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नवादा: बदहाली की कगार पर नवाबगढ़ का खादी ग्रामोद्योग, कभी हजारों को मिलता था रोजगार

साल 1961 में विनोबा भावे ने वारसलीगंज के नवाबगढ़ में खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की थी. इसका उद्देश्य स्वरोजगार को बढ़ावा देना था. लेकिन धीरे-धीरे ये सरकारी उपेक्षा का शिकार होता चला गया.

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Published : Jun 6, 2020, 10:52 PM IST

नवादा:महात्मा गांधी के सपनों को साकार करने के लिए जय प्रकाश नारायण और विनोबा भावे ने जिले में जिस खादी ग्रामोद्योग की नींव रखी थी, आज खंडहर में तब्दील हो गया है. हजारों हाथों को रोजगार देने वाले वारसलीगंज के नवाबगढ़ का खादी ग्रामोद्योग आज बदहाल है. कुटीर और ग्रामोद्योग के माध्यम से कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सेहतमंद बनाने के लिए कदम बढ़ाये गये थे, आज वही खादी ग्रामोद्योग सरकार की अनदेखी के कारण विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है. फिर भी सालों पहले यहां काम कर चुके लोग खादी ग्रामोद्योग के दिन बहुरने के इंतजार में हैं.

बात 1961 की है जब विनोबा भावे ने वारसलीगंज के नवाबगढ़ में खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की थी. इसका उद्देश्य स्वरोजगार को बढ़ावा देना और लोगों को हुनरमंद बनाकर कर रोजगार का सृजन करना था. इसके शुरू होने पर काफी लोग जुड़े भी. खासकर महिलाएं इससे बड़ी संख्या में जुड़ीं. इस उद्योग से जुड़े कतिन व बुनकरों को रोजगार देने वाली संस्था को सरकार से सहायता नहीं मिलने के कारण ठप पड़ता चला गया. इससे जुड़े लोग बेरोजगार हो गये. आर्थिक तंगी के कारण यहां काम करनेवाले कर्मी भुखमरी के शिकार होते चले गए.

देखें रिपोर्ट

महिलाओं की अपील
हालांकि, जेपी द्वारा स्थापित ग्राम निर्माण मंडल द्वारा अभी भी खादी ग्रामोद्योग को संचालित किया जा रहा है. कुछ महिलाएं अभी भी यहां पर काम कर रही हैं, लेकिन समय पर आवंटन नहीं मिलने के करण इनकी स्थिति दिनों दिन बदतर होती जा रही है. महिलाओं का कहना है कि सब काम बंद पड़े हैं. सरकार मदद करे तो हमलोगों को रोजगार मिलेगा.

काम करती महिलाएं

'सरकार करे मदद तो हजारों मिल सकता है रोजगार'
दशकों से उम्मीदों को संजोए हुए काम कर रहे कुलदीप महतो बताते हैं कि, यहां से हजारों महिलाएं प्रशिक्षण पाकर सूत कताई के काम में लग गई थीं. सूत जमा करने के लिए यहां गेट के बाहर लंबी लाइन लगी रहती थी. बाहर से बुनकर यहां रोजगार के लिये आते थे. उस समय का रौनक कुछ और ही था. लेकिन सरकार की अनदेखी की वजह से दिनोंदिन यह ठप्प पड़ता चला गया. कई चरखे बंद पड़ गए. कपड़ा तैयार करनेवाली सभी मशीनें बेकार पड़ी हुई हैं. अगर सरकार मदद करती है तो हमलोग एकबार हजारों हाथों को रोजगार दे सकते हैं.

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