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लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा और सहायता से संबंधित शब्द हुए ज्यादा सर्च

एक डाटा अध्ययन के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान आठ एशियाई देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित कंटेंट सबसे ज्यादा आनलाइन सर्च हुआ. वहीं हिंसा से बचने के लिए सहायता से संबंधित कंटेंट भी ज्यादा ऑनलाइन सर्च किया गया है. जानिए क्या कहती है पूरी रिपोर्ट...

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Published : Mar 6, 2021, 8:04 PM IST

हैदराबाद : एक डाटा अध्ययन में एशिया-प्रशांत क्षेत्र से नया खुलासा हुआ है कि COVID-19 महामारी के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा और सहायता से संबंधित शब्द सबसे ज्यादा ऑनलाइन सर्च किए गए. इन निष्कर्षों ने महिलाओं एवं लड़कियों की सुरक्षा और कल्याण पर लंबे समय से चल रही चिंताओं को वैश्वीक संकट के बीच और अधिक बढ़ा दिया है. कोरोना महामारी के दौरान आठ एशियाई देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित कंटेंट सबसे ज्यादा आनलाइन सर्च हुआ. वहीं हिंसा से बचने के लिए सहायता से संबंधित कंटेंट भी ज्यादा ऑनलाइन सर्च किया गया है.

यह डाटा अध्ययन यूएन वीमेन, यूएनएफपीए (UNFPA) और एनालिटिक्स कंपनी किल्ट द्वारा जारी किया गया है. यह डाटा रिपोर्ट इस बात को उजागर करती है कि महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए किस तरह से भय के माहौल में रहती हैं और सरकार के साथ अन्य 'महिला सुरक्षा संगठन' से जुड़ी संस्थाएं क्या कर रहीं है. यह डाटा अध्ययन काफी चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर करता है.

अध्ययन में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से बांग्लादेश, भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड में इंटरनेट सर्च डाटा के साथ ऑनलाइन कंटेंट का अध्ययन किया गया.

यह डाटा अध्ययन सितंबर 2019 से नवंबर 2020 के बीच इंटरनेट पर किया गया, जिसमें लगभग 20.5 मिलियन सर्च शामिल है. इस अध्ययन में फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और शेयरचैट पर 2,000 पोस्ट और 3,500 महिलाओं के खिलाफ किवर्ड्स शामिल हैं.

हिंसा से संबंधित इंटरनेट पर सर्च किए जाने वाले शब्दों में 'शारीरिक शोषण के संकेत', 'हिंसक संबंध', 'चेहरे पर चोट के निशान' जैसे शब्द शामिल हैं. इस तरह के शब्द अक्टूबर 2019 से पहले कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट पर सर्च में 47 प्रतिशत मलेशिया में, 63 प्रतिशत फिलीपींस और 55 प्रतिशत नेपाल में बढ़ोत्तरी हुई. जबकी कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं पर अपराध से संबंधित शब्द जैसे 'हिंसक पति', 'हिंसक साथी', इस तरह के बहुत से शब्द इंटरनेट पर सर्च किए गए. महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण से संबंधित शब्द भी इंटरनेट पर ज्यादा सर्च किया गया.

सोशल मीडिया पर भारी असंतोष

  • इंटरनेट डाटा अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया पर महिलाओं पर अपराध को रोकने में नाकाम रही सरकार पर लोगों ने अपना गुस्सा जाहिर किया. न्याय संस्थानों में व्यापक अविश्वास की भावना भी जाहिर की गई.
  • अध्ययन के मुताबिक यौन हिंसा में पीड़िता को न्याय और सामाजिक क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने के लिए बेहतर प्रयासों की स्पष्ट रूप से आवश्यकता है.
  • हालांकि, इसी दौरान इंटरनेट पर सोशल मीडिया में एक दूसरे की सहायता के लिए लोगों ने अपनी आप बीती पोस्ट की. ऑनलाइन सपोर्ट ग्रूप भी बनाए गए और न्याय के लिए सोशल मीडिया पर अभियान भी चलाया गया.
  • UNFPA एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय निदेशक, ब्योर्न एंडरसन ने कहा, 'अध्ययन से साफ पता चलता है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए लोगों की मदद कर सकता है'

