नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज रहे एसएन ढींगरा, एमसी गर्ग और राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व जज आरएस राठौड़ सहित 123 रिटायर्ड अधिकारियों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के उस फैसले का समर्थन किया है, जिसमें डीयू के राजनीति विज्ञान के सिलेबस से पाकिस्तान के कवि मोहम्मद इकबाल को हटाया गया.
दरअसल, बीते 23 मई और 24 मई के बीच देर रात तक डीयू एकेडमिक काउंसिल की 1014 वीं बैठक हुई थी. इसमें स्नातक पाठ्यक्रम पर चर्चा के दौरान पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस से इकबाल को बाहर कर दिया गया. डीयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश सिंह ने कहा कि जिस व्यक्ति ने भारत के विभाजन की बात सोची, उसे क्यों पढ़ाया जाए. उन्होंने कहा कि मुझे हैरानी है कि अब तक इकबाल को पढ़ाया ही क्यों गया.
वीर सावरकर को शामिल करने पर जताई खुशी:अधिकारियों ने उस फैसले का भी समर्थन किया, जिसमें कहा गया है कि डीयू के राजनीति विज्ञान में विनायक दामोदर सावरकर के बारे में पढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन में वीर सावरकर के योगदान और दर्शन को शामिल करने और दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भारतीय राष्ट्र के निर्माण का हम तहेदिल से स्वागत करते हैं. हम विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल के फैसले का पूरी तरह समर्थन करते हैं. साथ ही हम सही दिशा में ऐसे सभी प्रयासों का समर्थन करते हैं. हम देशभक्तों से इस मुद्दे पर समर्थन करने का आग्रह करते हैं.
वहीं, एक नोट में कहा गया है कि ग्रंथों में लिखे गए इतिहास और किसी भी देश में पढ़ाए जाने वाले इतिहास को सच्चाई से तथ्यों को प्रकट करना चाहिए और निष्पक्ष रूप से और बिना किसी पूर्वाग्रह के व्याख्या की जानी चाहिए. दुर्भाग्य से भारत में आजादी के बाद से ऐसा नहीं हुआ है. तथ्यों की पक्षपाती प्रस्तुति और विकृत व्याख्या ने इतिहास और राजनीति विज्ञान के शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. यह राजनीतिक कारणों से कांग्रेस और कुछ वामपंथी झुकाव वाले संगठनों द्वारा संचालित था.