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बेतिया: प्रवासी मजदूरों को नहीं मिल रहा कोई काम, पेट भरने के आ रही लिए मुश्किलें

बेतिया जिले में लॉकडाउन होने से प्रदेश से लौटे मजदूरों के सामने दो वक्त की रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है. कोरोना वायरस के कारण मजदूरों की रोजी-रोजगार छिन गई है. इसके साथ ही अब मजदूरों को मनरेगा के तहत कार्य भी नहीं दिया जा रहा है, जिससे मजदूरों के सामने तमाम परेशानियां उत्पन्न हो गई है.

migrant laborers are not getting any work due to lockdown
लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को नहीं मिल रहा कोई काम

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Published : Jul 28, 2020, 3:10 PM IST

बेतिया: जिले के गौनाहा प्रखंड में वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को अपने परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है. मजदूरों के पास बचत का सारा पैसा खत्म हो गया है और मनरेगा का कार्य भी बंद हैं. मजदूरों को अब न तो कहीं काम मिल रहा है और न ही परिवार के पेट का आग बुझाने के लिए रोटी का जुगाड़ हो पा रहा है.


एक लाख से अधिक लोग हुए बेरोजगार
लाॅकडाउन की समस्या से जुझ रहे मजदूरों का कहना है कि कहीं भी काम मिल जाए, वे लोग करने को तैयार हैं. एक तरफ कोरोना वायरस के कारण लोगों का रोजी-रोजगार छिन गया है. वहीं किसानों के खेतों में अब काम खत्म हो गया है. बरसात के कारण मनरेगा का कार्य बंद है और लाॅकडाउन के कारण मजदूर प्रदेश नहीं जा पा रहे हैं. इसके कारण तमाम समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं. वहीं गौनाहा प्रखंड के 18 पंचायतों के मुखिया व 245 वार्ड सदस्यों ने बताया कि प्रखंड क्षेत्र में एक लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं.


प्रखंड क्षेत्र में कोई कारखाना नहीं जो दे सके रोजगार
प्रखंड क्षेत्र में कोई ऐसी जगह नही है जो इतने लोगों को एक साथ काम दे सके. दो माह पहले परदेस से लौटे जमुनिया निवासी अमरनाथ गौरो, प्रदेशी महतो, विनोद कुमार, चंदन कुमार, देवा निवासी मुन्ना पासवान, जितेन्द्र साह, मुन्ना गिरी, गौनाहा निवासी रंजन कुमार, राजू महतो ने बताया कि दो माह से घर पर बैठे हैं. कहीं काम नहीं मिलने की वजह से घर में रखा सारा पैसा खत्म हो गया है. बिटिया सुकन्या समृद्धि योजना, बुढ़ापे का सहारा अटल पेंशन योजना, जीवन ज्योति योजना और सुरक्षा बीमा योजना का किस्त, बच्चों की स्कूल फी, बीमा का पैसा जमा नहीं हो पा रहा है. मजदूरों का कहना है कि यदि जल्द ही रोजगार नहीं मिला तो स्थिति और खराब हो जाएगी. सरकार को इस पर ध्यान देकर कोई उचित कदम उठाना चाहिए.


पत्थर खनन कार्य शुरू होने से लोगों को मिल सकता है रोजगार
भूतपूर्व मंत्री प्रेम नारायण गढ़वाल ने बताया कि बीस साल पहले जब भिखनाठोरी से उजाला पत्थर का खनन होता था तो आठ किलोमीटर खनन क्षेत्र में (भिखनाठोरी से लेकर मंगुराहा तक) लाखों मजदूर काम करते थे. मजदूरों को मजदूरी और सरकार को बीस साल पहले अरबों रुपयें का राजस्व प्राप्त होता था. थरूहट के लोग रोजगार के लिए परदेस पलायन नहीं करते थे. सभी लोग खुशहाल थे. वहीं उन्होंने बताया कि उस समय नदी से पत्थरों का खनन कर लेने से कभी बाढ़ कि समस्या नहीं आयी और कटाव नहीं होता था. नदियां बहती रहती थी और नेपाल के पहाड़ों से पुनः पत्थर लाकर नदी के पेट को भर देती थी. इससे अगले वर्ष भी आसानी से पत्थर का खनन होता रहता था. पत्थर खनन शुरू करने से रोजगार के साथ राजस्व की प्राप्ति और वन क्षेत्र के साथ रिहायशी इलाके के कटाव से मुक्ति, सोफे मंदिर का बचाव आदि एक साथ कार्य किया जा सकता है.


चुनाव के दौरान सरकार ने पत्थर का खनन शुरू करने का किया था वादा
शेरवा मश्जिदवा निवासी अनिरूद्ध महतो, संगीता देवी, चुमनी देवी, धर्मेन्द्र राम लोगों ने बताया कि चुनाव के समय वर्तमान सरकार ने थरूहट के वोटरों को रिझाने के लिए भिखनाठोरी स्थित बंद पड़े पत्थर खनन को फिर से शुरू करने का वादा किया था. भाजपा नेता शत्रुधन सिंहा ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद उनकी सरकार सबसे पहले भिखनाठोरी स्थित वर्षो से बंद पडे़े पत्थर खनन को चालू कराएगी. उनके इस भाषण पर जमकर तालियां बजी थी. सरकार भी बन गई, लेकिन पत्थर खनन आज तक शुरू नहीं हो पाया. इसके कारण थरूहट के लाखों लोग परदेश जाकर रोजी-रोटी के लिए काम की तलाश करते हैं.

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