दरभंगा: बिहार के दरभंगा में आशा कर्मियों की हड़ताल जारी है. रविवार को 19 वें दिन आशा कर्मियों का आक्रोश मार्च निकाला गया. आशाओं ने पारितोषिक नहीं मानदेय दो, एक हजार नहीं - दस हजार दो, कोरोना काल सहित अन्य सभी कार्य के बकाया का भुगतान करो सहित सभी 9 सूत्री मांगों की पूर्ति को लेकर अपनी आवाज को बुलंद किया. आक्रोशपूर्ण मार्च लहेरियासराय पोलो मैदान से चलकर पानी टंकी, प्रमंडलीय आयुक्त, कार्यालय, समाहरणालय होते हुए लहेरियासराय टावर पर पहुंच कर सभा में बदल गया.
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आशा कर्मियों ने रखी नौ सूत्री मांग : आशा कार्यकर्ताओं के आक्रोश मार्च का नेतृत्व आशा संघ की संयोगिता चौधरी, सविता कुमारी और ऐक्टू के जिला प्रभारी डॉ उमेश प्रसाद साह ने किया. संयोगिता चौधरी ने आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमलोग अपनी 9 सूत्री मांगों को लेकर 12 जुलाई से बिहार की एक लाख आशा बहने अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. लेकिन सरकार हम लोगों की मांग सुनने को तैयार नहीं है. सरकार को पारितोषिक हटाकर मानदेय और आशा को अवकाश प्राप्त के बाद पेंशन नीति लागू करना चाहिए.
"पटना हाईकोर्ट ने कोरोना काल मे आशा की भूमिका की सराहना की है. यह हमलोगों की जायज मांग है. मांग पूरी नहीं होने पर 3 अगस्त को बिहार की 90 हजार आशा राजधानी पहुंचेगी और सरकार को घेरेगी." -संयोगिता चौधरी, पदाधिकारी, आशा संघ
सबसे कम राशि देती है बिहार सरकार : वहीं खेग्रामस के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह आंदोलन के नेता देवेन्द्र कुमार ने कहा कि खुद राज्य सरकार टीकाकरण, संस्थागत प्रसव और जच्चा बच्चा मृत्यु दर में उल्लेखनीय प्रगति के संदर्भ में इनकी केंद्रीय भूमिका को स्वीकृति दी है. सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था के सकल खर्च की एक न्यूनतम राशि भी आशा फैसिलिटेटर पर खर्च नहीं करती. राज्य सरकार महज 1 हजार रुपया मासिक देती है. वो भी 6 कामों के लिए, जिससे इनका टेंपो, ई रिक्शा का भी खर्च नहीं निकलता है.
" बिहार सरकार अन्य राज्यों की तुलना में आशाओं को नहीं के बराबर पारिश्रमिक देती है. गैर भाजपा सरकारें जितना देती हैं, उतना ही बिहार सरकार दे तो हड़ताल खुशी खुशी आशाएं खत्म कर देंगी, लेकिन बिहार सरकार जनता की बात सुनने के बदले नौकरशाही की बात पर अमल करती है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है." - देवेंद्र कुमार, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, खेग्रामस