गया:समुद्र में होने वाले सीप और मोतियों के बारे में लोग सुनते आए हैं. अब यह समुद्र की मोती बिहार के खेतों में भी दिखने लगा है. अब कृषक लगातार कुछ न कुछ नया करते हैं. यही वजह है कि अब बिहार में पर्ल फार्मिंग की शुरुआत (Pearl farming started in Bihar) हुई है. अब खेतों में 'समुद्र के मोती' दिखने लगे हैं. गया में नैली गांव में सबसे पहले 'पर्ल फार्मिंग' की शुरुआत किसान उदय कुमार ने की है.
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कोरोना काल में नौकरी गई तो आया आईडिया:बिहार के गया जिले के नैली के रहने वाले उदय कुमार दिल्ली में एक आईटी कंपनी में वेब डिजाइनर का काम करते थे. सब कुछ ठीक चल रहा था, कि इस बीच 2020 में कोरोना की दस्तक के साथ ही नौकरी चली गई. इसके बाद वह घर को लौट आए. नैली स्थित घर को लौटने के बाद पूरी तरह से बेरोजगार थे. कोई सहारा नहीं मिला था.
यूट्यूब किया था सर्च आइडिया मिलते ही लगाया जोर:उदय कुमार ने कुछ करने को लेकर यूट्यूब पर सर्च करना शुरू कर दिया. यूट्यूब पर सर्च करते-करते उन्हें मोतियों की खेती के बारे में जानकारी हासिल हुई. इसके बाद वह मोतियों की खेती करने के संदर्भ में कई व्यक्तियों से संपर्क करते चले गए. उदय लगातार संपर्क करते रहे और उन्हें सफलता भी मिली.
गांव की जमीन में ही शुरू की मोती की खेती:मोती की खेती की जानकारी मिलने के बाद उदय कुमार वेब डिजाइनर से किसान बन गए और उन्होंने घर में ही मोती की खेती के लिए जमीन तलाशी ली. नैली में ही रहे जमीन में उन्होंने मोती की खेती के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध की. करीब 1 कट्ठे की जमीन में यह सब शुरू किया. इस जमीन में तीन बड़े-बड़े हाॅज बनाए.
सीप को दिखाते हुए उदय कुमार "यह प्रेरणा सोशल मीडिया से मिली थी. इसके बाद मोती की खेती करने का प्रशिक्षण लिया. इसके लिए 4000 सीप कोलकाता के हावड़ा से मंगाए हैं. यह सीप साधन है, इससे मोती की खेती होती है. सीप लाते हैं तो उसे नर्सरी में करीब 1 महीने तक रखते हैं. फिर ऑपरेशन की तैयारी करते हैं. ऑपरेशन करके दो सांचा उसमें डालते हैं, जिसे न्यूकलस बोलते हैं. फिर उसे जाली में रखते हैं. 14 महीने करीब इसी तरह से जाली में रखा जाता है. पानी की धारा हर वक्त मिलती रहती है. 2000 की फसल और दो हजार सीप नर्सरी में रखे हैं. नर्सरी पहली प्रक्रिया होती है, जिसमें सीप को डाला जाता है और उसके एक महीना बाद उसे ऑपरेशन करते हैं. इसके बाद 14 महीने में उसी का रूप सांचे के अनुसार हो जाता है, जो मोती के रूप में सामने आता है."-उदय कुमार, किसान
सरकार की ओर से नहीं मिला कोई अनुदान:उदय कुमार बताते हैं कि सरकार की ओर से कोई अनुदान उन्हें नहीं मिला है. 14 महीने के बाद उन्हें लाखों का मुनाफा निश्चित रूप से हो जाएगा. क्योंकि ट्रेनर की देखरेख में मोती की खेती कर रहे हैं और पूरी तरह से आशान्वित हैं. उदय ने बताया कि वह मोती की सफल खेती के बाद और लोगों को इससे जोड़ेंगे और उन्हें सिखाएंगे कि मोती की खेती कैसे होती है. पहली फसल निकलने के बाद लोगों को बताना शुरू कर देंगे.
शुरुआत में आता है ज्यादा खर्च:किसान उदय कुमार बताते हैं कि शुरुआत में हर तैयारी नए सिरे से होती है, इसलिए खर्च ज्यादा आता है. दूसरी बार में सिर्फ 50 हजार की पूंजी ही लगेगी. पहली बार करने के लिए वो 4 लाख की पूंजी लगा चुके हैं. उन्होंने कहा कि यह एक अलग खेती है और लोग इसे देखने भी आते हैं.
गुजरात में होती है ज्यादा बिक्री: जानकारी के अनुसारइसकी बिक्री ज्यादातर गुजरात में होती है. खास करके सूरत में यह ज्यादा बिकता है. अभी फिलहाल जिस ट्रेनर से उदय सब कुछ सीख रहे हैं, उसी के द्वारा कहा गया है कि वह मोती तैयार होने के बाद खरीद लेगा. सीप को कोलकाता-हावड़ा से मंगाया गया है. सीप का खाना मूल रूप से काई होता है, जो गोबर डालकर बनाया जाता है. फिलहाल उदय फिर से बेब डिजाइनर का काम शुरू कर दिया हैं और ऑनलाइन ही काम किया जा रहा है. इसके बीच उन्होंने अलग से मोती की खेती शुरू की है.
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