श्रीनगर: वर्ष 1965 को दक्षिण एशियाई इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में याद किया जाता है क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई के परिणामस्वरूप युद्धविराम समझौता हुआ था. इस संघर्ष का क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदलने के अलावा दोनों देशों पर दूरगामी प्रभाव पड़ा. आज, हम 1965 की घटनाओं और उसके बाद हुए युद्धविराम समझौते पर नज़र डालते हैं (1965 war between India and Pakistan).
5 अप्रैल 1965 को पाकिस्तानी सेना ने विद्रोह भड़काने के लिए भारतीय सीमा जम्मू और कश्मीर में सैनिकों की घुसपैठ कराने के इरादे से ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया. भारत ने तुरंत जवाब में अपने सशस्त्र बल भेजे और इसके बाद 17 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ.
कच्छ के रण और पंजाब क्षेत्र में होने वाली प्रमुख लड़ाइयों के साथ, युद्ध में भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं पर गंभीर युद्ध देखा गया. दोनों पक्षों को भारी क्षति हुई. जब लड़ाई ने सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी विश्व शक्तियों का ध्यान आकर्षित किया, तो अंततः संघर्ष विराम हुआ.
जब सितंबर में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी शहर लाहौर पर साहसिक और सफल हमला किया, तो यह युद्ध के सबसे प्रतिष्ठित क्षणों में से एक था. हालांकि, युद्धविराम के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ गया. दोनों देशों को गतिरोध, महत्वपूर्ण आर्थिक और मानवीय परिणामों का सामना करना पड़ा.
युद्धविराम की घोषणा :गहन कूटनीतिक प्रयासों के बाद 22 सितंबर, 1965 को युद्धविराम की घोषणा की गई. ताशकंद समझौते में मध्यस्थता करके सोवियत संघ ने शत्रुता खत्म कराई और बातचीत के लिए माहौल तैयार किया. युद्धविराम को युद्ध पर कूटनीति की सफलता के रूप में माना गया.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1966 में हस्ताक्षरित ताशकंद समझौते का उद्देश्य क्षेत्र में शांति लाना था. इसमें तीन मुख्य सिद्धांतों पर जोर दिया गया. जम्मू और कश्मीर में युद्ध-पूर्व सीमाओं पर वापसी, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना और विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करना.