एशिया-प्रशांत देशों के मध्य प्रमुख समानताएं

  1. सरकारी कार्रवाई में कमी के प्रति लोगों में निराशा - ज्यादातर सरकारों ने कोरोना के दौरान महिला हिंसा के प्रति काफी कमजोर कदम उठाए या बिलकुल ध्यान नहीं दिया. सोशल मीडिया में लोगों के द्वारा की गई बातचीत सरकार के प्रति निराशा को दर्शाता है. इस मामले में 7 से 8 देशों के बीच लगभग 20 प्रतिशत सोशल मीडिया पोस्ट का अध्ययन किया गया.
  2. राष्ट्रीय सुरक्षा और न्याय संस्थानों में कम भरोसा -अधिकांश देशों में, सोशल मीडिया के यूजर्स इस विचार से सहमत थे कि महिलाओं के प्रति हिंसा के मामलों में आपसी समझौता कानूनी मार्ग लेने की कोशिश करने से बेहतर विकल्प था.
  3. पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए मुहिम-तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह देखने को मिला कि यौन उत्पीड़न या महिलाओं पर हिंसा के मामलों में लोगों ने पीड़िता के प्रति अपनी संवेदना दिखाई और अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराई.
  4. COVID-19 के दौरान घरेलू हिंसा में वृद्धि - कोराना महामारी के दौरान सभी देशों में इंटरनेट पर घरेलू हिंसा से संबंधित कंटेंट सर्च किए गए. इस दौरान इंटरनेट पर महिलाओं से जुड़ी हिंसा वाले शब्द और कंटेंट सर्च किए गए.
  5. महिलाओं पर हिंसा के खिलाफ ऑनलाइन समर्थन में वृद्धि - महिलाओं पर अपराध, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न मामलों में ऑनलाइन समर्थन में काफी वृद्धि हुई है. जो कि एक अच्छी बात है. पीड़ितों के लिए विशेष रूप से ऑनलाइन कंपेन के माध्यम से, व्यक्तिगत बातों को साझा करके सहायता के लिए ग्रूप बनाकर लोगों ने एक दूसरे का भरपूर सपोर्ट किया.

नवंबर 2019 से नवंबर 2020 तक ऑनलाइन अभियानों से जुड़े यूजर्स का रिपोर्ट

देश पुरुष महिला नगर/ग्रामीण
मलेशिया 30.00% 70.00% नगर
नेपाल 45.00% 55.00% नगर
थाईलैंड 23.00% 65.00% नगर
सिंगापुर 35.00% 65.00% नगर
बांग्लादेश 35.00% 65.00% नगर
फिलीपींस 30.00% 70.00% नगर
इंडोनेशिया 15.00% 85.00% नगर
भारत 25.00%% 75.00% नगर

देशों के बीच महत्वपूर्ण अंतर

  1. महिला हिंसा के विभिन्न मुद्दों पर सबसे अधिक आक्रोश - अलग-अलग देशों में महिलाओं पर अलग-अलग तरीके से हिंसा में वृद्धी हुई, उदाहरण के लिए नेपाल और भारत में एसिड अटैक का मामला ज्यादा देखा गया, वहीं पर फिलीपींस में उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारियों द्वारा गलत टिप्पणी चिंता का विषय रहा.
  2. स्थानीय सहायता के लिए सर्च में जानकारी उपलब्ध नहीं होती -टॉप सर्च इंजन रिजल्ट अलग-अलग देश में अलग-अलग तरीके से काम करती है. कुछ देशों में 'टॉप सर्च रिजल्ट' वहां की स्थानीय सहायता सेवाओं और जानकारी के बारे में बताती हैं, जबकि दूसरे देशों में टॉप सर्च रिजल्ट विदेशों के बारे में बताती है.
  3. प्रत्येक देश में प्रवासी श्रमिकों की प्रतिक्रिया में परिवर्तन -कई देशों में प्रवासी श्रमिकों को समान चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन सरकार और जनता की प्रतिक्रियाएं अलग हैं.
  4. कुछ देशों में बेहतर रही स्थिति - इंडोनेशिया, नेपाल, मलेशिया और सिंगापुर जैसे कुछ स्थानों पर प्रवासी श्रमिकों पर अधिक ध्यान दिया गया. जबकि थाईलैंड और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में लोग महिला उत्पीड़न मामलों में कम सक्रियता देखने को मिली.

क्या है निष्कर्ष

1. इस तरह के हालातों ने सूचनाओं के संकलन और इंटरनेट सर्च के लिए ऑनलाइन तकनीकों की क्षमता को उजागर किया है. महामारी के दौरान अपनी बात को किसी दूसरे व्यक्ति से कहने में मुश्किल होती थी, लेकिन तत्काल मदद के लिए या फिर जानकारी के लिए इंटरनेट एक नया माध्यम बनकर लोगों के बीच उभरा.

2. ऑनलाइन टूल के बढ़ते उपयोग के संबंध में वंचित आबादी को डिजिटल-साक्षरता कौशल प्रदान करना काफी जरूरी माना जा रहा है.

3. सर्विस प्रोवाइडर को इंटरनेट पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ज्यादा से ज्यादा सक्रियता को बढ़ाना चाहिए. ऐसे में चाहिए की सोशल मीडिया पर स्थानीय सहायता के लिए ग्राउंड लेवल तक की जानकारी वहां की भाषा में उपलब्ध हो.

4. इस शोध में, प्रवासी आबादी को लक्षित करने वाले सेवा संगठनों ने ऑनलाइन सक्रियता कम दिखाई है. ऐसे में प्रवासियों की सहायता करने वाले संस्थाओं को ऑनलाइन सक्रियता बढ़ाने से पहले प्रवासियों के बीच इस्तेमाल होने वाले इंटरनेट और स्मार्टफोन के प्रयोग को समझना होगा, तभी वो अपनी ऑनलाइन सक्रियता प्रवासियों के बीच बना पाएंगे.

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