमाके की घटना पर तालिबान को क्लीनचिट देना, वास्तविकता से मुंह फेरने जैसा है.
उन्होंने कहा कि अमेरिका को अपनी गलतियों का एहसास हो रहा है और अच्छा या बुरा आतंकवादी नाम की कोई चीज नहीं होती. आईएसआईएस-के, हक्कानी नेटवर्क, तालिबान का एक-दूसरे के साथ पूरी तरह से आंतरिक संबंध है.
उन्होंने कहा कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों और अन्य पश्चिमी एजेंसियों द्वारा और अधिक हमलों की चेतावनी के बाद, अमेरिका के लिए अपने सहयोगियों के साथ एक सामान्य कार्य योजना बनाने का समय आ गया है. साथ ही, बलों की वापसी के बाद अमेरिका की पकड़ कमजोर हुई है और यही कारण है कि काबुल में विनाशकारी बम विस्फोट देखने को मिला. अमेरिका के लिए स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त बल भेजना महत्वपूर्ण हो जाता है. उन्होंने कहा कि अमेरिका को संकट से निपटने के लिए युद्धग्रस्त देश में अपने सुरक्षा तंत्र को फिर से सक्रिय करने की आवश्यकता है.
भारत को बहुत सतर्क रहने की जरूरत
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से उत्पन्न स्थिति से भारत की सुरक्षा चिंता पर डॉ सुवरो कमल दत्ता ने कहा, 'भारत को बहुत सतर्क रुख अपनाना होगा क्योंकि तालिबान कहीं भी भारत के पक्ष में नहीं है. इसलिए, भारत को एक चतुर नीति लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें उसे मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ ईरान और रूस और नाटो गठबंधन के साथ एक सामान्य रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है.
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उन्होंने कहा कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति बहुत जटिल हो गई है. भारत सरकार और भारतीय सेना को जम्मू-कश्मीर, लेह लद्दाख और पाकिस्तान से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सक्रिय होने की जरूरत है. लश्कर-ए-तैयबा हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान-तालिबान के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों में भी परेशानी पैदा करने की हर संभव कोशिश करेगा. अफगानिस्तान में सामने आ रहे संकट से निपटने के लिए देश को सक्रिय होने की जरूरत है.