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वेंटिलेटर पर सांसे गिन रहा सरकारी अस्पताल, एंटी रेबिज इंजेक्शन तक नहीं है उपलब्ध

जिले में प्रशासनिक और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की जानकारी में 3 हजार से अधिक अवैध निजी नर्सिंग होम और जांच घर चल रहे हैं. यहां से विभागीय अधिकारी और कर्मचारी साल में करोड़ों रुपये की कमाई कर रहे हैं.

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Published : Feb 15, 2021, 10:54 AM IST

बक्सरःकेंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के संसदीय क्षेत्र के सरकारी अस्पताल भले ही वेंटिलेटर पर अपना अंतिम सांस गिन रहा हो, लेकिन इस आपदा में भी यहां के 90 प्रतिशत सरकारी स्वास्थ्य कर्मीयों ने अवसर ढूंढ ही लिया है. स्वास्थ्य कर्मी वेतन तो सरकार से लेते हैं लेकिन काम निजी नर्सिंग होम को फायदा पहुंचाने के लिए कर रहे हैं.

अवैध निजी नर्सिंग होम का बिछा है जाल
जिले में 3 हजार से अधिक अवैध निजी नर्सिंग होम चल रहे हैं, जहां 90 प्रतिशत सरकारी स्वास्थ्य कर्मी काम कर रहे हैं. निजी नर्सिंग होम में मरीजों से मोटी रकम वसूली जाती है. स्वास्थ्य कर्मियों को भी महीने में अच्छी कमाई हो जाती है. इससे सरकारी अस्पताल पर उनका कोई ध्यान नहीं होता है.

300 मरीज रोज पहुंचते हैं बक्सरसदर अस्पताल
बक्सर के सदर अस्पताल में इलाज कराने के लिए कम से कम 300 मरीज प्रतिदिन आते हैं. यहां गेट के सामने, 10 मीटर से लेकर 500 मीटर तक के अंदर 4 दर्जन से अधिक अवैध निजी नर्सिंग होम और जांच घर चलाए जा रहे हैं. इससे सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों की मिलीभगत से पहले से वहां मौजूद लोग मरीजों को नर्सिंग होम और जांच घर का रास्ता दिखा देते हैं.

सिविल सर्जन से की थी लिखित शिकायत
सरकारी अस्पताल के अधिकांश स्वास्थ्य कर्मियों ने अपना निजी नर्सिंग होम और जांच घर खोल लिया है. वे सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों को अपने निजी नर्सिंग होम में भेज देते हैं. कुछ दिनों पहले सदर अस्पताल के एक बड़े डॉक्टर ने एक गरीब मरीज को निजी नर्सिंग होम में भेज दिया था. मरीज ने इसकी लिखित शिकायत सिविल सर्जन से की थी. इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.

देखें रिपोर्ट

करोड़ों रुपये की कमाई कर रहे अधिकारी
जिले में प्रशासनिक और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की जानकारी में 3 हजार से अधिक अवैध निजी नर्सिंग होम और जांच घर चल रहे हैं. यहां से विभागीय अधिकारी और कर्मचारी साल में करोड़ों रुपये की कमाई कर रहे हैं. इस बारे में स्वास्थ्य विभाग के कर्मी भी कुछ भी कहने से बचते नजर आते हैं.

मजबूरन निजी नर्सिंग होम का लेना पड़ता है सहारा
मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुके सरकारी अस्पतालों में कुत्ता और बंदर काटने पर देने वाली सुई भी उपलब्ध नहीे है. इसकी वजह से मजबूरन मरीजों को निजी नर्सिंग होम का सहारा लेना पड़ता है. यहां एक एआरबी के इंजेक्शन पर 800 से 1 हजार रुपये की वसूली की जाती है.

"कुत्ता काटने के बाद एंटी रेबिज का इंजेक्शन लेने मैं 4 दिनों से अस्पताल आ रहा हूं. लेकिन रोज बताया जा रहा है कि यहां इंजेक्शन नहीं है. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि इंजेक्शन खरीदकर लगवा सकूं."- हरिद्वार राम, मरीज

मरीज

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नहीं है एंटी रेबिज का इंजेक्शन
वहीं सदर कांग्रेस विधायक संजय तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने कहा कि 5 दिन पहले एक गरीब मरीज मेरे पास भी आया था. जब उसे सदर अस्पताल में भेजकर इंजेक्शन देने के लिए फोन किया तो पता चला कि वहां इंजेक्शन नहीं है.

"एंटी रेबिज तक की सुई सदर अस्पताल नहीं है. अगर कल को किसी को जरूरत पड़ गई तो क्या यह स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी नहीं है कि वे यह उपलब्ध कराए. सदर अस्पताल अवैध कमाई का जरिया बनता जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग में बस धांधली हो रही है. यहां नर्सिंग होम को लाइसेंस देने की एवज में मोटी रकम मिलती रहे बस इस पर ही ध्यान दिया जा रहा है."- संजय तिवारी, कांग्रेस विधायक

संजय तिवारी, कांग्रेस विधायक

जल्द उपलब्ध कराई जाएगी दवा
मामले को लेकर प्रभारी सिविल सर्जन डॉक्टर नरेश कुमार ने बताया कि 9 फरवरी से ही एआरबी का इंजेक्शन नहीं है. विभाग को पत्र लिखा गया है. उम्मीद है जल्द ही दवा उपलब्ध हो जाएगी.

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