भागलपुर: पूरे देश और दुनिया में रेशम उत्पादन के लिए मशहूर भागलपुर के बुनकरों की हालत पहले से ज्यादा बदत्तर हो गई है. वह पेट भरने के लिए अपने पारंपरिक पेशे 'बुनकरी' से तो जुड़े हैं लेकिन रेशमी शहर के रेशम की बुनकरी को छोड़कर लिनन और स्टॉल तैयार कर रहे हैं.
बुनकरों के जरिए बनाए गए कपड़े बचपन से ही बुनकरी के पेशे से जुड़े इबरार अंसारी का कहना है. बुनकरों की इस हालत के लिए सरकार जिम्मेदार है और साथ ही साथ जो नया बाजार तैयार हुआ है. वहां पर लोग कम पैसे देकर कपड़े खरीदना चाहते हैं. जबकि रेशम के वस्त्र काफी महंगे बिकते हैं. बाजार के हिसाब से बुनकर अभी लिनन कॉटन और स्टॉल की तैयारी कर रहे हैं.
दो वक्त की रोटी को मजबूर हुए बुनकर
बुनकरों ने कहा कि सरकार चाहे तो आसानी से बुनकर के बनाए रेशम कपड़ों को खरीद कर बुनकरों को आर्थिक सहयोग पहुंचा सकती है. लेकिन मौजूदा हालात ऐसा है कि सरकार ने पूरी तरह से रेशम बनाने वाले बुनकरों की उपेक्षा की है. बुनकरों की मजबूरी है कि उन्हें अपने पेशे के जरिए ही परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटानी पड़ रही है. इसलिए बुनकर लिनन कॉटन और स्टॉल बनाकर बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का पेट पेट भर रहे हैं. सरकार ने चुनाव के दौरान बुनकरों की स्थिति को सुधारने की बात तो कही थी. लेकिन बुनकरों को सुधारने की स्थिति महज चुनावी दावा बनकर रह गई. जिसके चलते जमीनी तौर पर बुनकरों की हालत बहुत ही ज्यादा दयनीय हो गई है.
बाजार से ओझल हो रहे रेशमी कपड़े
अपने पारंपरिक बुनकरी के पेशे से जुड़े हुए युवा बुनकर तहसीन शबाब का कहना है की इन दिनों मार्केट में कॉटन लिनन और दुपट्टे की डिमांड बढ़ी है. इसलिए मार्केट के हिसाब से कपड़ा तैयार करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि भागलपुर के मशहूर रेशम के कपड़े धीरे-धीरे बाजार से ओझल होते जा रहे हैं. जो लोग बुनकरी ही से जुड़े हुए हैं. वैसे लोगों को अपना पेट भरने के लिए बुनकरी ही करना पड़ रहा है. क्योंकि बुनकरों को दूसरा कोई पेशा नहीं दिखाई दे रहा है.
युवा बुनकर से बात करते संवाददाता