रोहतास: एक तरफ जहां सूबे की सरकार प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए तरह-तरह की योजनाओं पर काम करने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर रोहतास में सैकड़ों ऐसी राइस मिलें हैं जो बंद पड़ी हैं. अगर इन्हें पुनर्जीवित कर दिया जाए तो यहां के मजदूरों को अपने घर में ही काम मिल जाएगा और उन्हें रोजी-रोटी के लिए दूसरे प्रदेशों की खाक नहीं छाननी पड़ेगी.
नीतीश कुमार को पत्र
रोहतास जिला मिलर्स एसोसिएशन ने भी राज्य सरकार से मांग की है कि धान के कटोरे में बंद पड़ीं सैकड़ों मिनी और बड़ी राइस मिलों को शुरू कर दिया जाए. इस बावत मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष नंद कुमार सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक चिट्ठी भी लिखी है.
सरकारी उदासीनता के कारण हालत खस्ता
इस मामले में ईटीवी भारत ने नंद कुमार सिंह से बातचीत की. उन्होंने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि लगभग एक लाख मजदूरों को इन राइस मिलों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल सकता है. साथ ही उन्होंने कहा कि लगातार मंदी और सरकारी उदासीनता के कारण सैकड़ों राइस मिलें बंद हो गई हैं. जो चालू हैं उनकी माली हालत बेहद खराब है.
घाटे में रहे मिलर्स
उन्होंने बताया कि जिले में लगभग 500 से अधिक छोटी-बड़ी राइस मिल हैं, जिसमें ज्यादातर बंद हैं. मिलर सरकार की पॉलिसी के शिकार हुए हैं. खुद रोहतास जिले में 12 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की उपज होती है. फिर भी यहां के किसान धान कूटने के लिए दूसरे प्रांत में चले जाते हैं और जिले के राइस मिलर मुंह ताकते रह जाते हैं.
प्रवासियों के रोजगार का जरिया
गौरतलब है कि रोहतास में इस बार 82 हजार से अधिक प्रवासी मजदूर वापस लौटे हैं. अगर इन राइस मिलों को पुर्नजीवित कर दिया जाए तो तमाम प्रवासियों को यहां आसानी से समायोजित किया जा सकता है. इन्हें तंगहाली से दूर नया जीवन दिया जा सकेगा. हालांकि सरकारी आंकड़ों की मानें तो मार्च महीने में 65 हजार मजदूरों का रोहतास लौटना हुआ है.