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लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेपी ने दिया सभी तरह का बलिदान: डॉ. हरिवंश

जयप्रकाश विश्विद्यालय में सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन पर एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया, जिसमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण ने कहा कि उन्होंने जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करना और उससे लड़ना सीखा.

सारण

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Published : Oct 30, 2021, 6:30 PM IST

सारण:लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) की जीवनी और उनके द्वारा आहूत सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन पर जयप्रकाश विश्विद्यालय (Jai Prakash University) में एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया, जिसमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण ने बतौर मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत की.

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इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता के रूप में अपने संबोधन में राज्य सभा के उपसभापति डॉ. हरिवंश ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन के संस्मरणों को सुनाते हुए कहा कि 1932 में उनकी गिरफ्तारी पर देश के एक बड़े अखबार ने लिखा था कि 'कांग्रेस के मस्तिष्क की हुई गिरफ्तारी'. उस समय वे महज 30 से 32 वर्ष के थे, उन्होंने 71 से 74 तक देशव्यापी रूप से भूदान आंदोलन के नए स्वरूप को गांव-गांव तक पहुंचाने का कार्य किया.

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यहां तक की बिहार में नक्सल आंदोलन के शुरुआत के समय वह उत्तराखंड में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे, जब उनको इस बारे में जानकारी मिली तो वह अगली ट्रेन से मुजफ्फरपुर के मुसहरी पहुंचे और नक्सलियों से मिले. उन्होंने उनकी समस्या और चुनौतियों को जाना. आमने-सामने वार्ता की और उन्होंने नक्सलियों को खुलकर कहा कि आप गलत रास्ते पर हैं, इस तरह का नैतिक साहस किसी भी अन्य दल या किसी अन्य राजनेताओं में नहीं था, जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण में था.

उन्होंने जीवन के चुनौतियों को स्वीकार करना और उससे लड़ना सीखा. उन्होंने कहा कि मेरा मकसद लोकतंत्र की स्थापना है. मेरा मकसद सत्ता प्राप्त करना नहीं है. अगर वह देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते तो बन सकते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी चुनाव नहीं लड़ा. पंडित नेहरू ने उन्हें सरकार में शामिल होने का अवसर भी दिया, लेकिन उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया.

74 के आंदोलन से जुड़े हुए संस्मरण को सुनाते हुए डॉ. हरिवंश ने कहा कि जयप्रकाश नारायण कहते थे कि शासन बदलना कोई मकसद नहीं है. लोकतंत्र की शक्तियों को समाज के अंतिम व्यक्ति तक महसूस किया जाए, यह लोकतंत्र के लिए आवश्यक है, लोकतंत्र में संवाद आवश्यक है और इसी से समाधान निकलता है.

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व्याख्यानमाला में उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद से सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कहा कि आजादी की लड़ाई में लोकतंत्र की स्थापना के लिए जेपी ने हर तरह का बलिदान दिया. जब भारतीय लोकतंत्र को खतरा हुआ तो चिंता पूर्वक देश के नौजवानों को जगाया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपने और अपने अनुयायियों के साथ लोकतंत्र की रक्षा के लिए बड़ा आंदोलन खड़ा किया और दुनिया को बता दिया कि भारतीय लोकतंत्र क्या है.

पद्मश्री उषा किरण खान ने व्याख्यानमाला में वक्ता के तौर पर बोलते हुए देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को याद करते हुए कहा कि उनके पैतृक गांव जीरादेई में भी विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी सक्रियता दिखाए और वहां की स्थिति को सुधारें. ताकि, विभूतियों के जीवन और जीवनी से प्रेरणा प्राप्त की जा सकें.

जेपी की पत्नी प्रभावती देवी के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि प्रभावती ने महात्मा गांधी के सानिध्य में रहते हुए महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं, उनके लिए भी विश्वविद्यालय प्रशासन को प्रयास करना चाहिए. जेपी से संबंधित बहुत कुछ है, लेकिन प्रभावती के बारे में कुछ खास उपलब्ध नहीं है.

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